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    अरुण नेहरू पर चलेगा भ्रष्टाचार का मुकदमा

    By Edited By:
    Updated: Mon, 03 Sep 2012 01:36 AM (IST)

    नई दिल्ली। कभी राजीव गांधी के अत्यंत करीबी रहे अरुण नेहरू के खिलाफ नए सिरे से भ्रष्टाचार का मुकदमा चलेगा। राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे तब उनके रिश्तेदार अरुण नेहरू की गृह मंत्रालय में तूती बोलती थी। करीब दो दशक से राजनीतिक निर्वासन झेल रहे पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नेहरू के खिलाफ सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट एक ि

    नई दिल्ली। कभी राजीव गांधी के अत्यंत करीबी रहे अरुण नेहरू के खिलाफ नए सिरे से भ्रष्टाचार का मुकदमा चलेगा। राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे तब उनके रिश्तेदार अरुण नेहरू की गृह मंत्रालय में तूती बोलती थी। करीब दो दशक से राजनीतिक निर्वासन झेल रहे पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नेहरू के खिलाफ सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट एक विशेष अदालत ने खारिज कर दी है और नए सिरे से मुकदमा चलाने का निर्णय लिया है। वर्ष 1988 के इस मामले में विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख अशोक सिंघल के भाई बीपी सिंघल भी आरोपी हैं। मामले की सुनवाई पंद्रह सितंबर से शुरू होगी।

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    नेहरू पर पुलिस बलों के लिए 9 एमएम की पिस्तौल आयात में साजिश रचकर सरकारी खजाने को 25 लाख रुपये का चूना लगाने का आरोप है।

    सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश दिनेश कुमार शर्मा ने पिछले माह नेहरू के खिलाफ सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट खारिज कर दी थी। उन्होंने सीबीआइ को अभियुक्तों को अपने बचाव की तैयारी के लिए छह सितंबर तक आवश्यक दस्तावेज सौंपने को कहा है। इनमें गृह मंत्रालय के पूर्व अपर सचिव बीपी सिंघल भी शामिल हैं। सिंघल विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख अशोक सिंघल के भाई हैं। आरोप है कि अरुण नेहरू ने अपने पद का दुरुपयोग किया और दो सहयोगियों के साथ आपराधिक षडयंत्र रचा जिससे तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया (विभाजन के पहले का) की एक कंपनी से पिस्तौल खरीद करार में सरकारी खजाने को 25 लाख रुपये का नुकसान हुआ। प्राथमिकी के अनुसार आयात का निर्णय लेने में नेहरू, सिंघल ओर गृह मंत्रालय में तत्कालीन निदेशक एके वर्मा ने निविदा के नियमों का उल्लंघन किया। वर्मा की अब मौत हो चुकी है। सेना या तकनीकी विशेषज्ञों की सलाह लिए बगैर तीनों ने पुलिस बल की .38 एमएम की रिवाल्वर की जगह 9 एमएम की पिस्तौल देने का निर्णय लिया। सीबीआइ ने वर्ष 2007 में ही मामला की जांच बंद करने की रिपोर्ट दे दी थी। उसका कहना था कि नेहरू के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला। उसमें दोष सिंघल पर मढ़ा गया लेकिन सरकार ने उनके और वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत नहीं दी। अदालत का कहना है कि क्लोजर रिपोर्ट के दस्तावेजों से पता चलता है कि अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा चलाने का पर्याप्त आधार है। अदालत का मानना है कि नेहरू के निर्देशन में ही साजिश रची गई।

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