Move to Jagran APP

शताब्दी को मात नहीं दे पा रही पहली प्राइवेट ट्रेन, सिर्फ 62% ऑक्यूपैंसी से कमाई की उम्मीदों को झटका

दिल्ली और लखनऊ के बीच चलने वाली देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस से रेलवे को कोई विशेष फायदा होता नहीं दिखाई दे रहा है।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 09:06 PM (IST)Updated: Wed, 04 Dec 2019 09:06 PM (IST)
शताब्दी को मात नहीं दे पा रही पहली प्राइवेट ट्रेन, सिर्फ 62% ऑक्यूपैंसी से कमाई की उम्मीदों को झटका
शताब्दी को मात नहीं दे पा रही पहली प्राइवेट ट्रेन, सिर्फ 62% ऑक्यूपैंसी से कमाई की उम्मीदों को झटका

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली और लखनऊ के बीच चलने वाली देश की पहली प्राइवेट ट्रेन 'तेजस एक्सप्रेस' से रेलवे को कोई विशेष फायदा होता नहीं दिखाई दे रहा है। अधिक किराया लेने के बावजूद शताब्दी से बेहतर सेवाएं न दे पाने के कारण इस ट्रेन के प्रति लोगों का शुरुआती जोश ठंडा पड़ता दिखाई दे रहा है। लोगों की रुचि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां इसी रूट पर चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस हमेशा पूरी भर के चलती है। वहीं तेजस में औसतन 62 फीसद सीटें ही बुक हो रही हैं।

loksabha election banner

यह हम नहीं कह रहे, बल्कि स्वयं रेलमंत्री पीयूष गोयल ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कही है। डा. टीआर पारीवेंधर तथा चंद्रशेखर साहू के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि 4 अक्टूबर से शुरू हुई दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस का 31 अक्टूबर तक ऑक्यूपैंसी लेवल केवल 62 फीसद था, जबकि अन्य ट्रेनों में सामान्यतया 70-100 फीसद की आक्यूपैंसी रहती है। इस दौरान तेजस को 447.04 लाख रुपये की आमदनी व 439.31 लाख रुपये के खर्च के साथ महज 7.73 लाख रुपये का मुनाफा हुआ है।

रेलमंत्री के अनुसार दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस को प्रायोगिक आधार पर चलाया गया है। इसके अनुभव के आधार पर अन्य प्राइवेट ट्रेनों के संचालन के बारे में फैसला किया जाएगा। इस संबंध में सचिवों की समिति का गठन किया गया है जो 150 प्राइवेट ट्रेने चलाने के बारे में अपने सुझाव देगी। अब तक समिति की चार बैठकें हो चुकी हैं। लेकिन सिफारिशों को अंतिम रूप नहीं दिया गया है।

रेलमंत्री के इस बयान के बाद दूसरी तेजस तथा अन्य प्राइवेट ट्रेनों के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। क्योंकि शताब्दी ही नहीं, बल्कि देश की पहली सेमी हाईस्पीड दिल्ली-वाराणसी वंदे भारत एक्सप्रेस भी पूरी भर कर चल रही है। और इनका संचालन रेलवे द्वारा किया जा रहा है। वंदे भारत ने तो कमाई में सभी ट्रेनों को पीछे छोड़ दिया है। ऊंची स्पीड के अलावा इसकी सेवाओं से भी सभी संतुष्ट हैं। रेलवे बोर्ड के सदस्य, रोलिंग स्टॉक राजेश अग्रवाल के अनुसार पहली वंदे भारत हर महीने 70-80 लाख रुपये की कमाई कर रही है। ये एक साल में ही अपनी 100 करोड़ रुपये की लागत वसूल लेगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.