ब्रेन ट्यूमर वाले मरीजों के लिए एक बार गामा थैरेपी के बारे में जानना भी जरूरी है
हर ट्यूमर कैंसर हो ये जरूरी नहीं होता है, लेकिन कैंसर में ट्यूमर हो ये होता है। लिहाजा ट्यूमर कितना खतरनाक है यह इस बात पर डिपेंड करता है कि यह कैंसरस तो नहीं है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। ब्रेन ट्यूमर का नाम हमारे जहन में आते ही डर पैदा हो जाता है। होना भी चाहिए, क्योंकि इसका इलाज हमारे जैसे देश में या तो है नहीं और यदि है भी तो वहां तक सभी की पहुंच नहीं है। आपको बता दें कि हर ट्यूमर कैंसर हो ये जरूरी नहीं होता है, लेकिन कैंसर में ट्यूमर हो ये होता है। लिहाजा ट्यूमर कितना खतरनाक है यह इस बात पर डिपेंड करता है कि यह कैंसरस तो नहीं है। यहां पर आपको एक बात और बतानी जरूरी है। इसके लिए डॉक्टर अकसर मरीज को बायोस्पी और पैटस्कैन करवाने की सलाह देते हैं। इन दोनों के अपने अलग-अलग मायने हैं।
शरीर में ट्यूमर का पता लगाता है पैटस्कैन
दरअसल पैटस्कैन से डाक्टरों को इस बात का पता चलता है कि मरीज के शरीर में कहीं दूसरी जगह भी तो कहीं कोई ट्यूमर नहीं है। इसके लिए मरीज के पूरे शरीर का पैटस्कैन किया जाता है। वहीं बायोस्पी इस बात की तसदीक करती है कि शरीर में फैल रहा ट्यूमर कैंसरस है या नहीं। इसके बाद इस बात की जांच की जाती है कि यह ट्यूमर प्राइमरी है या सेकेंड्री बारी आती है कि इसकी स्टेज क्या है। जिसके बाद डाक्टर अपने इलाज का ब्यौरा तैयार करते हैं।
सेकेंडरी स्टेज का होता है ब्रेन ट्यूमर
लेकिन यहां पर यदि बात ब्रेन ट्यूमर की करें तो एम्स के डाक्टरों का कहना है कि अधिकतर ब्रेन में होने वाला ट्यूमर सेकेंडरी स्टेज का ही होता है। इसके सेकेंडरी होने का मतलब मरीज के जीवन को खतरा होता है। शराब, सिगरेट या फिर दूसरे नशे के सेवन करने वाले लोगों को अकसर कैंसर और ट्यूमर का खतरा बना रहता है। इसलिए डाक्टर इसकी भी जानकारी मरीज से जरूर लेते हैं।
ब्रेन ट्यूमर और इसके इलाज
अब बात करते हैं ब्रेन ट्यूमर और इसके इलाज की। भारत में हर जगह इसका इलाज नहीं है। अकसर रोगियों को कुछ बड़े अस्पतालों में भी इसका पूरा इलाज नहीं मिल पाता है। इस मर्ज के लिए डाक्टर रेडियो थेरेपी या फिर रेडियेशन थेरेपी की बात करते हैं। इसमें मरीज को एक सटीक मात्रा में रेडियेशन दिया जाता है, जिसके बाद ट्यूमर के खत्म होने की उम्मीद की जाती है। इसके अलावा कीमो थेरेपी भी इसके ही इलाज का एक हिस्सा है। लेकिन इन सभी के अपने कुछ साइड इफेक्ट भी हैं। यदि बात करें सिर्फ ब्रेन ट्यूमर की तो इसके इलाज के लिए डाक्टर गामा नाइफ थेरेपी को सबसे सटीक मानते हैं।
गामा नाइफ थेरेपी
इस थेरेपी में मरीज को गामा किरणों की हाईडोज दी जाती है। इसका सबसे बड़ा फायदा यही है कि इस थेरेपी के माध्यम से डाक्टर उसी हिस्से पर बारी-बारी से रेडियेशन देते हैं जहां पर ट्यूमर होता है। इस थेरेपी को दिए जाने का समय आधे घंटे से लेकर तीन घंटे तक होता है, जो अलग-अलग मरीजों पर अलग-अलग होता है। इसके लिए सबसे पहले मरीज के सिर पर एक स्टील का हल्के वजन वाला फ्रेम लगाया जाता है। इसके बाद बारी आती है इमेजिंग की, जिसमें डाक्टर मरीज के ब्रेन में ट्यूमर की सही जगह और उसका साइज पता करते हैं। इसके बाद डाक्टर इसके इलाज और दवा के लिए प्लानिंग करते हैं और अंत में मरीज को गामा नाइफ थेरेपी के लिए लेकर जाया जाता है। आपको बता दें कि गामा नाइफ थेरेपी सिर्फ ब्रेन ट्यूमर वाले मरीजों के लिए ही है। इस थेरेपी को गर्दन से नीचे नहीं दिया जा सकता है। इसलिए शरीर के दूसरे भाग में हुए ट्यूमर के लिए इलाज के दूसरे तरीकों पर ही जाना होता है।
ये है पूरा प्रोसेस
इस पूरे प्रोसेस में मरीज को एक दिन के लिए अस्पताल में रुकना पड़ता है। हालांकि यह थेरेपी काफी महंगी है। इतना ही नहीं भारत में यह थेरेपी हर जगह उपलब्ध नहीं है। दिल्ली, चंडीगढ़, बेंगलुरू और चेन्नई में ही ये थेरेपी मौजूद है। डाक्टरों की मानें तो इस थेरेपी के रिजल्ट दूसरे तरीके से काफी अच्छे हैं। लेकिन आपको बता दें कि अधिक उम्र के लोगों यह कारगर नहीं है। यदि मरीज 70 वर्ष या फिर उससे ऊपर की उम्र का है तो इस थेरेपी के अपने साइड इफेक्ट हैं। ऐसी उम्र में अकसर डाक्टर इस थेरेपी के लिए मना करते हैं। डाक्टरों की मानें तो इस उम्र के मरीजों में गामा थेरेपी के बार ब्रेन में सूजन हो जाती है जिसका कम हो पाना लगभग नामुमकिन होता है। इसकी दूसरी वजह ये भी है कि इस उम्र में मरीज इस थेरेपी को झेल नहीं पाते हैं। इसके अलावा डाक्टरों का ये भी कहना है कि गामा थेरेपी इस उम्र के मरीज के ट्यूमर को बहुत हद तक या पूरी तरह से खत्म तो कर देती है लेकिन इसके बाद के साइड इफेक्ट मरीज के लिए अच्छे नहीं होते हैं। ऐसे में मरीज का शरीर और ज्यादा खराब हो सकता है और उसका ब्रेन कुछ हद तक काम करना बंद कर सकता है, जिससे शरीर के पैरालाइज होने की आशंका भी बन जाती है।