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    बार-बार हादसे, तकनीकी खराबी और लंबा इंतजार, मुंबई के लिए 'सफेद हाथी' कैसे बन गई मोनोरेल?

    Updated: Wed, 20 Aug 2025 07:46 PM (IST)

    मुंबई में मोनोरेल सेवा दो दिन बाद फिर शुरू हो गई। मंगलवार को दो मोनोरेल खराब होने से 800 यात्री फंस गए थे। मोनोरेल 2014 में शुरू हुई जो चेंबूर को सेंट्रल मुंबई से जोड़ती है पर कई हादसों और तकनीकी खराबी के कारण लोकप्रिय नहीं हो पाई। ये मुंबई के लिए सफेद हाथी साबित हो रही है।

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    मुंबई के लिए सफेद हाथी बनी मोनोरेल- (पीटीआई)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मुंबई में मोनोरेल सर्विस दो दिन बाद एक बार फिर शुरू हो गई। मंगलवार को दो मोनोरेल खराब होने के कारण 800 यात्री फंस गए थे, जिन्हें कड़ी मशक्कत के बाद सुरक्षित बाहर निकाला जा सका था।

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    मोनोरेल के अंदर लाइट चली गई और एयर कंडीशनिंग ने काम करना बंद कर दिया, जिससे यात्रियों को बेचैनी होने लगी। ये गड़बड़ी मैसूर कॉलोनी के पास भक्ति पार्क और चेंबूर स्टेशनों के बीच और आचार्य अत्रे और वडाला मोनो रेल स्टेशन के बीच हुई।

    मुंबई के लिए सफेद हाथी बनी मोनोरेल

    मुंबई में चलने वाली मोनोरेल भारत में अपने तरह की पहली मोनोरेल है। साल 2014 में मुंबई के शुरू हुई मोनोरेल चेंबूर को सेंट्रल मुंबई के सेवन रोड्स एरिया से जोड़ती है। बीते 11 सालों से अपनी सेवाएं देने के बाद भी मोनोरेल मुंबई के लोगों को दिल में अपनी जगह नहीं बना पाई है। इसे मुंबई का एक सफेद हाथी भी कहा जाने लगा है। आइए जानते हैं इसके कारण।

    बार-बार  होते हादसे

    जब से मुंबई मोनोरेल चलनी शुरू हुई है, तब से कई हादसे हो चुके हैं। मंगलवार को हुए हादसे जैसे पहले भी कई बार हादसे हो चुके हैं। 2017 में एक सुबह मोनोरेल के दो डिब्बों में आग लग गई। गनीमत रही कि उस समय ट्रेनें खाली थीं, और किसी को चोट नहीं आई।

    बार-बार तकनीकी खराबी

    अगर कोई घर से ऑफिस जाने के लिए रोजाना मोनोरेल का इस्तेमाल करना चाहता है, तो यह एक विश्वसनीय जरिया साबित नहीं हुआ है। अक्सर इसमें तकनीकी खराबी हो जाती है और फिर एक ट्रेन के पुर्जे निकालकर दूसरी ट्रेन में लगा दिए जाते हैं। बार-बार तकनीकी गड़बड़ियां ट्रेनों के आवागमन को प्रभावित करती हैं।

    20-30 का मिनट इंतजार

    जैसे मुंबईकरों को हर तीन से चार मिनट में लोकल ट्रेनें मिल जाती हैं, लेकिन मोनेरेल के साथ ऐसा नहीं है। अगर एक मोनोरेल छूट जाती है, तो दूसरी पकड़ने के लिए 20-30 मिनट इंतजार करना पड़ता है। इतनी कम फ्रीक्वेंसी के कारण मुंबई जैसे बिजी शहर में मोनोरेल ट्रांस्पोर्टेशन का एक अलोकप्रिय साधन बन गई है।

    व्यवहारिक योजना का अभाव

    मुंबई मोनोरेल नेटवर्क की पूरी योजना इसके व्यावहारिक उपयोग पर विचार किए बिना बनाई गई थी। कई स्टेशन आबादी वाले इलाकों से बहुत दूर हैं। इसका एक उदाहरण भक्ति पार्क स्टेशन है। भक्ति पार्क के रहने वाले लोग इस मोनोरेल का इस्तेमाल नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें मोनोरेल स्टेशन तक पहुंचने के लिए 2 किलोमीटर बस या टैक्सी लेनी पड़ती है।

    ट्रांसपोर्टेशन के दूसरे साधनों से कनेक्ट नहीं

    हार्बर लाइन पर वडाला रेलवे स्टेशन को छोड़कर, किसी भी अन्य रेलवे स्टेशन या मेट्रो स्टेशन के पास कोई मोनोरेल स्टेशन नहीं है। मोनोरेल के असफल होने का एक कारण यह भी है। मोनोरेल का संचालन मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाता है। इस बात पर विचार किया जा रहा है कि लगातार घाटे में चल रही मोनोरेल को या तो बंद कर दिया जाए या नए तरीके से शुरू किया जाए।

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