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    लखनऊ अधिवेशन 1916 में पड़ी थी गांधी के महात्मा बनने की नींव

    By Edited By:
    Updated: Mon, 06 Aug 2018 01:15 PM (IST)

    यह अधिवेशन 26 से 30 दिसंबर के बीच अंबिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता में हुआ था। अधिवेशन में चम्पारण के लोगों की बापू से पहली मुलाकात हुई थी।

    लखनऊ अधिवेशन 1916 में पड़ी थी गांधी के महात्मा बनने की नींव

    लखनऊ [मुहम्मद हैदर/अजय श्रीवास्तव]। 25 दिसंबर 1916 से पहले मोहनदास करमचंद गांधी को हर कोई बैरिस्टर कहकर संबोधित करता था, लेकिन राजधानी लखनऊ में हुए काग्रेस के 31वें अधिवेशन में गांधी जी के बैरिस्टर से महात्मा बनने की नींव पड़ी थी। यह अधिवेशन 26 से 30 दिसंबर के बीच अंबिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता में हुआ था। अधिवेशन में चम्पारण के लोगों की बापू से पहली मुलाकात हुई थी। जिसके बाद वह किसानों को उनका अधिकार दिलाने चम्पारण गए। इसी दौरान गांधी जी ने देश के दीनहीन लोगों को देखा जिनके पास पहनने के लिए वस्त्र तक नहीं थे। इसी के बाद उन्होंने बैरिस्टर की पोशाक त्यागकर एक धोती पहनने का संकल्प लिया और उनके बैरिस्टर से महात्मा बनने की नींव पड़ी।

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    महात्मा गांधी ने 'नील के दाग' शीर्षक से लिखे अपने लेख में इसका उल्लेख भी किया था कि जब मैं लखनऊ काग्रेस (वर्ष 1916) में गया, तो वहा एक किसान राजकुमार शुक्ल 'वकील बाबू आपको सब हाल बताएंगे' वाक्य कहता जाता और मुझे चम्पारण आने का निमंत्रण देता जा रहा था। वकील बाबू से मतलब था, चम्पारण (बिहार) के वकील ब्रजकिशोर बाबू से। राजकुमार और ब्रजकिशोर दोनों मेरे तम्बू में आए और चम्पारण के किसानों का दर्द बया किया। मैंने उन्हें चम्पारण आने का आश्वासन दिया। फिर जब मैं लखनऊ से कानपुर गया तो वहां भी राजकुमार मौजूद थे। बाद में आश्रम पहुंचा तो वहां भी वह साथ-साथ थे। मैंने उनसे कहा मुझे कलकत्ता जाना है, आप वहा आकर मुझे चम्पारण ले चलना।

    कलकत्ता में भूपेन बाबू के यहां मेरे पहुंचने से पहले ही राजकुमार शुक्ला ने वहां डेरा डाल दिया था। 1917 में हम दोनों कलकत्ता से चम्पारण रवाना हुए। चम्पारण राजा जनक की भूमि है। जिस तरह चम्पारण में आम के वन हैं, उसी तरह नील के खेत थे। चम्पारण के किसान अपनी ही जमीन के 3/20 भाग में नील की खेती उसके असल मालिकों के लिए करने को कानून से बंधे हुए थे। किसानों के खिलाफ मुकदमे चल रहे थे। उनकी दुर्दशा देख गांधी जी ने अपनी पुरानी वेशभूषा त्याग किसानों की तरह सफेद धोती धारण कर उनके समान जीवन जिया। चम्पारण में रहकर उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। इस घटना के बाद से ही बैरिस्टर गांधी देशवासियों के लिए महात्मा बन गए।

    नेहरू से हुई थी पहली मुलाकात
    देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बापू से पहली मुलाकात लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर हुई थी। इस मुलाकात में पंडित जी बापू के विचारों से काफी प्रभावित हुए। गांधी जी 26 दिसंबर 1916 को पहली बार काग्रेस के अधिवेशन में लखनऊ आए थे। अधिवेशन में मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू और सैयद महमूद ने लोगों को संबोधित किया था। वह पाच दिन शहर में थे।

