खेती-किसानी भारत की अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ आधार, धान की खेती का मोह छोड़ें किसान
यह हमारे लिए चिंता की बात है कि देश के एक-चौथाई हिस्से पर आने वाले सौ वर्षो में मरुस्थल बनने का खतरा है। यदि हमें अपने अन्नपूर्ण प्रदेशों को बचाना है तो इसके लिए कुछ कड़े फैसले लेने ही होंगे।
प्रमोद भार्गव। खेती-किसानी भारत की अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ आधार है। इस पर ज्यादा पानी खर्च होना स्वाभाविक है, लेकिन हमें यदि खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना है तो जल सुरक्षा की बात भी करनी होगी। दक्षिणी या पूर्वी भारत में अच्छी बरसात होती है। सो पारंपरिक रूप से वहीं धान की खेती होती थी और वहीं के लोगों का मूल भोजन चावल था। पंजाब-हरियाणा आदि इलाकों में नदियों का जाल रहा है। वहां की जमीन में नमी रहती थी। सो चना, गेहूं, राजमा जैसी फसलें यहां होती थीं। दुर्भाग्य है कि देश की कृषि नीति ने महज अधिक लाभ कमाने का सपना दिखाया और ऐसे स्थानों पर भी धान की अंधाधुध खेती शुरू हो गई, जहां इसके लायक पानी उपलब्ध नहीं था।
दुष्परिणाम सामने है कि हरियाणा-पंजाब जैसे राज्यों का अधिकांश हिस्सा भूजल के मामले में ‘डार्कजोन’ में बदल गया है। हालात ऐसे हैं कि जमीन के सूखने के चलते अब रेगिस्तान की आहट उस तरफ बढ़ रही है। बात पंजाब की हो या फिर हरियाणा या गंगा-यमुना के दोआब के बीच बसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की। सदियों से यहां के समाज के भोजन में कभी चावल था ही नहीं। सो उसकी पैदावार भी यहां नहीं होती। हरित क्रांति के नाम पर कतिपय रासायनिक खाद-दवा और बीज का कारोबार करने वाली कंपनियों ने बस जल की उपलब्धता देखी। वहां ऐसी फसलों को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया जिसने जमीन बंजर की, भूजल सहित पानी के स्नेत खाली कर दिए, नदी-तालाब एवं भूजल दूषित कर दिया। हालात ऐसे हो गए कि पेयजल का संकट भयंकर हो गया।
कभी पंजाब में पांच सदानीरा नदियां थीं, जो अब जल-संकट के चलते रेगिस्तान में तब्दील होने को बढ़ रहा है। पंजाब के खेतों की सालाना पानी की मांग 43.7 लाख हेक्टेयर मीटर है और इसका 73 प्रतिशत भूजल से उगाहा जा रहा है। यही नहीं राज्य की नदियों में जल की उपलब्धता भी 1.7 करोड़ एकड़ फीट से घट कर 1.3 करोड़ एकड़ फीट रह गई है। जब सरकार ने ज्यादा पानी पीने वाली फसलों और धरती की छाती चीर कर पानी निकालने वाली योजनाओं को खूब प्रोत्साहन दिया तो पानी की खपत के प्रति आम लोगों में बेपरवाही भी बढ़ी और देश के औसत जल इस्तेमाल-150 लीटर प्रति व्यक्ति, प्रति दिन की सीमा वहां दोगुनी से भी ज्यादा 380 लीटर हो गई।
पंजाब मृदा संरक्षण और केंद्रीय भूजल स्तर बोर्ड के एक संयुक्त सेटेलाइट सर्वे में यह बात उभर कर आई है कि यदि राज्य ने इसी गति से भूजल दोहन जारी रखा तो आने वाले 18 वर्षो में केवल पांच प्रतिशत क्षेत्र में ही भूजल बचेगा। सभी भूजल स्नेत पूरी तरह सूख जाएंगे। आज के बच्चे जब जवान होंगे तो उनके लिए न केवल जल संकट, बल्कि जमीन के तेजी से रेत में बदलने का संकट भी खड़ा होगा। 1985 में पंजाब के 85 प्रतिशत हिस्से की कोख में लबालब पानी था। आज इसके 45 प्रतिशत हिस्से में बहुत कम और छह प्रतिशत हिस्से में लगभग खत्म के हालात बन गए हैं। आज वहां 300 से एक हजार फीट गहराई पर नलकूप खोदे जा रहे हैं। जाहिर है कि जितनी गहराई से पानी लेंगे उतनी ही बिजली की खपत बढ़ेगी।
धान की खेती वाले इलाकों में रेगिस्तान की आहट का संकेत इसरो के एक अध्ययन में भी मिला है। शोध कहता है कि भारत की कुल 328.73 मिलियन जमीन में से 105.19 मिलियन जमीन पर बंजर ने अपना डेरा जमा लिया है, जबकि 82.18 मिलियन हेक्टेयर जमीन रेगिस्तान में बदल रही है।
[लोक नीति विश्लेषक]