मनीष सिसोदिया से लेकर चंदा कोचर तक, हाई-प्रोफाइल मामलों की जांच में देरी को लेकर निशाने पर सीबीआई
मनीष सिसोदिया से लेकर चंदा कोचर तक हाईप्रोफाइल मामलेों में जांच में देरी को लेकर सीबीआई आलोचना का सामना कर रही है। उदाहरण के लिए सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई ने दो मामले दर्ज किए हैं लेकिन अभी तक चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई है।

नई दिल्ली, आईएएनएस। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) भारत की प्रमुख भ्रष्टाचार-विरोधी एजेंसी है। यह जांच में देरी के कारण हाई-प्रोफाइल घोटालों से संबंधित मामलों को उनके तार्किक अंत तक लाने में नाकाम होने पर आलोचना का सामना कर रही है। उदाहरण के लिए दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के खिलाफ सीबीआई ने दिल्ली आबकारी नीति घोटाले और जासूसी मामले में दो मामले दर्ज किए हैं। एजेंसी ने सिसोदिया को दोनों ही मामलों में नंबर वन आरोपी बनाया है, लेकिन दोनों में चार्जशीट दाखिल करना अभी बाकी है।
आईसीआईसीआई-चंदा कोचर मामला (ICICI-Chanda Kochhar case)
आईसीआईसीआई-चंदा कोचर मामले में सीबीआई ने प्रारंभिक जांच शुरू होने के दो साल बाद जनवरी 2019 में प्राथमिकी दर्ज की थी। सीबीआई ने मामला दर्ज करने के पांच साल बाद दिसंबर 2022 में आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन समूह के एमडी वीएन धूत को गिरफ्तार किया था। कार्रवाई में देरी ने एजेंसी की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल ही में सीबीआई ने आईसीआईसीआई-वीडियोकॉन ऋण मामले में आरोप पत्र दाखिल किया है।
सुशांत सिंह राजपूत केस (Sushant Singh Rajput case)
सीबीआई अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच पूरी करने में विफल रही है, जिनका जून 2020 में रहस्यमय परिस्थितियों में निधन हो गया था। उनका शव मुंबई में उनके किराए के आवास के छत के पंखे से लटका मिला था। सीबीआई ने क्राइम सीन को रीक्रिएट किया था लेकिन जांच अब भी बाकी है।
आरुषि तलवार केस (Arushi Talwar case)
आरुषि तलवार और घरेलू नौकर हेमराज बंजादे की 2008 में 15 और 16 मई की दरमियानी रात में हत्या कर दी गई थी। मामला 2009 में सीबीआई को सौंप दिया गया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए अभियुक्तों को बरी कर दिया कि सबूत उचित संदेह से परे नहीं थे।
2जी मामला (2G case)
सीबीआई कथित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले (2G spectrum scam) में अपने मामले को साबित करने में नाकाम रही थी, जिसकी कीमत 1,76,000 करोड़ रुपये थी। विशेष न्यायाधीश ओ.पी. सैनी, जिन्होंने 2011 की शुरुआत से सभी 2जी स्पेक्ट्रम मामलों की सुनवाई की निगरानी की थी, ने 2017 में कहा था कि मामला मुख्य रूप से अफवाह, गपशप और अटकलों पर आधारित था।
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