New Year 2025: ओटीटी के टॉर्चर से रील के ठुमके तक, इस साल ये 10 चीजें खत्म हो ही जानी चाहिए
भले ही आपको अपनी स्थानीय भाषा न आती हो लेकिन अंग्रेजी जरूरी है ये याद दिलाने वाले हर रोज आपको मिल जाते होंगे। लेकिन जब यही अंग्रेजी जटिल या गलत रूप में कानून के फैसलों में लिख दी जाए तो प्रक्रिया आगे बढ़ानी मुश्किल हो जाती है। आजकल रील के कल्चर से लेकर एलईडी हेडलाइट तक कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें इस साल खत्म हो ही जाना चाहिए।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। साल 2025 की शुरुआत हो चुकी है। नया साल लोगों के लिए नई उम्मीदें लेकर आया है। कई आदतें और कई बातें पिछले साल में छोड़कर लोग आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन अब भी कुछ ऐसी चीजें हैं, जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में तकलीफ तो देती हैं, लेकिन उनके खत्म होने के आसार दूर-दूर तक नहीं दिखते। आज हम आपको ऐसी ही 10 चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें इस साल तो खत्म हो ही जाना चाहिए।
अस्पष्ट अंग्रेजी वाले फैसले
लैटिन भाषा भले ही काफी कठिन हो, लेकिन कभी-कभी अंग्रेजी ही ग्रीक जैसी हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अदालतों के अस्पष्ट अंग्रेजी वाले फैसलों पर निराशा जताई थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि कुछ ऑर्डर हाईकोर्ट को दोबारा लिखने के लिए लौटा दिए जाते हैं। जब इसके शब्द समझ से परे होते हैं, तो आखिर प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ाई जा सकती है?
सदियों पुरानी बकवास और समझ से परे अंग्रेजी का इस्तेमाल चिंताजनक है। न्यायाधीशों को कानूनी भाषा का ज्ञान और तकनीकी सहायता लेनी चाहिए।
लंबे-चौड़े चुनावी भाषण
लगातार चुनाव और उनके लिए प्रचार का मतलब है अनगिनत लंबे-चौड़े चुनावी भाषण। लेकिन क्या उनमें से एक भी अंत में याद रहते हैं? जवाब है नहीं। मार्टिन लूथर किंग का 'आई हैव अ ड्रीम' भाषण 20 मिनट से भी कम समय में समाप्त हो गया था।
जवाहर लाल नेहरू का 'नियति से साक्षात्कार' भाषण भी 10 मिनट से कम समय का था। उनके पास वास्तव में कहने के लिए कुछ था, तो उन्होंने इसे सधे शब्दों में कहा और लोगों ने इसे सुना भी। आज के नेताओं को भी कम बोलने की जरूरत है, जिससे लोग उन्हें सुनने में दिलचस्पी रखें।
ओटीटी का टॉर्चर
जिस स्क्विड गेम्स के दूसरे सीजन का लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, उसने एक ही समय में सभी 7 एपिसोड जारी कर दिए। दूसरी तरफ एक और सीरीज ओनली मर्डर्स इन बिल्डिंग है, जो हफ्ते एक एपिसोड जारी करता है। ये एक अलग तरह का टॉर्चर है।
शो मेकर्स को जरूरत है कि वह इस तरह के बनावटी वेट टाइम को खत्म करें। लोगों की जिंदगी में पहले से ही तनाव और व्याकुलता है। ऐसे में रील लाइफ का ये ट्रॉमा और अधिक परेशान कर देता है।
रील का चस्का
चाहें सांची स्तूप हो या खजुराहो, दिल्ली से लेकर मुंबई तक चाहें आप जहां भी जाएं, हर जगह रील बनाते लोग आपको मिल जाएंगे। कहीं कोई प्री वेडिंग शूट कर रहा है, तो कहीं फोटो शूट हो रहा है। कहीं रील के लिए गाने पर लोग डांस कर रहे हैं, तो कहीं प्रैंक बनाया जा रहा है।
आप किसी एक जगह चले जाएंगे, तो वहां ऐसे 50 अलग-अलग तरह के प्रदर्शन आपको देखने को मिल जाएंगे। ये एक तरीके का मानवाधिकार उल्लंघन ही तो है।
हॉलिडे फोटो डंप
