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    जानें- क्यों जयशंकर ने अपनी किताब में आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई की तुलना महाभारत से की

    By TaniskEdited By:
    Updated: Wed, 01 Dec 2021 08:19 PM (IST)

    विदेश मंत्री एस.जयशंकर की बहुचर्चित पुस्तक द इंडिया वे स्ट्रेटजीज फार एन अनसर्टेन व‌र्ल्ड का हिंदी रूपांतरण परिवर्तनशील विश्व में भारत की रणनीति प्रकाशित हो कर आनलाइन व आफलाइन बिक्री के लिए उपलब्ध है। अंग्रेजी में लिखी पुस्तक काफी लोकप्रिय है।

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    विदेश मंत्री एस.जयशंकर की बहुचर्चित पुस्तक हिंदी में जारी।

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। किसी देश के विदेश मंत्री की तरफ से पद पर रहते हुए किताब लिखना अपने आप में ही विलक्षण घटना है। उस पुस्तक का हिंदी संस्करण आना तो विरले ही होता है। विदेश मंत्री एस.जयशंकर की बहुचर्चित पुस्तक 'द इंडिया वे : स्ट्रेटजीज फार एन अनसर्टेन व‌र्ल्ड' का हिंदी रूपांतरण 'परिवर्तनशील विश्व में भारत की रणनीति' प्रकाशित हो कर आनलाइन व आफलाइन बिक्री के लिए उपलब्ध है।

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    अंग्रेजी में लिखी पुस्तक पहले से ही विश्लेषकों, छात्रों व कूटनीतिकों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुकी है। विदेश मंत्री जयशंकर ने उम्मीद जताई है कि, 'हिंदी का प्रकाशन अधिक से अधिक लोगों में विदेश नीति के प्रति अभिरुचि जगाएगा।' इस किताब में जिस तरह से भारत की कूटनीतिक चुनौतियों को समृद्ध पारंपरिक ज्ञान व आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ कर देखा गया है उस तरह का प्रयास पहले कभी नहीं हुआ। पुस्तक का एक अध्याय 'श्रीकृष्ण का विकल्प' पाठकों के समक्ष बदलते भू-राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में भारत की आतंरिक व बाहरी चुनौतियों और इससे निपटने में राजनीतिक तौर पर जोखिम उठाने की अनिच्छा का सटीक विवरण है।

    आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई की तुलना महाभारत के युद्ध के मैदान में अर्जुन की स्थिति से की गई है। वे लिखते हैं - 'महाभारत के युग का भारत भी बहुध्रुवीय था, जिसमें प्रमुख ताकतें एक दूसरे को संतुलित करती थीं। लेकिन एक बार जब दो प्रमुख ध्रुवों के बीच प्रतिस्पर्धा को रोका न जा सका तो दूसरों को मजबूरन किसी न किसी पक्ष का समर्थन करना पड़ा। लैंडस्केप की तरह उस समय जिन विकल्पों को चुना गया उनकी हमारे समकालीन विश्व से भी कुछ समानताएं हैं।'

    इन सबमें सबसे ज्यादा महत्व श्रीकृष्ण का है जिन्होंने सही राह की चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीतिक मार्गदर्शन, सामरिक उर्जा और नीतिगत प्रज्ञा उपलब्ध कराई। जो अर्जुन बंधु बांधवों से लड़ने का संकल्प नहीं जुटा पाता है उसे श्रीकृष्ण राजी करते हैं। अर्जुन का उदाहरण अक्षमता की स्थिति नहीं थी और वही स्थिति कभी कभी भारत की भी होती है। उदाहरण के लिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हम प्राय: जोखिम उठाने के डर से मजबूर हो जाते हैं। ऐसी सोच बदलनी शुरू हो सकती है। यह तभी संभव है जब किसी राष्ट्रीय अभिजात्य वर्ग के पास अपनी बुनियादी सोच और प्रबल इच्छाशक्ति हो।

    विदेश मंत्री की तरफ से दिया गया यह संदर्भ इसलिए ज्यादा प्रासंगिक है क्योंकि हमने छह दिन पहले ही मुंबई हमले की 13वीं बरसी मनाई गई है। कई लोगों का मानना है कि पाकिस्तानी एजेंसियों की तरफ से पोषित इस आतंकी हमले को भारत ने एक साफ्ट स्टेट की तरह लिया। इसके प्रमुख साजिशकर्ता आज भी पाकिस्तान में आजाद हैं।

    तीन दशकों से भारतीय कूटनीति को अंदर से देख रहे सुब्रह्मण्यम जयशंकर जब यह लिखते हैं कि, 'अगर कोई एक विशेषता, जो उभरती हुई शक्ति को अवश्य विकसित करनी चाहिए, वह है उत्तरदायित्व का निर्वहन' तो यह भरोसा होता है कि कहीं न कहीं यह देश की नीति में भी परिलक्षित होगी। वह यह भी संकेत देते हैं कि भारत को अपनी कूटनीतिक चुनौतियों के लिए अपने विकल्प सामने लाने होंगे, अपना प्रत्युत्तर स्वयं तलाशना होगा। जयशंकर के शब्दों में, 'यह निश्चित तौर पर उस इंडिया में संभव है जो अब ज्यादा भारत है।'