AI से भविष्य का न्यूजरूम: LSE के JournalismAI डायरेक्टर चार्ली बेकेट ने बताया- छोटे कदम, बड़े बदलाव कैसे लाएंगे
लंदन में LSE JournalismAI फेस्टिवल में, जागरण न्यू मीडिया के एडिटर-इन-चीफ राजेश उपाध्याय ने प्रोफ़ेसर चार्ली बेकेट से मुलाकात की। बेकेट ने कहा कि AI न्यूज़रूम के लिए सिर्फ़ एक टूल नहीं, बल्कि एक अभिन्न अंग है। उन्होंने छोटे, केंद्रित AI प्रयोगों पर ज़ोर दिया, जैसे डेटा प्रोसेसिंग और पर्सनलाइज़्ड न्यूज़लेटर्स। बेकेट ने दर्शकों के साथ सीधे संबंध बनाने और पत्रकारों को AI से संवाद करने की सलाह दी।

प्रोफेसर चार्ली बेकेट, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में जर्नलिज्म AI डायरेक्टर
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लंदन में आयोजित LSE JournalismAI फेस्टिवल इस बार सिर्फ तकनीक को समझने का एक मंच नहीं था, बल्कि न्यूजरूम के भविष्य को लेकर गहरी, दिशात्मक अंतर्दृष्टियों का केंद्र बन गया। इसी दौरान जागरण न्यू मीडिया के एडिटर-इन-चीफ राजेश उपाध्याय की मुलाकात हुई JournalismAI के डायरेक्टर और LSE के प्रोफेसर चार्ली बेकेट से। वह एक ऐसे विचारक से, जो मानते हैं कि पत्रकारिता की नई दुनिया वह है जहां AI सिर्फ एक टूल नहीं, बल्कि न्यूज ईकोसिस्टम का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
बेकेट का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि AI का अर्थ तेजी नहीं, बल्कि समझदारी है। उनका कहना है कि न्यूजरूम को बड़े-बड़े, अव्यवस्थित AI प्रयोगों में कूदने से पहले छोटे, केंद्रित और असरदार कदम उठाने चाहिए। वे सलाह देते हैं कि किसी एक स्पष्ट कार्य को पहचानें- जैसे रिपीटेटिव डेटा प्रोसेसिंग, आर्काइव सर्च या पर्सनलाइज़्ड न्यूज़लेटर्स—जहां AI तुरंत उपयोगी साबित हो सके।
उनके शब्दों में, 'जनरेटिव AI की खूबसूरती इसकी सरलता में है। इसे इस्तेमाल करने के लिए किसी हाई-टेक पृष्ठभूमि की ज़रूरत नहीं। जरूरत है समझ की और सही सवाल पूछने की।'
दर्शकों से सीधा रिश्ता, AI का असली वादा
न्यूजरूम के लिए AI का सबसे बड़ा अवसर सिर्फ गति या लागत में कमी नहीं है। बेकेट के मुताबिक, असली गेम-चेंजर है दर्शकों के साथ सीधा, व्यक्तिगत और मूल्य-आधारित रिश्ता स्थापित करना।
वे बताते हैं कि AI पत्रकारों को यह अवसर देता है कि वे हर पाठक या दर्शक के लिए कंटेंट को अधिक सटीक और प्रासंगिक बना सकें- जो भविष्य में सब्सक्रिप्शन, मेंबरशिप या पे-एज़-यू-गो जैसे मॉडलों को मजबूत करेगा।
अगर हम दर्शकों को ऐसा अनुभव दे सकें जो उनकी पसंद, रुचियों और जरूरतों के अनुरूप हो, तो बाहरी प्लेटफॉर्म्स पर निर्भरता कम होगी और न्यूज़रूम अपनी पहचान मजबूत कर पाएंगे।
AI को वे ‘वैल्यू क्रिएशन इंजन’ कहते हैं, जो पत्रकारिता को दोबारा गढ़ सकता है।
अपस्किलिंग का नया भाव: तकनीक नहीं, सोच बदलनी होगी
जब अपस्किलिंग की बात आती है, तो बेकेट एक मिथक तोड़ते हैं—पत्रकारों को तकनीकी विशेषज्ञ बनने की कोई आवश्यकता नहीं है। वे कहते हैं कि पत्रकारों को बस यह सीखने की जरूरत है कि AI से कैसे संवाद किया जाए। बेहतर प्रॉम्प्टिंग, लगातार प्रयोग और न्यूज़रूम में एक-दूसरे के साथ सीख साझा करने की संस्कृति—यही असली अपस्किलिंग है।
उनका संदेश साफ़ है—
AI टूल्स आपके लिए तभी काम करेंगे, जब पत्रकार उन्हें समझने, परखने और अपनाने में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। यह तकनीकी नहीं, रचनात्मक स्किल है।”
AI को वे एक ऐसे सहकर्मी की तरह देखते हैं जो हमेशा तैयार है—सिर्फ निर्देशों की जरूरत होती है।
JournalismAI: सीखने का एक वैश्विक केंद्र
बेकेट ने LSE की JournalismAI पहल को दुनिया भर के पत्रकारों के लिए एक ‘ज्ञानकेंद्र’ बताया—जहाँ ट्रेनिंग, गाइड्स, वर्कशॉप और वास्तविक न्यूज़रूम केस स्टडीज़ उपलब्ध हैं। उनका मानना है कि पत्रकारिता का भविष्य सहयोग, संवाद और निरंतर सीखने पर आधारित है—और AI इस परिवर्तन का नेतृत्व कर सकता है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।