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    'फिर से आतंकियों का लॉन्चिंग पैड न बन जाए', बांग्लादेश के हालात के बीच क्या करे भारत; एक्सपर्ट ने दिया जवाब

    Updated: Sat, 14 Dec 2024 06:30 PM (IST)

    बांग्लादेश में बदले हालातों ने भारत के लिए भी चिंता बढ़ा दी है। दोनों देशों के बीच अब तक दोस्ताना संबंध रहे हैं लेकिन वहां तख्तापलट के बाद परिस्थितियां तेजी से बदली हैं। ऐसे में भारत के लिए क्या चुनौतियां हैं और उसे अपनी सुरक्षा और हितों से जुड़ी चिंताओं के लिए क्या कदम उठाने चाहिए एक्सपर्ट सुशांत सरीन ने जागरण के साथ बातचीत में इसका विस्तृत जवाब दिया है।

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    सुशांत ने जागरण के साथ विशेष बातचीत में कई अहम सवालों के जवाब दिए। (Photo- Jagran)

    रुमनी घोष, नई दिल्ली। 16 दिसंबर ... इस दिन पूर्वी पाकिस्तान का चोला उतारकर बांग्लादेश नए कलेवर के साथ दुनिया के सामने आया था। भारत के लिए भी यह गर्वभरे पलों की याद दिलाने वाला 'विजय दिवस' है, लेकिन इस बार इस दिन विशेष को लेकर समान उत्साह नहीं है। दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई चौड़ी हो चुकी है। पाकिस्तान के लिए वीजा शर्तों को शिथिल करते ही बांग्लादेश प्रमुख मोहम्मद यूनुस के मीठे बोल के पीछे की छिपी 'मंशा' भी जाहिर हो चुकी है।

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    सामरिक विशेषज्ञ और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के वरिष्ठ फेलो सुशांत सरीन का सुझाव है कि 'बड़े भाई'-'छोटे भाई' की रिश्तेदारी निभाने के बजाय भारत को बॉर्डर मैनेजमेंट की ऐसी तैयारी करना चाहिए कि हमें दोबारा पिछली सदी के आखिरी दशक की उस दौर से गुजरना न पड़े, जिसमें बांग्लादेश को लांचिंग पैड बनाकर हमें अस्थिर बनाने की कोशिश की गई थी। हालात कुछ सामान्य होते नजर भी आए तो भी किसी पर 'भरोसा' करने के बजाय उस षड़यंत्र की ओर-छोर को तलाशना चाहिए, जिसके तहत बांग्लादेश, भारत और म्यांमार के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर ईसाई रियासत बनाने की फुसफुसाहट सुनाई पड़ रही है।

    सामरिक विषयों पर गहरी पकड़

    सुशांत सरीन ने अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया। भारतीय सिविल सर्विस की अर्हता प्राप्त कर इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस में एक साल अपनी सेवाएं दीं। फिर नौकरी छोड़कर विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं से जुड़े। वह पाकिस्तान, बलुचिस्तान सहित दक्षिण एशियाई देशों के सामरिक विषयों पर गहरी पकड़ रखते हैं। बांग्लादेश की ओर से भारत के लिए बढ़ती सामरिक चुनौतियों को लेकर दैनिक जागरण की समाचार संपादक रुमनी घोष ने उनसे विस्तृत चर्चा की।

    सवाल - बांग्लादेश सीमा पर अब तक तस्करी व मानव तस्करी ही बड़ी चुनौती थी। क्या अब यह चुनौतियां बदल जाएंगी?

    जवाब– भारत के लिए बड़ी चुनौती यह है कि कहीं बांग्लादेश एक बार फिर पिछली सदी के आखिरी दशक की तरह आतंकियों का लांचिंग पैड न बन जाए। वर्ष 1977 से 1981 के बीच का दौर था और बांग्लादेश के छठे राष्ट्रपति आर्मी चीफ रहे जियाउर रहमान थे। पाकिस्तान के सहयोग से कट्टरपंथी ताकतों को बांग्लादेश में शह दी जा रही थी। नौवें दशक में हूजी और हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी जैसे मूल आतंकवादी संगठनों ने विश्वभर में कट्टरवादी सोच के साथ पैर फैलाना शुरू कर दिया था। हुसैन मुहम्मद इरशाद के राष्ट्रपति रहने के दौरान इन दोनों संगठनों को बांग्लादेश में पनाह मिली और इन्होंने बांग्लादेश में जमात उल मुजाहिदीन जैसे कई संगठन खड़े कर दिए थे।

