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    First Encounter Of India: 40 साल पहले हुआ था देश में पहला एनकाउंटर, मुंबई का बदमाश बना था गोली का शिकार

    By Babli KumariEdited By: Babli Kumari
    Updated: Thu, 13 Apr 2023 03:55 PM (IST)

    First Encounter in India 11 जनवरी 1982 को मुंबई के वडाला इलाके में गैंगस्टर मान्या सुर्वे की पुलिस के साथ मुठभेड़ में मौत हो गयी। इसे देश का फर्स्ट एनकाउंटर माना जाता है। जानिए देश के पहले एनकाउंटर को किसने दिया था अंजाम ?

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    गैंगस्टर मनोहर अर्जुन सुर्वे 1982 के एनकाउंटर में मारा गया (जागरण ग्राफिक्स)

    नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। पिछले कई दिनों से माफ‍िया अतीक अहमद (Atique Ahmad) चर्चा में हैं। उमेश पाल हत्‍याकांड के मुख्‍य आरोप‍ित माफ‍िया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद (Asad Ahmed Encounter) को यूपी एसटीएफ ने झांसी में मुठभेड़ के दौरान मार ग‍िराया। जब-जब एनकाउंटर होता है तब-तब हम यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि आखिर पहला एनकाउंटर किसका हुआ होगा? तो आइए जानते हैं कि कौन था वो आरोपी जिसका सबसे पहली बार एनकाउंटर किया गया था।

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    1980 के दशक में महाराष्ट्र पुलिस अकादमी से पास होने वाले सभी नए सिपाहियों की ख्वाइश होती थी कि उसकी तैनाती या पोस्टिंग बॉम्बे (अब मुंबई) में हो जाए। उस वक्त बॉम्बे को पैसे और ताकत का खज़ाना माना जाता था। उस समय, बॉम्बे में हर दिन अपहरण, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग और जबरन वसूली एक आम बात थी। बॉम्बे पर कब्ज़े के लिए कई गिरोह आपस में लड़ रहे थे।

    करीम लाला, बाबू रेशम और राजन नायर (बड़ा राजन के नाम से जाना जाता है) जैसे गैंगस्टर एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे हुए थे। शक्तिशाली पठान गिरोह पहले ही दाऊद इब्राहिम के खिलाफ गैंगवार में थे। लोगों में काफी डर बैठा हुआ था और वे 'पुलिस की निष्क्रियता' से परेशान थे।

    इसी बीच मुंबई में देश का पहला एनकाउंटर होता है जिसमें मान्या सुर्वे मारा जाता है। 11 जनवरी 1982 के इस एनकाउंटर में  37 साल के मान्या सुर्वे की मौत होती है।

    कौन था मान्या सुर्वे

    मान्या सुर्वे का असली नाम मनोहर अर्जुन सुर्वे था। बॉम्बे में पैदा होने वाला मनोहर अर्जुन सुर्वे ने बॉम्बे से पढ़ाई की और वहीं से ही वो अपराध की दुनिया में भी आया। मनोहर अर्जुन सुर्वे को उसके दोस्त मान्या सुर्वे कहते थे और यही नाम पुलिस की डायरी से लेकर अपराध की दुनिया में दर्ज हो गया। कहते हैं कि मान्या को अपराध की दुनिया में उसका सौतेला भाई भार्गव दादा लेकर आया था।

    दोनों ने 1969 में किसी का मर्डर किया था और पकड़े गये और उन्हें उम्रकैद की सजा हुई, मान्या को बॉम्बे के बजाय पुणे के यरवदा जेल भेज दिया गया। जेल में रहकर मान्या सुधरा नहीं  बल्कि अपने प्रतिद्वंदी डॉन सुहास भटकर के लोगों को पीटने लगा। जेल में मान्या का आतंक जब बढ़ने लगा तो उसे रत्नागिरी जेल भेज दिया गया। वहां उसने बीमार होने का बहाना किया और अस्पताल में भर्ती हुआ। इसी अस्पताल से मान्या ने पुलिस को चकमा दिया और फरार हो गया।

    इसके बाद मान्या बॉम्बे आया और अपने दोस्तों के साथ मिलकर खुद का एक गैंग बना लिया। माना जाता है कि  दाऊद के एक भाई के मर्डर में भी इसी का हाथ था। मान्या के बढते आतंक की वजह से बॉम्बे पुलिस की आलोचना होने लगी तब मुंबई पुलिस ने इसकी गैंग पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया।

    1982 में हुआ था देश का पहला एनकाउंटर

    मान्या गैंग से मुकाबले के लिए मुंबई पुलिस ने मेक्सिको पुलिस की तर्ज पर एक विशेष टीम गठित की जिसे एनकाउंटर स्क्वाड नाम दिया गया। आगे चलकर इसे क्राइम ब्रांच के नाम से पहचाना जाने लगा। इस केस की कमान मुंबई पुलिस के दो अधिकारीयों राजा तांबट और इशाक बागवान को सौंपी गयी। मान्या लगातार इनके हाथ से बचता रहा, फिर 11 जनवरी 1982 को पुलिस को दाऊद इब्राहिम गिरोह से एक सूचना मिली कि मनोहर सुर्वे वडाला में अंबेडकर कॉलेज जंक्शन के पास स्थित एक ब्यूटी सैलून जाएगा।

    दोपहर करीब 1.30 बजे क्राइम ब्रांच के 18 अधिकारी तीन टीमों में बटकर उसका इंतज़ार करने लगे। करीब 20 मिनट के बाद सुर्वे वहां टैक्सी से पहुचा पुलिस ने तुरंत उसे घेर लिया। इससे पहले की वह पुलिस से बचता या गोलियां चलाता उसके सीने और कंधे में पांच गोलियां सुराख़ कर चुकी थी। इसके बाद

    सायन अस्पताल ले जाते हुए एम्बुलेंस में ही उसने दम तोड़ दिया।

    बॉम्बे में पुलिस द्वारा किसी गैंगस्टर के खिलाफ यह पहली रिकॉर्डेड मुठभेड़ थी। यह शहर के आपराधिक अंडरवर्ल्ड में एक नए अध्याय की शुरुआत भी थी। इस तरह से पुलिस की डायरी और देश के इतिहास में ये पहला एनकाउंटर दर्ज हुआ। इस घटना पर आधारित फिल्म शूटआउट एट वडाला (Shootout at Vadala) भी बनी थी, जिसमें जॉन अब्राहम ने मान्या सुर्वे की भूमिका निभाई थी।

    आजादी के दशकों बाद तक नहीं थी एनकाउंटर की परंपरा

    आज़ादी के बाद पुलिस अपराधियों को पकड़ने पर ज्यादा जोड़ देती थी फिर जैसे-जैसे अपराध बढ़ता गया पुलिस की कार्य प्रणाली में भी आवश्यक बदलाव किये गए। अंडरवर्ल्ड और माफिया बढ़ने पर पुलिस के साथ इनके एनकउंटर होना शुरू हो गए।