    1899 में पहला अधिवेशन 
    लखनऊ में कांग्रेस का पहला अधिवेशन 1899 में हुआ था। इससे पहले कलकत्ता, नागपुर व मद्रास में कांग्रेस का अधिवेशन हो चुका था। इन अधिवेशनों में अध्यक्ष, प्रधानमंत्री और उसकी विभिन्न समितियों के सदस्य चुने जाते थे। पहले लखनऊ अधिवेशन में संगठन समिति के सदस्य के तौर पर बाबू गंगा प्रसाद वर्मा, पंडित विष्णु नारायण, हाफिज अब्दुर्रहमान, पंडित मदन मोहन मालवीय, ए नंदी आदि को चुना गया। काग्रेस के 15वें अधिवेशन की अध्यक्षता रमेश चंद्र दत्ता ने की थी। अधिवेशन में 789 प्रतिनिधि शामिल हुए थे।

    नगर पालिका भवन में भी जुटे थे गांधी-नेहरू
    अक्स धुंधले पड़ गए, लेकिन आजादी की लड़ाई के अतीत को आज भी जिंदा रखे हैं। शहर में जिधर सिर घुमाओ, ऐसे निशान और घाव मिल जाएंगे जो अंग्रेजी हुकुमत से लड़ाई के गवाह बने हुए हैं। लालबाग के त्रिलोक नाथ रोड पर नगर निगम मुख्यालय (तब नगर पालिका) में भी आजादी के लिए रणनीति बनी थी। 17 अक्टूबर 1925 को लखनऊ के तीन घटे के प्रवास पर गांधी जी ने नगर पालिका का अभिनंदन पत्र स्वीकार किया था और त्रिलोकनाथ हाल (जहा अब नगर निगम का सदन होता है) में सार्वजनिक सभा में भाषण दिया था। गांधी जी की याद को आज भी नगर निगम मुख्यालय के बाहर लगा शिलापट याद दिला देता है।

    नगर पालिका के कार्यक्रम में तब गांधी जी के साथ मोतीलाल नेहरू, पंडित जवाहर लाल नेहरू और सै.महमूद भी थे। इतना ही नहीं वर्ष 1916 से 1939 के बीच कई बार अपने लखनऊ प्रवास के दौरान गांधी जी ने न सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाई थी बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे गए थे। वर्ष 1926 में जवाहर लाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय, सरोजनी नायडू ने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ बैठक कर रणनीति बनाई थी।

    26 से 30 दिसंबर 1916 तक लखनऊ में आयोजित काग्रेस अधिवेशन में गांधी जी ने भाग लिया था। तब यहां गांधी जी ने श्रमिकों की भर्ती कर विदेश ले जाने की प्रथा को बंद करने का प्रस्ताव रखा था। गांधी जी की जवाहर लाल नेहरू से पहली बार मुलाकात यहां अधिवेशन में ही हुई थी। 31 दिसंबर 1931 को मुस्लिम लीग सम्मेलन में हिस्सा लिया और आजादी की लड़ाई पर मंथन किया था। स्वतंत्रता आदोलन के लिए लोगों को जागरुक करने के लिए गांधी जी 11 मार्च 1919, 15 अक्टूबर 1920, 26 फरवरी 1921, आठ अगस्त 1921, 17 अक्टूबर 1925, 27 अक्टूबर 1929 को भी लखनऊ आए।

    वर्ष 1936 में गांधी जी 28 मार्च से 12 अप्रैल सबसे अधिक समय रहे और तमाम आयोजनों में शामिल होकर लोगों को अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने के लिए जागरुक किया था। 26 दिसंबर 1916 को चारबाग स्टेशन पर आयोजित मीटिंग में नेहरू संग संबोधित किया था। मार्च 1936 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए गांधी दूसरी बार फिर यहा आए थे।