अासमान से है केरल की बाढ़ पर नजर, सेना का साथ दे रहे इसरो के सैटेलाइट
केरल में लोगों को तबाही से लोगों को बचाने और सेना की मदद के लिए आसमान में मौजूद इसरो के पांच उपग्रह देवदूत बने हुए हैं।
नई दिल्ली (जागरण स्पेशल)। केरल को अपने सुरम्य प्राकृतिक संपदा और जल संसाधनों के चलते केरल के ईश्वर का घर कहा जाता है। लेकिन आज यहां पर हाहाकार मचा हुआ है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार मानसूनी सीजन में अब तक यहां 42 फीसद अधिक बारिश हुई है। हालांकि पिछले आठ दिनों में यहां सामान्य से ढाई गुना ज्यादा बारिश हुई, लेकिन अगर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं हुई होती तो बारिश का पानी आराम से निकल सकता था। पर्यावरणविदें ने केरल में आई बाढ़ को मानव निर्मित आपदा करार दिया है। सबने यहां तेजी से हो रही जंगलों की कटाई और पर्यटन में वृद्धि को इसकी मुख्य वजह माना है।
दूसरी तरफ इस साल की शुरुआत में केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक आकलन में केरल को बाढ़ को लेकर सबसे असुरक्षित 10 राज्यों में रखा गया था। देश में आपदा प्रबंधन नीतियां भी हैं लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बावजूद केरल कोई कदम नहीं उठाए गए। बहरहाल, मौजूदा हालात में सेना मजबूती से निपट रही है। हर रोज विभिन्न तरीकों से लोगों को बाढ़ वाले क्षेत्रों से निकालकर सुरक्षित जगहों पर ले जाया जा रहा है। केरल में लोगों को तबाही से लोगों को बचाने और सेना की मदद के लिए आसमान में मौजूद इसरो के पांच उपग्रह देवदूत बने हुए हैं। अंतरिक्ष से धरती का निरीक्षण कर रहे ये उपग्रह ग्राउंड स्टेशन पर रीयल टाइम तस्वीरें भेज रहे हैं। इससे बाढ़ के आकार-प्रकार और उसमें फंसे लोगों की सटीक जानकारी मिल पा रही है।
आसमान से धरती की निगरानी का जिम्मा संभाल रहे ये उपग्रह
ओशनसैट-2 का 23 सितंबर, 2009 को सफल प्रक्षेपण किया गया था। इसको पीएसएलवी के माध्यम से पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया था। हालांंकि इस उपग्रह की समय सीमा पांच वर्षों के लिए ही थी, लेकिन इसके बाद भी यह अपना काम सही से कर रहा है। यह उपग्रह मौसम की जानकारी समेत मछुआरों की मदद के लिए छोड़ा गया था। मछुआरों को यह उपग्रह मछली की बहुलता वाले क्षेत्रों की जानकारी देता है। इसके अलावा यह हवा और दबाव के क्षेत्र और चक्रवात की भी जानकारी देता है। इसका वजन 970 किलोग्राम है।
रिसोर्ससैट-2 इसरो द्वारा निर्मित अठारहवाँ उपग्रह है। इस उपग्रह को अप्रेल 2011 में प्रक्षेपित किया गया था।रिसोर्ससैट-2 का उद्देश्य पूरे विश्व के प्रयोक्ताओं को रिसोर्ससैट-1 द्वारा दिए जा रहे रिमोट सेंसिग डाटा सर्विस को जारी रखना है। रिसोर्ससैट-1 की तुलना में इसमें कुछ बदलाव किए गए हैं। यह जहाजों की मौजूदा स्थिति की भी जानकारी प्रदान करता है। इसे 'आई इन द स्काई' यानी आसमानी आंख भी कहा जा रहा है। ये एक अर्थ इमेजिंग उपग्रह है जो धरती की तस्वीरें लेता है। इसको मुख्यत भारत के पूर्वी और पश्चिमी सीमा के इलाकों में दुश्मनों पर नजर रखने के लिए छोड़ा गया था।