दूसरे की वेकेशन वाली तस्वीरें देखना किसी को पसंद नहीं है। जो काम में उलझे हैं, कहीं घूमने नहीं जा सकते, उनके सामने ये शेखी बघारने जैसा है। आप सोशल मीडिया के दोस्तों को दिखाने के लिए ये सब कर रहे हैं, ताकि ऐसा लगे कि आप भी दूसरों की तरह ही हैं।
लेकिन आपको वाकई रुकने की जरूरत है, कम से कम तब तक, जब तक कि हम खुद कहीं घूमने नहीं चले जाते।
शादी और सड़क जाम
शादी हर किसी की जिंदगी का एक बड़ा दिन होती है। लेकिन अगर किसी के लिए यह दिन इतना महत्वपूर्ण है, तो हमारे लिए बुरा क्यों बने। भारत में शादियों के सीजन का मतलब है, सड़क पर भयंक ट्रैफिक जाम। बाराती पूरा रास्ता रोककर नागिन डांस करते हैं और उनके हटने के इंतजार में गाड़ियों की लाइन लग जाती है।
थीम वेडिंग पर करोड़ों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं, लेकिन पार्किंग की व्यवस्था पर एक पैसा भी खर्च नहीं होता। शादी और उसमें होने वाला खर्च इकोनॉमी के लिए चाहें कितना भी अच्छा हो, लेकिन कई किलोमीटर तक लंबे जाम के बिना यह और भी अच्छा लगेगा।
अंधी कर देने वाली लाइट
जब से हैलोजन हेडलाइट की जगह एलईडी ने ले ली है, सड़क पर चलना नर्क जैसा हो गया है। दिन में तो यह परेशान करता ही है, रात के लिए टॉर्चर हो जाता है। कम से कम यह अनिवार्य कर ही देना चाहिए कि हेडलाइट के एक तिहाई हिस्से को काला रंग दिया जाए और डिपर का इस्तेमाल केवल रात में ही किया जाए।
यूएस, यूके और कनाडा तक में इन एलईडी लाइट्स के खिलाफ चिंता जाहिर की जा चुकी है। जैसी हमारे देश में सड़कों की स्थिति है, ऐसे में अगर इन एलईडी लाइट्स की वजह से ड्राइवर को कुछ दिखे ही नहीं, तो या तो वह खुद मर जाएगा या फिर दूसरों की जान ले लेगा। हमें वाकई हैलोजन पर वापस जाने की जरूरत है।
एसयूवी का क्रेज
एक समझदार व्यक्ति को पता है कि अगर कोई कार जिसका वजन और लंबाई-चौड़ाई इतनी हो कि वह दो के बराबर हो जाए, हर 7-8 किलोमीटर पर एक लीटर फ्यूल खत्म कर दे, ट्रक जैसे टायर हों, लोगों की पसलियां तोड़ देने वाली ऊंची ग्रिल हो और हाई सेंटर ग्रेविटी की वजह से शार्प मोड़ पर पलटने के चांस हों, तो उसे खरीदने का कोई मतलब नहीं बनता।
लेकिन अगर सड़कों पर दौड़ रही और शोरूम से धड़ाधड़ बिक रही एसयूवी को देखें, तो पता चलता है कि लोगों ने सोचना बंद कर दिया है।
फर्जी पॉश बिल्डिंग
अगर किसी अपार्टमेंट का नाम फ्रेंच या मेडिटेरेनियन नामों जैसा है, तो उस पर कतई भरोसा न करें। अगर लुधियाना में Collongesla-Rouge नाम से बिल्डिंग बनने लगे, या बुलंदशहर में Billancourt बन जाए, तो मतलब खतरे की घंटी है।
किसी बिल्डिंग का नाम अगर La से शुरू हो, तो वह ला-ला लैंड के जैसा तो कतई नहीं होगा। वैसे भी लवासा एक गढ़ा हुआ शब्द है, जिसका कोई मतलब नहीं होता। अगर आपकी Les Bregeres बिल्डिंग 15 साल में भी नहीं बनी, तो आप अधिकारियों को यह कैसे बताएंगे?
फोन अपग्रेड करने की धुन
क्या आपके पास 17 साल पहले आया पहला आईफोन अब भी मौजूद है? क्या आप चाहकर भी इसे पा सकते हैं? चलिए पांच साल पुराना फोन मिल सकता है? अब तो 4 जीबी की रैम भी काफी नहीं है। हमें हर बार कुछ ज्यादा और कुछ नया क्यों चाहिए होता है?
आपको इसके लिए हैवी एप और ओएस को जिम्मेदार ठहराना चाहिए। क्योंकि फोन आपका कितना भी अच्छा हो, इतना हैवी लोड नहीं ले सकता। आधुनिकता की इस दौड़ में पुराना फोन दफ्न हो जाता है। हमें खुद को हर बार अपग्रेड करने से रोकना होगा।
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