G20: विदेशों में काम करने वाले घर भेज सकेंगे अधिक पैसा, 2030 तक रेमिटेंस लागत को तीन प्रतिशत पर लाने की कोशिश
जीपीएफआई के मसौदे के मुताबिक 2021 में एक देश से दूसरे देश में विदेशी मुद्रा भेजने में वैश्विक रूप से औसत लागत 6.21 प्रतिशत की थी जिसे कम करके पांच प्रतिशत तक और वर्ष 2030 तक इसे तीन प्रतिशत तक लाना है। जी-20 फैसले के मुताबिक विदेशी मुद्रा के रेमिटेंस या प्रेषण की लागत कम करने के लिए कम आय वाले देशों में रेमिटेंस की सुविधा का विस्तार किया जाएगा।

राजीव कुमार, नई दिल्ली। जी-20 समूह के शिखर सम्मेलन में लिए गए फैसले से विदेश में काम करने वाले कामगार अपने घरों पर पहले की तुलना में अधिक राशि भेज सकेंगे। शिखर सम्मेलन में गरीब व विकासशील देशों के वित्तीय समावेश के लिए ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर फाइनेंशियल इंक्लूजन (जीपीएफआई) पर सहमति बनी है। इनमें एक देश से दूसरे देश में पैसे भेजने की लागत को कम करने का प्रस्ताव भी शामिल है।
डीपीआई की मदद से लगात होगी कम
डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) और टेक्नोलॉजी की मदद से एक-दूसरे देश में मनी ट्रांसफर करने में कम खर्च आएगा जिससे प्रवासी पहले की तुलना में अधिक रकम अपने परिवार को भेज सकेंगे। आम तौर पर गरीब व विकासशील देशों के नागरिक विकसित देशों में काम करने जाते हैं और अपने देशों में विदेशी मुद्रा भेजते हैं।
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जीपीएफआई के मसौदे के मुताबिक वर्ष 2021 में एक देश से दूसरे देश में विदेशी मुद्रा भेजने में वैश्विक रूप से औसत लागत 6.21 प्रतिशत की थी जिसे कम करके पांच प्रतिशत तक और वर्ष 2030 तक इसे तीन प्रतिशत तक लाना है। जी-20 फैसले के मुताबिक विदेशी मुद्रा के रेमिटेंस या प्रेषण की लागत कम करने के लिए कम आय वाले देशों में रेमिटेंस की सुविधा का विस्तार किया जाएगा। विश्व का 50 प्रतिशत रेमिटेंस जी-20 से जुड़े देशों में होता है।
विश्व स्तर पर 515 अरब डॉलर का रेमिटेंस
वैश्विक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2011 में विश्व स्तर पर 515 अरब डॉलर का रेमिटेंस किया गया जो वर्ष 2021 में बढ़ कर 773 अरब डॉलर हो गया। गरीब व विकासशील देशों में रेमिटेंस तेजी से बढ़ रहा है और कई गरीब देशों की अर्थव्यवस्था कुछ हद तक विदेश में रहने वाले उनके नागरिकों द्वारा भेजे गए पैसे पर निर्भर करती हैं।
वर्ष 2011 में गरीब व विकासशील देशों में 223 अरब डॉलर का रेमिटेंस हुआ जो वर्ष 2021 में बढ़कर 379 अरब डॉलर हो गया। विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक रेमिटेंस लागत की वजह से 48 अरब डॉलर उन परिवारों को नहीं मिल सका जिन्हें मिलना चाहिए था। वैश्विक एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक अगर 200 डॉलर के रेमिटेंस पर लागत में एक प्रतिशत की कमी हो जाती है तो गरीब व विकासशील देशों में 6.05 अरब डॉलर अधिक राशि पहुंचेगी जिससे उन्हें आर्थिक विकास में मदद मिलेगी।
रेमिटेंस प्राइस वर्ल्ड (आरपीडब्ल्यू) के अध्ययन के मुताबिक अफ्रीका के कई देशों में रेमिटेंस लागत काफी अधिक है। तंजानिया से कीनिया 200 डॉलर भेजने में 29.1 प्रतिशत रेमिटेंस लागत आती है।
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