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    भारत में भूकंपीय क्षेत्रों की सूची से लेकर क्या होती हैं भूकंपीय तरंगें और इसका 'फोकस', विस्तार से जानें सबकुछ

    सिस्मोग्राफ एक ऐसा यंत्र है जो भूकंपीय तरंगों के प्रति संवेदनशील होता है और भूकंप की तीव्रता को मापने में मदद करता है इसे सिस्मोग्राफ कहते हैं। भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए विभिन्न पैमानों का उपयोग किया जाता है। (जागरण-फोटो)

    By Ashisha Singh RajputEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Mon, 06 Feb 2023 10:54 PM (IST)
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    भूकंपीय (भूकंप) तरंगों की उत्पत्ति जिस बिंदु से होती है उसे भूकंप का 'फोकस' कहा जाता है।

    नई दिल्ली, जेएनएन। भूकंप के नाम से हर कोई सचेत हो जाता है। भूकंप का एहसास होते ही लोग चौंकाने हो जाते हैं। बीते दिनों दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों में भूकंप के झटके लगातार आ रहे हैं। आपको मालूम हो कि दिल्ली-एनसीआर बेल्ट, मुख्य रूप से यमुना नदी आदि के पास वाले इलाके उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं। आइए इस खबर के माध्यम से आपको बताते हैं कि भारत में सिस्मोग्राफ और भूकंपीय क्षेत्रों का विभाजन आखिर क्या है -

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    क्या होता है भूकंप

    पृथ्वी की सतह पर होने वाली कंपन को भूकंप कहते हैं, जो पृथ्वी की सतह के नीचे चट्टानों के लोच (elastic) या समस्थानिक (isotopic) समायोजन के कारण होता है। भूकंप आने का कारण मानव के साथ-साथ प्राकृतिक गतिविधियां भी हो सकती हैं।

    क्या होता है भूकंप की लहरें किसी क्षेत्र से टकराने से पहले

    क्या आप जानते हैं कि भूकंप की लहरें किसी क्षेत्र से टकराने से पहले उस क्षेत्र के वातावरण में रेडॉन गैस की मात्रा बढ़ जाती है? बात दें कि रेडॉन गैस का बढ़ना इस बात का संकेत है कि यह क्षेत्र भूकंप की चपेट में आने वाला है। विभिन्न अध्ययन किए गए और निष्कर्ष निकाला गया कि मिट्टी या भूजल में रेडॉन गैस की उच्च सांद्रता आसन्न (High concentration imminent) भूकंप का संकेत हो सकती है।

    क्या होता है भूकंप का 'फोकस'

    भूकंपीय (भूकंप) तरंगों की उत्पत्ति जिस बिंदु से होती है उसे भूकंप का 'फोकस' कहा जाता है। यह पृथ्वी की सतह के नीचे होता है। वहीं, पृथ्वी की सतह पर फोकस के परपेंडीकूलर, जहां भूकंप के झटकों को पहली बार महसूस किया जाता है, उसे 'अधिकेंद्र' कहा जाता है। इकसे अलावा, फोकस से निकलने वाली ऊर्जा को 'लोचदार ऊर्जा' (elastic energy) के रूप में जाना जाता है।

    क्या होती हैं भूकंपीय तरंगें

    भूकंप के दौरान उत्पन्न होने वाली तरंगों को भूकंपीय तरंगें कहते हैं। यह तीन प्रकार की होती हैं-

    1. प्राथमिक या अनुदैर्ध्य (longitudinal) तरंगों को पी-वेव्स के रूप में भी जाना जाता है, ये ध्वनि तरंगों के अनुरूप अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं।

    2. द्वितीयक या अनुप्रस्थ (transverse) तरंगों को एस-वेव्स के रूप में भी जाना जाता है, ये प्रकाश तरंगों के समान अनुप्रस्थ तरंगें होती हैं।

    3. भूतल या दीर्घ-अवधि की तरंगों को एस-वेव्स भी कहा जाता है, ये तब उत्पन्न होती हैं जब पी-वेव्स सतह से टकराती है।

    क्या होता है सिस्मोग्राफ?

    सिस्मोग्राफ एक ऐसा यंत्र है, जो भूकंपीय तरंगों के प्रति संवेदनशील होता है और भूकंप की तीव्रता को मापने में मदद करता है, इसे सिस्मोग्राफ कहते हैं। भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए विभिन्न पैमानों का उपयोग किया जाता है, इसमें रॉसी-फोरल स्केल, मरकेली स्केल और रिक्टर स्केल शामिल हैं।

    भारत में भूकंपीय क्षेत्रों की सूची

    बीते समय आए भूकंप और भूकंपीय इतिहास के आधार पर, भारतीय मानक ब्यूरो ने देश को चार भूकंपीय क्षेत्रों यानी की जोन- II, जोन- III, ज़ोन- IV और ज़ोन- V में बांटा है। इन चारों जोन में जोन-5 सर्वाधिक भूकंपीय सक्रिय क्षेत्र है, जबकि जोन-2 सबसे कम है।

    जोन-V में पूरा पूर्वोत्तर भारत आता है, इसमें जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्से, लद्दाख के कुछ हिस्से, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तर बिहार के कुछ हिस्से और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।

    जोन-IV में जम्मू और कश्मीर के शेष हिस्से, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश, केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली, सिक्किम, उत्तर प्रदेश के उत्तरी हिस्से, बिहार और पश्चिम बंगाल, गुजरात के कुछ हिस्से और पश्चिमी तट के पास महाराष्ट्र के छोटे हिस्से और राजस्थान शामिल हैं।

    जोन-III में केरल, गोवा, लक्षद्वीप द्वीप समूह, उत्तर प्रदेश के शेष हिस्से, गुजरात और पश्चिम बंगाल, पंजाब के कुछ हिस्से, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक शामिल हैं।

    जोन-II में देश के अन्य शेष हिस्सों को शामिल किया गया है।

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