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    जर्मनी के वाइस चांसलर हाबेक ने जताई लाचारी, कहा- चीन यूरोप का सबसे बड़ा साझीदार; नहीं हो सकते अलग

    By AgencyEdited By: Anurag Gupta
    Updated: Fri, 21 Jul 2023 12:29 AM (IST)

    विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मनी के वित्त मंत्री ने कहा कि जर्मनी ही नहीं पूरे यूरोप के चीन के साथ जटिल किस्म के संबंध हैं। इसलिए हम चीन से पूरी तरह से अलग नहीं हो सकते हैं। हां खतरे को कम करने वाले कदम जरूर उठा सकते हैं। व्यापार में हम किसी एक पर निर्भर होकर अपने लिए ही खतरा बढ़ाते हैं।

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    जर्मनी के वाइस चांसलर हाबेक ने जताई लाचारी (फोटो: एएनआई)

    नई दिल्ली, एएनआई। भारत की तीन दिन की यात्रा पर आए जर्मनी के वाइस चांसलर और वित्त मंत्री राबर्ट हाबेक ने चीन के सामने यूरोप की लाचारी को खुले तौर पर स्वीकार किया। कहा, चीन यूरोप का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी देश है, इसलिए उसे अलग-थलग कर पाना संभव नहीं है। हम उससे जुड़े खतरों को कम करने के लिए कदम उठा सकते हैं और निर्भरता कम करने वाले विकल्प खड़े कर सकते हैं।

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    विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मनी के वित्त मंत्री ने कहा,

    चीन हमारा सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है। इस लिहाज से बहुत सारी जर्मन कंपनियों ने वहां पर निवेश कर रखा है। यह स्थिति भारत और अमेरिका जैसी है।

    यूरोप के चीन के साथ जटिल किस्म के संबंध

    उन्होंने कहा कि जर्मनी ही नहीं पूरे यूरोप के चीन के साथ जटिल किस्म के संबंध हैं। इसलिए हम चीन से पूरी तरह से अलग नहीं हो सकते हैं। हां, खतरे को कम करने वाले कदम जरूर उठा सकते हैं। व्यापार में हम किसी एक पर निर्भर होकर अपने लिए ही खतरा बढ़ाते हैं। भूराजनीतिक स्थितियों में आर्थिक मसले राजनीतिक मामलों से अलग नहीं होते हैं।

    उन्होंने कहा कि प्रशांत महासागर क्षेत्र में हम तनाव बढ़ता हुआ महसूस कर रहे हैं। फिलहाल चीन और ताइवान के बीच तनाव केंद्रित है। इसलिए संबंधों में विविधता लाए जाने की जरूरत है। हाबेक ने यह बात दिल्ली में इंडो-जर्मन बिजनेस फोरम के कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह से इतर कही है।

    जयशंकर ने की संबंधों के विकास पर चर्चा

    नई दिल्ली में जर्मन वित्त मंत्री हाबेक से विदेश मंत्री एस जयशंकर की मुलाकात हुई है। इस मुलाकात में दोनों देशों के संबंधों के विकास के मुद्दों पर चर्चा हुई। जयशंकर ने ट्वीट कर बताया कि इस दौरान यूक्रेन युद्ध और उसके हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर पड़ रहे प्रभाव पर भी चर्चा हुई।