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झूठे केस में अफसर की गिरफ्तारी पर 10 लाख रुपए हर्जाने का आदेश

भ्रष्टाचार के झूठे आरोप में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी को गिरफ्तार कर 11 दिन जेल में रखने पर उत्तर प्रदेश सरकार 10 लाख रुपए हर्जाना देगी।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2015 01:13 AM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2015 01:35 AM (IST)

माला दीक्षित, नई दिल्ली। भ्रष्टाचार के झूठे आरोप में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी को गिरफ्तार कर 11 दिन जेल में रखने पर उत्तर प्रदेश सरकार 10 लाख रुपए हर्जाना देगी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर सेवानिवृत आईएफएस अधिकारी डॉ. राम लखन सिंह को यह हर्जाना अदा करने का आदेश दिया है।

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राम लखन का आरोप था कि 2003 में प्रतापगढ़ कुंडा की बेंती बर्ड सेंचुरी को योजना से मुक्त करना (डीनोटीफाई) करने की तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की बात न मानने पर उन्हें भ्रष्टाचार के झूठे आरोप में गिरफ्तार कर जेल में रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एनवी रमना की पीठ ने आईएफएस अफसर डॉ.रामलखन सिंह की याचिका निपटाते हुए यह फैसला सुनाया।

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सुप्रीम कोर्ट की अहम् टिप्पणी..

'भ्रष्टाचार और बेईमानी किसी भी विकासशील देश के लिए सबसे ब़़डी चुनौती है। अगर एक बेईमान अधिकारी दंडित नहीं हुआ तो ईमानदार पर उसका बुरा असर प़़डेगा वह हतोत्साहित और निराश होगा। कुछ ईमानदार और कर्तव्य निष्ठ अधिकारी भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं, लेकिन वे अकेले व्यवस्था नहीं बदल सकते। उन्हें दंड स्वरूप जल्दी--जल्दी ट्रांसफर करके परेशान किया जाता है। उनके परिवारों को धमकी दी जाती है उन पर झूठे मुकदमे दर्ज किए जाते हैं। ऐसी स्थिति में अगर बेईमान अधिकारी को दंडित करने और ईमानदार अधिकारी को फर्जी और झूठे मुकदमे से संरक्षण देने के बीच संतुलन नहीं रखा गया तो, किसी भी लोकसेवक (पब्लिक सर्वेट) के लिए भय मुक्त होकर काम करना मुश्किल हो जाएगा। 'ईमानदार अधिकारी को संरक्षण देने और भ्रष्ट को कानून से ऊपर न होने का आभास कराने की जरूरत है। यह अदालत ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को भरोसा देती है कि वे समाज का कल्याण करने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर कार्य करें।

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11 दिन जेल में रखा, 10 साल मुकदमा लड़ा

अखिल भारतीय सेवा के 1969 बैच के अधिकारी राम लखन ने गैरकानूनी गिरफ्तारी और भ्रष्टाचार के झूठे मुकदमे में फंसाने से प्रतिष्ठा की हानि और आर्थिक नुकसान के लिए हर्जाना मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता 11 दिन जेल में रहा और 10 साल तक एक अदालत से दूसरी अदालत मुकदमा ल़़डता रहा जबकि उसके खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई आरोप साबित ही नहीं हुआ।

याचिकाकर्ता को हुई मानसिक और आर्थिक परेशानी के दस लाख रपए मुआवजा मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में याचिकाकर्ता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए सरकार को चूना लगाने की बात कही लेकिन उसके समर्थन में कोई सबूत नहीं पेश कर पाई। इससे पता चलता है कि सरकार ने बिना किसी सबूत के सिर्फ अपनी कार्रवाई को न्यायोचित ठहराने की कोशिश की है। क्या था मामला डॉ. राम लखन सिंह 22 सितंबर 2003 को नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ के सदस्य बने। उनका आरोप है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 15 अक्टूबर 2003 को हुई बैठक में उनसे प्रतापग़़ढ कंुडा की बेंती बर्ड सेंचुरी को डीनोटीफाइड करने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा।

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लेकिन उन्होंने बात नहीं मानी इस पर मुख्यमंत्री ने अपनी ही पार्टी के एक विधायक जगराम सिंह की शिकायत पर उनके खिलाफ सर्तकता जांच के आदेश दिए। राम लखन ने जांच को कोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी कि नियमों के मुताबिक राज्य विजिलेंस कमेटी से अनुमति नहीं ली गई है। कई दौर की मुकदमेबाजी चली। इस बीच राज्य सरकार ने राम लखन के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया। अंत में हाईकोर्ट ने राम लखन पर लगे सारे आरोप निरस्त किए। इसके बाद निचली अदालत ने भी उनके खिलाफ मुकदमा समाप्त कर दिया। इसके बाद राम लखन ने सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दायर कर हर्जाना मांगा था।


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