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    Freebies case on Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने नई बेंच को भेजा मामला, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में होगी सुनवाई

    By Sanjeev TiwariEdited By:
    Updated: Wed, 24 Aug 2022 12:55 PM (IST)

    Freebies case on Supreme Court राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों की पेशकश वादे पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने नई बेंच को भेजा मामला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सुनवाई होगी।

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    चुनावी वादे रोकने पर SC में हुई सुनवाई (फाइल फोटो)

    नई दिल्ली, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों की पेशकश, वादे पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली जनहित याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले पर सीजेआई एनवी रमणा, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने कहा कि पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज के नेतृत्व में समिति बना दी जाए। इस पर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि पूर्व कैग के नेतृत्व में समिति बनाई जाए। सीजेआई ने आगे कहा कि मैं नई पीठ को यह मामला भेज रहा हूं जो मैनिफेस्टो मामले में दिए गए पूर्व के फैसलों पर गौर करेगी। इसके साथ ही यह तय हो गया है कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में तीन जजों कि पीठ आगे फ्रीबीज मामले पर सुनवाई करेगी।

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    सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि मेरी राय में मुख्य समस्या यह है कि चुनाव से तत्काल पहले वादा करना एक तरह से मतदाता को रिश्वत देना है। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि चुनाव से पहले ऐसे वादों से वित्तीय संकट खड़ा होता है, क्योंकि वह आर्थिक हालात को ध्यान में रखकर नहीं किए जाते। इसका जवाब देते हुए एसजी तुषार मेहता ने कहा कि पार्टियां वोटर को रिझाने के लिए चुनाव से पहले वादा करती हैं। जैसे बिजली फ्री देंगे या कुछ और तो इस प्रथा को इस रवैये को बंद करना चाहिए।

    बता दें कि मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि सभी दल मुफ्त रेवड़ियां चाहते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि ये एक गंभीर मुद्दा है और इस पर चर्चा होनी चाहिए। संसद में इस पर बहस होनी चाहिए। इसी सोच के साथ कोर्ट ने मामले में विशेषज्ञ समिति गठित करने की बात की थी और सुझाव मंगाए थे।

    केंद्र सरकार ने फिर किया मुफ्त रेवड़ियों का विरोध

    वहीं मंगलवार को केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुफ्त रेवड़ियों का विरोध करते हुए कहा कि सामाजिक कल्याण को लेकर किसी को आपत्ति नहीं है। परेशानी तब होती है जब कोई दल साड़ी, टीवी आदि बांटता है। मतदाता को सही-सही जानकारी होनी चाहिए। क्या आप ऐसे झूठे वादे कर सकते हैं जिन्हें पूरा करने की आपके वित्तीय साधन इजाजत नहीं देते या जिनसे अर्थ व्यवस्था चौपट होती हो?

    आप की दलील, चुनावी भाषण अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा

    आम आदमी पार्टी की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि याचिका में कोर्ट से चुनावी भाषणों को नियंत्रित करने की मांग की गई है। ये मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (अभिव्यक्ति की आजादी) के तहत आता है। इसे कानून के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन कोर्ट इस पर नियंत्रण नहीं लगा सकता। सिंघवी ने कहा कि अगर संसद या राज्य इस बारे में कानून बनाते हैं तो वे उसे कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं लेकिन अगर कोर्ट आदेश देगा तो वे क्या करेंगे। कोर्ट ने कहा कि आगे की सुनवाई बुधवार को होगी।

    आयोग के प्रमुख को लेकर भी सवाल

    जस्टिस रमणा ने कहा कि सवाल यह भी है कि आयोग का अध्यक्ष कौन होगा। चुनाव आयोग के कार्रवाई करने की दलील पर कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग सिर्फ चुनाव के दौरान ही कार्रवाई कर सकता है। मान लो कि कोई दल वादा करता है कि अगर उसे चुना गया तो वह सभी को हांगकांग या सिंगापुर भेजेगा। इसे चुनाव आयोग कैसे रोकेगा।

    मुफ्त रेवड़ियों का वर्गीकरण कठिन

    पीठ ने वकील गोपाल शंकर नारायण द्वारा मुफ्त रेवड़ियों के वर्गीकरण की दलील देने पर कहा कि यह कठिन है। उदाहरण के लिए अगर किसी ने साइकिल दी तो इसके बारे में रिपोर्ट है कि इससे साइकिल पाने वाले जिंदगी बदल गई। ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के लिए साइकिल या नाव बड़ी चीज हो सकती है। हम यहां बैठकर इस पर विचार नहीं कर सकते।

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