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    Dharamvir Bharati Death Anniversary: फिल्म या किताब, धर्मवीर ने चुनी फुटपाथ से देवदास

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 04 Sep 2020 10:13 AM (IST)

    शरतचंद्र का उपन्यास देवदास पढ़ रचना संसार में पद्मश्री धर्मवीर भारती ने गढ़े आयाम कहते थे- लिखने के लिए अपना इलाहाबाद चाहिए कहीं और वैसा लिख नहीं पाता हू।

    Dharamvir Bharati Death Anniversary: फिल्म या किताब, धर्मवीर ने चुनी फुटपाथ से देवदास

    शरद द्विवेदी, प्रयागराज। बात तब की है, जब धर्मवीर भारती इंटर पास कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीए में प्रवेश ले चुके थे। नई किताबें खरीदने के लिए इंटर की पुरानी किताबें बेचनी पड़ीं। बीए की सेकंड हैंड किताबें खरीदने के बाद दो रुपये बच गए तो वह फिल्म देवदास देखने गए। पास ही सेकंड हैंड किताबों की दुकान थी। यहीं शरतचंद्र का उपन्यास देवदास देखा। उसकी कीमत 10 आने थी, जबकि फिल्म का टिकट डेढ़ रुपये का था। मन बदला और फिल्म देखने की बजाय फुटपाथ से देवदास किताब लेकर लौट आए। इस उपन्यास ने उन्हें रचना संसार में आने के लिए प्रेरित किया।

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    यह कहना है प्रख्यात साहित्यकार रविनंदन सिंह का। वह कहते हैं- पद्मश्री धर्मवीर भारती के जेहन में जीवन पर्यंत प्रयागराज (इलाहाबाद) बना रहा। भारती कहते थे- मुझे लिखने के लिए अपना वही इलाहाबाद चाहिए। मैं उसके अलावा कहीं नहीं लिख सकता। शहर के अतरसुइया मोहल्ले में 25 दिसंबर, 1926 को जन्मे धर्मवीर भारती 13 बरस के थे तभी पिता चिरंजीवी लाल वर्मा गोलोकवासी हो गए। मां चंदादेवी ने परिवार संभाला। बचपन गरीबी में गुजरा। फिर भी पढ़ने का जुनून था और इसे भारती भवन पुस्तकालय में पूरा किया।

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डॉ. धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में शोध कर यहां हिंदी भी पढ़ाई। गऊघाट में यूइंग क्रिश्चियन कॉलेज के पीछे यमुना तट से चिंतन की नई ऊर्जा लेकर लौटते। वहां गंगा प्रसाद पांडेय, गोपीकृष्ण गोपेश, उमाकांत मालवीय, विजय देव नारायण शाही, लक्ष्मीकांत वर्मा जैसे रचनाकारों संग बैठकी होती। साहित्यकार अनुपम परिहार की राय में सिविल लाइंस स्थित कॉफी हाउस भी उनकी पसंदीदा जगह थी।

    यहां वह जगदीश गुप्त, मार्कंडेय, दुष्यंत कुमार, फिराक गोरखपुरी संग बैठकी करते थे। मुंबई में प्रयागराज का जायका भी कभी नहीं भूले। दीपावली से पहले मातादीन की गजक, हरी की नमकीन व समोसे तथा पुरवार के पापड़ मंगवाते थे। चार सितंबर, 1997 को निधन के कुछ दिन बाद अस्थि कलश शहर लाया गया र्तो ंहदुस्तानी एकेडमी में श्रद्धांजलि सभा हुई फिर उसे संगम में प्रवाहित किया गया।

    रचना संसार में भी जिंदगी के मिले पात्र : मान्यता है कि धर्मवीर भारती के रचना संसार में ज्यादातर पात्र संगमनगरी के ही थे। गुनाहों का देवता जैसा उपन्यास यहीं लिखा। इसी उपन्यास पर फिल्म बननी थी- एक था चंदर-एक थी सुधा। अमिताभ बच्चन केंद्रीय भूमिका के लिए चुने गए, लेकिन फिल्म नहीं बन पाई। नव गीतकार यश मालवीय बताते हैं कि धर्मवीर भारती ने र्चिचत कहानी बंद गली का आखिरी मकान अपने घर को रेखांकित करते हुए लिखी थी।