छत्तीसगढ़ में दीपावली के मौके पर गौरी-गौरा पूजन का है विशेष महत्व, जानें- दिलचस्प बातें
रातभर पूजन जसगीत गाकर दूसरे दिन निकलती है गौरी गौरा विसर्जन यात्रा। तालाब से मिट्टी लाकर करते हैं दीपावली की रात गौरी-गौरा की स्थापना। पूरी रात जश्न मनाने के बाद अगले दिन गाड़ा बाज़ा बजाते हुए जसगीत गेट हुए प्रतिमा को तालाब में विसर्जित किया जाता है।
रायपुर, जेएनएन। छत्तीसगढ़ में दीपावली के मौके पर गौरी गौरा के पूजन का विशेष महत्व है। इस बार दीवाली शनिवार को पड़ रही और उसी दिन आधी रात को गौरी गौरा की प्रतिमा स्थापित करके पूजा का दौर शुरू होगा जो अगले दिन तक चलेगा। जहां आधी रात को शुरू हुई पूजा के खत्म होने के बाद रविवार को दिन भर प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए ले जाया जाएगा। छत्तीसगढ़ का पारंपरिक गाड़ा बाज़ा की धुन पर जसगीत गाते श्रद्धालु विसर्जन के लिए तालाब जाएंगे।
अमूमन दीपावली पर जहां माता लक्ष्मी की पूजा घर-घर में की जाती है, वहीं यहां राजधानी के अनेक मोहल्लों के चौक जिन्हें गौरा गौरी चौक कहा जाता है, वहां पर माता पार्वती व भगवान शंकर की प्रतिमा को स्थापित करके पूजा-अर्चना की जाएगी।
बुजुर्ग तालाब से मिट्टी लाकर बनाएंगे प्रतिमा
अनेक मोहल्लों में गौरी-गौरा पूजन की तैयारियां शुरू हो चुकी है। बता दें कि मोहल्ले के बुजुर्ग तालाब से मिट्टी लाकर प्रतिमा बनाएंगे। वहीं कुछ जगह पर बाजार में बिक रही प्रतिमा ही स्थापित की जाएगी। बढ़ईपारा, रामसागरपारा, आमापारा, रामकुंड, बंधवापारा, लाखेनगर, पुरानी बस्ती, टुरी हटरी सहित अनेक इलाकों में गौरी-गौरा पर्व मनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है।
बताया गया कि तालाब से लाई जाती मिट्टी को चूलमाटी के नाम से जाना जाता है। इसी मिट्टी से प्रतिमाएं बनाई जाती है। प्रतिमाओं की स्थापना करके शिव-पार्वती का ब्याह कराने की परंपरा निभाई जाती है। रातभर भजन-कीर्तन व गीत गाए जाते हैं। अगले दिन गोवर्धन पूजा के बाद गाजे-बाजे के साथ प्रतिमाओं को नदी-तालाब में विसर्जित किया जाता है। पूरी रात जश्न मनाने के बाद अगले दिन गाड़ा बाज़ा बजाते हुए जसगीत गेट हुए प्रतिमा को तालाब में विसर्जित किया जाता है।
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