संतान सुख से महरूम हैं तो हो सकती है 'जेनेटिक स्विच' की समस्या, ICMR की रिसर्च में खुलासा
आईसीएमआर के एक अध्ययन में बांझपन से जूझ रहे जोड़ों के लिए उम्मीद की किरण जगी है। रिसर्च में 'जेनेटिक स्विच' में समस्या होने के कारण संतान सुख में बाधा आने की बात सामने आई है। कुछ व्यक्तियों में प्रजनन क्षमता को नियंत्रित करने वाले जीन ठीक से काम नहीं करते। जेनेटिक टेस्टिंग और जीन थेरेपी से इलाज संभव है, जिससे संतान सुख की संभावना बढ़ सकती है।

आइसीएमआर-एनआइआरआरसीएच।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। संतान सुख से वंचित परिवार क्या कुछ नहीं करते। गर्भधारण के लिए तमाम तकनीकी उपाय, कष्टप्रद प्रक्रियाओं के साथ-साथ लाखों रुपये खर्च करने पड़ जाते हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के विज्ञानियों ने इस समस्या के समाधान की दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है। विज्ञानियों ने पता लगाया है कि गर्भधारण की शुरुआत कैसे होती है।
विज्ञानियों ने एक 'जेनेटिक स्विच' खोजा है, जो भ्रूण को गर्भाशय की दीवार पर प्रत्यारोपित होने की अनुमति देता है। इसके बाद गर्भधारण की प्रक्रिया पूरी होती है। इस खोज से उम्मीद है कि आइवीएफ जैसी आधुनिक गर्भधारण तकनीक की सफलता दर को कई गुना बेहतर किया जा सकेगा।
गर्भधारण की शुरुआत के लिए भ्रूण को सबसे पहले मां के गर्भ की दीवार से जुड़ना और उसमें जड़ जमाना जरूरी है। लेकिन ऐसा कैसे होता है, इस पर रहस्य बना हुआ है।
विज्ञानियों का ये अध्ययन अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'सेल डेथ डिस्कवरी' में प्रकाशित हुआ है, जिसमें इस मूलभूत जैविक स्विच पर नई रोशनी डाली गई है, जो भ्रूण के प्रत्यारोपण को नियंत्रित करता है।
कैसे काम करते हैं ये जेनेटिक स्विच?
आइसीएमआर-एनआइआरआरसीएच के विज्ञानी डाक्टर दीपक मोदी ने बताया कि दो जीन- एचओएक्सए 10 और टीडब्ल्यूआइएसटी2- गर्भाशय की दीवार पर उचित समय आने पर खुले और बंद छोटे 'द्वार' का काम करते हैं। गर्भाशय की आंतरिक परत एक किले की दीवार की तरह होती है, ताकि किसी भी चीज को अंदर प्रवेश करने से रोका जा सके।
अध्ययन की मुख्य लेखक नैंसी अशारी ने बताया कि भ्रूण के प्रत्यारोपण की सफलता के लिए ये जरूरी है कि इस दीवार को एक छोटे से द्वार के जरिये कुछ समय के लिए खोला जाए। जीन एचओएक्सए10 दीवार को बंद रखता है और सुरक्षा करता है।
आइआइएससी, बेंगलुरु के डॉक्टर मोहित जोली ने बताया कि जब कोई भ्रूण गर्भाशय की अंदरूनी परत के संपर्क में आता है, तो उस स्थान पर एचओएक्सए10 अस्थायी तौर पर बंद हो जाता है। इसके बंद होने से एक अन्य जीन- टीडब्ल्यूआइएसटी2 सक्रिय हो जाता है। इस जीन की सक्रियता गर्भाशय कोशिकाओं को नरम और लचीला बनाकर द्वार खोलती है, जिससे भ्रूण को अंदर जाने का मौका मिलता है।
गर्भपात जैसी समस्या दूर करने में मिल सकती है मदद
आइसीएमआर-एनआइआरआरसीएच की निदेशक डॉक्टर गीतांजलि सचदेवा ने कहा कि इस खोज से ये समझने में आसानी होगी कि क्यों कुछ महिलाओं को स्वस्थ भ्रूण के साथ भी बार-बार प्रत्यारोपण विफलता या बहुत जल्दी गर्भावस्था के नुकसान का सामना करना पड़ता है।
इस जैविक बदलाव को समझने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि क्यों कुछ महिलाओं को स्वस्थ भ्रूण के साथ भी बार-बार प्रत्यारोपण विफलता या बहुत जल्दी गर्भावस्था के नुकसान का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने बताया कि अगर गर्भाशय की दीवार बहुत छोटी खुलती है, तो भ्रूण प्रत्यारोपित नहीं हो सकता, वहीं अगर ये द्वार बहुत ज्यादा खुल जाए तब भी गर्भधारण टिक नहीं सकेगा। दोनों जीन में संतुलन को नियंत्रित करके भविष्य में आइवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) की सफलता दर में सुधार के लिए नई रणनीति बनाई जा सकती है।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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