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    ईसाई और मुसलमान बन गए दलितों को एससी दर्जा देने का समाज पर पड़ सकता है व्यापक असर, सरकार ने आयोग का किया गठन

    By Jagran NewsEdited By: Sonu Gupta
    Updated: Fri, 07 Oct 2022 11:17 PM (IST)

    धर्म परिवर्तन कर ईसाई और मुसलमान बन गए दलितों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा दिये जाने का मामला एक बार फिर चर्चा में है। सरकार ने मामले पर गहनता से अध्ययन करने के लिए आयोग गठित किया है जो कि दो वर्ष में अपनी रिपोर्ट देगा।

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    आरक्षण मुद्दे पर सरकार ने आयोग का किया गठन। (प्रतीकात्मक फोटो)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। धर्म परिवर्तन कर ईसाई और मुसलमान बन गए दलितों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा दिये जाने का मामला एक बार फिर चर्चा में है। सरकार ने मामले पर गहनता से अध्ययन करने के लिए आयोग गठित किया है जो कि दो वर्ष में अपनी रिपोर्ट देगा। लेकिन ये मुद्दा न सिर्फ सामाजिक बल्कि राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील है और इसके संवैधानिक व कानूनी परिणाम होंगे।

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    15 फीसद आरक्षण को लेकर है सारी लड़ाई

    सारी लड़ाई एससी वर्ग को मिलने वाले 15 फीसद आरक्षण की हिस्सेदारी को लेकर है। ऐसे में ये समझना जरूरी होगा कि एससी को आरक्षण का आधार और मानक क्या हैं और क्या धर्म परिवर्तन कर ईसाई और मुसलमान बन गए दलितों के साथ वैसी ही परिस्थितियां हैं जो धर्म परिर्वतन से पहले उनके साथ थीं। क्योंकि एससी आरक्षण में धर्म परिवर्तन कर ईसाई और मुसलमान बन गए दलितों को शामिल करने का सामाजिक और राजनैतिक तौर पर व्यापक असर होगा।

    प्रेसीडेंशियल आदेश से अनुसूचित जाति में किया जाता है शामिल

    अनुसूचित जाति के दर्जे पर निगाह डालें तो पाएँगे कि अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग में उन जातियों को शामिल किया जाता है जो ऐतिहासिक रूप से सामाजिक भेदभाव, छुआछूत और अन्याय झेलती आ रही हैं। ऐसे वर्गों को प्रेसीडेंशियल आदेश के जरिए अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है। उन्हें सामाजिक भेदभाव से मुक्त कराने और बराबरी का दर्जा देकर मुख्य धारा में शामिल करने के उद्देश्य से नौकरियों, शिक्षण संस्थानों में प्रवेश, संसद, विधानसभा, निकाय और पंचायत चुनाव तक में आरक्षण दिया गया है। इस आरक्षण का सीधा संबंध सामाजिक पिछड़ापन और भेदभाव, अस्पृश्यता से है।

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    पहले भी हुआ है विचार

    धर्म परिवर्तन कर ईसाई और मुसलमान बन गए दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की यह मांग पुरानी है। पहले भी इस पर विचार हुआ है। राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग ने वर्ष 2004 में भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया था जिसने धार्मिक और भाषाई रूप से अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिये जाने पर विचार किया था। आयोग ने धर्मपरिर्वतन कर ईसाई और मुसलमान बन गए दलितों को आरक्षण देने पर भी विचार किया था और धर्म के बजाए सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण देने की 10 मई 2007 में दी गई रिपोर्ट में बात कही थी ।

    डिसेंट नोट के माध्यम से जताई असहमति

    आयोग की मेंबर सेक्रेटरी श्रीमती आशा दास ने दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को एससी दर्जा देने की राय से असहमति जताई थी। रिपोर्ट में आशा दास ने अपना डिसेंट नोट दिया है और दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को एससी दर्जा न दिये जाने के कारण भी गिनाए हैं। हालांकि आशा दास के डिसेंट नोट पर भी आयोग के अन्य सदस्यों डाक्टर ताहिर महमूद, डाक्टर अनिल विस्सन और डाक्टर मोहिन्दर सिंह ने एक और नोट लिखा है जिसमें आशा दास के डिसेंट नोट में दिये आधारों को खारिज किया गया है और वह भी रिपोर्ट का हिस्सा है।

    सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं कई याचिकाएं

    दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को एससी दर्जा देने और न देने के अपने अपने तर्क हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाएँ लंबित हैं जिनमें इन्हें एससी दर्जा दिए जाने की मांग की गई है। कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि धर्म परिवर्तन के बावजूद उनका पिछड़ापन खत्म नहीं हुआ है और वे पहले की तरह ही भेदभाव झेलते हैं। जबकि ऐसे लोगों को एससी दर्जा दिये जाने का विरोध करने वालों का कहना है कि धर्म परिवर्तन के बाद उनके साथ भेदभाव खत्म हो जाता है क्योंकि ईसाइ और मुसलमानों में उस तरह जातिगत भेदभाव और छुआछूत नहीं है।

    ओबीसी आरक्षण का मिल रहा है लाभ

    दूसरी दलील यह है कि दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को एससी वर्ग में शामिल कर लेने से एससी को मिल रहे 15 फीसद आरक्षण का ज्यादातर हिस्सा यही वर्ग ले जाएगा क्योंकि ये वर्ग उस कदर पिछड़ा नहीं है जितना बाकी एससी वर्ग पिछड़ा है। यह भी तर्क है अभी भी ऐसा नहीं है कि धर्मपरिवर्तन कर ईसाई और मुसलमान बन गए दलितों को कोई आरक्षण नहीं है इनमें शामिल कुछ जातियों को अभी भी ओबीसी आरक्षण का लाभ मिल रहा है।

    छुआछूत की घटनाओं में आई है कमी

    आशा दास के डिसेंट नोट में भी ये बात कही गई है। छुआछूत की घटनाओं में पहले से कमी आई है जो कि एससी आरक्षण का सबसे बड़ा आधार है। अब सरकार ने आयोग गठित किया है। आयोग के विचार क्षेत्र में जो सबसे महत्वपूर्ण पहलू है वह यही है कि इन वर्गों को एससी में शामिल करने से मौजूदा वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ेगा। साथ ही सही सही आंकड़े भी सामने आएंगे। बात सामाजिक तानेबाने की है। ऐसे वर्ग को एससी में शामिल करने से प्रलोभन व अन्य तरह से धर्म परिर्वतन के लिए प्रेरित करने वाले समूहों को बढ़ावा मिल सकता है।

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