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    आज ही के दिन पहले टेस्‍ट ट्यूब बेबी ने रखा था दुनिया में कदम, नि:संतान दंपतियों के लिए वरदान बना मेडिकल साइंस

    By Mohd FaisalEdited By: Mohd Faisal
    Updated: Tue, 25 Jul 2023 12:30 AM (IST)

    First Test Tube Baby वैसे तो विज्ञान का हर क्षेत्र मानव विकास में अपनी अहमियत रखता है लेकिन मेडिकल साइंस ने इंसान के जीवन पर जितना प्रत्यक्ष प्रभाव डाला है उतना शायद विज्ञान की किसी अन्य शाखा ने नहीं किया। ऐसा ही एक चमत्कार 25 जुलाई 1978 को ब्रिटेन में देखने को मिला था जब विज्ञान की मदद से पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ था।

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    First Test Tube Baby Born in Oldham UK on 25th July 1978 (फोटो जागरण ग्राफिक्स)

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। विकास के क्रम में जब–जब इंसान के सामने चुनौतियां आईं, तो इंसान ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर ऐसा समाधान निकाला कि उससे पूरे समाज या मानव जाति को एक नई दिशा मिली है। इंसान की इस जटिल यात्रा को आसान बनाने में विज्ञान की बहुत बड़ी भूमिका है।

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    विज्ञान ने इंसान के सामने आने वाली चुनौतियों को हल कर पूरी मानव जाति के उज्ज्वल भविष्य में कई योगदान दिए हैं। वैसे तो विज्ञान का हर क्षेत्र मानव विकास में अपनी अहमियत रखता है, लेकिन मेडिकल साइंस ने इंसान के जीवन पर जितना प्रत्यक्ष प्रभाव डाला है, उतना शायद विज्ञान की किसी अन्य शाखा ने नहीं किया।

    ऐसा ही एक चमत्कार 25 जुलाई 1978 को ब्रिटेन में देखने को मिला था, जब विज्ञान की मदद से पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ था। उस दौर में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म होना, मेडिकल साइंस के क्षेत्र में वैज्ञानिकों की बड़ी सफलता माना गया था।

    दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म

    दरअसल, दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी यानी 'परखनली-शिशु' का जन्म ब्रिटेन के शहर ओल्डहैम में हुआ था। चिकित्सा विज्ञान की इस सफलता ने उस दौर में प्रजनन के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। चिकित्सा विज्ञान की क्रांति की सफलता के बाद कई दंपतियों ने भी इस प्रणाली के तहत संतान की प्राप्ति की इच्छा जाहिर की थी।

    लुइस ब्राउन रखा फर्स्ट टेस्ट ट्यूब बेबी का नाम

    • बता दें कि पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का नाम लुइस ब्राउन रखा गया।
    • लुइस ब्राउन का जन्म ब्रिटेन के एक सरकारी अस्पताल में हुआ था।
    • जन्म के वक्त जुइस का वजन लगभग ढाई किलोग्राम था।
    • हालांकि, ऐसा बताया जाता है कि लुइस के जन्म के बाद उस पर कई तरह की जांचें भी की गई थी। ताकि पता लगाया जा सके कि वो भी दूसरे बच्चों जैसी है।
    • बता दें कि कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी के फिजिशियन रॉबर्ट एडवर्ड्स ही फर्स्ट टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक हैं, उन्होंने ही नि:संतान दंपति की गोद भरी थी।
    • साल 2010 में रॉबर्ट एडवर्ड्स को मेडिसिन के नोबेल सम्मान से नवाजा जा चुका है।
    • लुइस ने साल 2006 में अपने पहले बच्चे को नेचुरल तरीके से गर्भधारण करने के बाद जन्म दिया था।

    क्या है IVF?

    दरअसल, आईवीएफ (IVF) का मतलब इन विट्रो फर्टिलाइजेशन होता है। जिस नि:संतान दंपति को बच्चा नहीं हो सकता है, वह लोग इसकी मदद से ही संतान प्राप्त कर पाते हैं। ये प्राकृतिक रूप से गर्भधारण में विफल दंपतियों के लिए गर्भधारण का सफल माध्यम बनता है।

    IVF में क्या होता है?

    आईवीएफ प्रक्रिया में शुक्राणु और अंडे का मिश्रण शामिल होता है। इसमें महिला के शरीर में होने वाली निषेचन की प्रक्रिया यानी (महिला के अण्डे व पुरूष के शुक्राणु का मिलन) को लैब में किया जाता है। इसके बाद लैब में बने भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है। इसलिए इसे आईवीएफ कहा जाता है।

    भारत का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी

    भारत के पहला टेस्ट ट्यूब बेबी ने लुइस के 67 दिन बाद जन्म लिया था। देश के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का सफल परीक्षण 3 अक्टूबर 1978 को कोलकाता के डॉ सुभाष मुखोपाध्याय ने किया था। हालांकि, इस परीक्षण को लेकर सवाल उठाए गए और इसे वैध करार दिया गया, जिसके बाद डॉ सुभाष ने 1981 में आत्महत्या कर ली थी। उनकी मौत के 21 साल बाद यानी 2002 में उनके काम को पहचाना गया और इस उपब्धि को मान्यता मिल पाई।

    2018 तक 80 लाख से अधिक टेस्ट ट्यूब बेबी ने रखा कदम

    बताते चलें कि साल 2018 तक आईवीएफ तकनीक की मदद से लगभग 80 लाख टेस्ट ट्यूब बेबी ने दुनिया में कदम रखा है। आईवीएफ तकनीक की मदद से टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्म में लाखों का खर्च आता है।