कार्टोसैट -2 उपग्रह को इसी वर्ष जनवरी में पीएसएलवी सी 40 के माध्यम से प्रक्षेपित किया गया था। यह एक रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट है। इससे मिली जानकारी का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जा रहा है।
कार्टोसैट-2ए रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट श्रंख्ला का 13वां उपग्रह है। यह धरती की सटीक इमेज उपलब्ध कराने में सक्षम है। इसके द्वारा भेजी गई तस्वीरों का उपयोग नगरीय एवं ग्रामीण मूलभूत अवसंरचना विकास एवं प्रबंधन और साथ ही साथ, भूमि सूचना प्रणाली (एलआईएस) एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) में किया जाता है।
इनसैट 3डीआर भारत का एक आधुनिक मौसमविज्ञान-संबंधी सैटेलाइट है जिसमें इमेजिंग सिस्टम और वायु-मंडल-संबंधी घोषक है। इसको नवंबर 2016 में छोड़ा गया था। भारत के पास अपने तीन मौसमविज्ञान-संबंधी सैटेलाइट हैं। ये हैं कल्पना 1, इनसैट 3ए और इनसैट 3डी। ये सभी पिछले एक दशक से काम कर रहे हैं। इनसैट 3डीआर कुछ मामलों में इनसैट 3डी के समान जानकारी उपलब्ध कराता है। यह उपग्रह मौसम संबंधी जानकारियों को उपलब्ध करवाता है। इसके अलावा वायुमंडल की सटीक जानकारी भी देता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह रात में भी सटीक तस्वीरें ले सकता है। इसमें लगे दो थर्मल इंफ्रारेड बैंड समुद्र की सतह और उसके तापमान की जानकारी देते हैं।
ऐसे मिलता है डाटा
अंतरिक्ष में उपग्रहों के माध्यम से धरती पर भेजा गया डाटा हैदराबाद के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर स्थित डिसीजन सपोर्ट सेंटर में प्रोसेस किया जाता है। वहां से यह इसरो के डिजास्टर मैनेजमेंट सपोर्ट प्रोग्राम के तहत समय-समय पर केंद्र और राज्यों को भेजा जाता है।
ऐसे मिलती है सूचना
इनसेट 3डीआर इमेजिंग सिस्टम और एटमॉस्फेरिक साउंडर से लैस है। यह तापमान से लेकर नमी तक के बारे में पूर्वानुमान बताता है। कार्टोसेट और रिसोर्ससेट में कैमरे लगे हैं, जो हाई रेजोल्युशन तस्वीरें भेजकर बाढ़ के बारे में चेतावनी देते हैं। इसके बाद उस जगह का पता लगाया जाता है, जहां बाढ़ आने वाली है। जो डाटा मिलता है उसके आधार पर मैप बनता है, जिनमें अलग-अलग रंगों में दिखाया जाता है किस इलाके में बाढ़ है और किस इलाके में नहीं। ये मैप राज्य सरकार और संबंधित केंद्र एजेंसियों को भेजे जाते हैं। उनके आधार पर प्रभावित गांवों, ट्रांसपोर्ट नेटवर्क आदि को लेकर अलर्ट जारी किया जाता है।
समुद्री तुफान पर भी नजर
अरब महासागर में मौजूद 13 उपकरण हैदराबाद स्थित इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सेंटर के वैज्ञानिकों को अगले तीन दिन तक ऊंची लहरों और हवा के रुख के बारे में जानकारी दी है। ऐसे ही दो उपकरण कोझिकोड और कोल्लम तट का डाटा भेज रहे हैं।
बांध से पानी छोड़ने की लापरवाही
केरल में 80 से ज्यादा बांध हैं। अधिक बारिश के चलते सभी बांध पानी से लबालब हो उठे। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समयबद्ध तरीके से बांधों से धीरे-धीरे पानी छोड़ा जाता तो बाढ़ इतनी विनाशकारी नहीं होती। जब पिछले हफ्ते बाढ़ उफान पर थी तब इन बांधों से पानी छोड़ा गया।
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