बच्चों की पढ़ाई छूटी, पत्नी की मौत... 100 रुपये की घूस के आरोप ने बर्बाद की रोडवेज के पूर्व कर्मचारी की जिंदगी
रायपुर के जागेश्वर प्रसाद अवधिया का जीवन 1986 में 100 रुपये की रिश्वत के झूठे आरोप में फंसने से बर्बाद हो गया। वेतन आधा रह गया बच्चों की पढ़ाई छूट गई और पत्नी का निधन हो गया। पड़ोसी वकील और निगम कर्मचारी ने मिलकर उन्हें फंसाया था क्योंकि उन्होंने फर्जी बिल बनाने से इनकार कर दिया था।

प्रज्ञा प्रसाद, जेएनएन। रायपुर में रहने वाले जागेश्वर प्रसाद अवधिया की जिंदगी साल 1986 में 100 रुपये रिश्वत के झूठे केस में फंसते ही बर्बाद हो गई। उनका और उनके परिवार का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। रिश्वत के मामले में फंसते जो जीवन सामने आया, वह उनके लिए असहनीय था। वेतन आधा रह गया। परिवार का भरण पोषण मुश्किल हो गया। बच्चों की पढ़ाई छूट गई और पत्नी बीमारी से असमय चल बसीं।
39 साल पहले के उस मनहूस दिन को याद करते अवधिया के रोंगटे आज भी खड़े हो जाते हैं, जब उनकी जेब में 50-50 रुपये के दो नोट जबरदस्ती रख दिए गए थे। उस वक्त वह मध्य प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम रायपुर के बिल सहायक थे। यह पूछने पर कि आरोप लगाने वाले अशोक कुमार वर्मा से उनकी क्या रंजिश थी।
कैसे लगा रिश्वत का आरोप?
इस पर वह बताते हैं कि उनके पड़ोसी थे श्रम न्यायालय में वकील काशी प्रसाद शर्मा। वह निगम के ही कर्मचारी अशोक वर्मा का केस लड़ रहे थे। अशोक वर्मा को चोरी के मामले में निलंबित कर दिया गया था। अशोक उनसे पुराने वेतन से संबंधित फर्जी बिल बनवाना चाहता था। वकील काशी प्रसाद शर्मा ने अशोक को उनके पास भेजा था, लेकिन किसी भी तरह का फर्जीवाड़ा करने से उन्होंने इनकार कर दिया। तब दोनों ने मिलीभगत कर उन्हें फंसा दिया। बता दें कि जागेश्वर को उनके घर के बाहर से 50-50 रुपये के नोट के साथ लोकायुक्त टीम ने गिरफ्तार किया था।
छोटे बेटे की शादी भी नहीं कर सके
अंग्रेजी में एक कहावत है, ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड’। इसका हिंदी अर्थ है, न्याय में देरी एक तरह का अन्याय है। 10 मई 1943 को जन्मे अवधिया के ऊपर जब रिश्वत का आरोप लगा तो उनकी उम्र सिर्फ 43 साल थी। बच्चों की सारी जिम्मेदारियां बची हुई थीं, लेकिन जो सपने उन्होंने बच्चों के लिए देखे थे, वे पूरे नहीं हुए।
जागेश्वर बताते हैं कि उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं और कोर्ट केस के चलते वह अपने छोटे बेटे की शादी भी नहीं कर सके, जो अब 52 साल के हो चुके हैं। अवधिया बताते हैं कि समाज और परिवार से जब सम्मान गया तो पत्नी को बहुत धक्का लगा। इसके चलते वह बीमार रहने लगीं और 1997 में उनका निधन हो गया।
अवधिया 1988 से 1994 तक निलंबित रहे। रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी नहीं मिली। उल्लेखनीय है कि 2004 में ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया, लेकिन हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया है।
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