    वर्ष 1991 से 1996 के बीच खालिदा जिया सरकार में आतंकी संगठनों ने बांग्लादेश में अपना बेस बना लिया था और बांग्लादेश ट्रांजिट रूट की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। यही नहीं भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के उग्रवादी संगठनों को भी बांग्लादेश में संरक्षण मिल रहा था। उन्होंने वहीं पर बेस बना लिया था। वह बांग्लादेश के रास्ते भारत में आते और आतंकी घटनाओं को अंजाम देकर वापस वहीं लौट जाते थे। कूटनीतिक रूप से भी यह हमारी कमजोरी बन गई थी। जब किसी देश को भारत को अस्थिर करना होता तो वह पाकिस्तान का समर्थन करते और पाकिस्तान बांग्लादेश के जरिये हमारे लिए चुनौती पैदा करता रहता।

    सवाल - फिर काबू कैसे पाया गया? शेख हसीना सरकार की क्या भूमिका रही?

    जवाब – इस सवाल का जवाब एक घटना के उल्लेख के साथ करना चाहूंगा। खालिदा जिया सरकार के कार्यकाल में बड़ी मात्रा में अवैध सामान पाकिस्तान से बांग्लादेश आता था। गलती से चटगांव में हथियार भरे हुए 10 ट्रक पकड़े गए थे। वैश्विक मंच पर यह मामला काफी उछला था। खुलकर यह बात सामने आ गई थी कि इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है। इन हथियारों का उपयोग भारत में आतंक फैलाने के अलावा आवामी लीग के नेताओं को निशाना बनाने के लिए भी किया जा रहा था। इस घटना की वजह से शेख हसीना यह समझ गई थीं कि भारत से रिश्ते बेहतर करने में बांग्लादेश का बहुत फायदा है। भारत की अपेक्षाएं सिर्फ सुरक्षा से जुड़ी हुई थीं, क्योंकि इसकी वजह से गंभीर चुनौती मिल रही थी। उन्हें अहसास हुआ कि यदि ठीक कर दिया जाए तो भारत भी खुश और आवामी लीग के लिए भी बेहतर होगा। सरकार में आते ही उन्होंने तीन बड़े कड़े कदम उठाए।

    पहला, हूजी और हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों पर लगाम कसी। उनके पनाहगाह को नष्ट कर बांग्लादेश से बाहर कर दिया। हालांकि संतुलन बनाए रखने के लिए स्थानीय आतंकी संगठनों के साथ समझौता किया और उन्हें ढील भी देकर रखी। दूसरा, भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के अलगाववादी संगठनों को खदेड़ दिया। तीसरा और सबसे बड़ा कदम यह उठाया कि पाकिस्तान से आने वाले लोगों और सामानों पर कड़ी निगरानी बिठा दी। यानी आमतौर पर जब भी एक देश से दूसरे देश में सामान भेजा जाता है तो एक रैंडम चेकिंग होती है, लेकिन पाकिस्तान से आने वाले हर सामान की बारीकी से जांच होती थी।

    यहां तक कि सीधी उड़ान भी बंद कर दी। जो अभी तक जारी है। लोग अरब देशों या थाईलैंड के जरिये ही बांग्लादेश पहुंच सकते थे। इससे भारत को काफी राहत मिली। ऐसा नहीं कि शेख हसीना सरकार में सबकुछ बेहतर था। शेख हसीना कभी भारत की पिट्ठू नहीं रहीं। उनके दौर में भी हिंदुओं या अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हुए। मंदिर तोड़ने की घटनाएं हुईं। पलायन भी हुआ, लेकिन सुरक्षा चुनौतियां कम होने की वजह से भारत और हसीना सरकार के बीच रिश्ते बेहतर बने रहे।

    सवाल- बांग्लादेश ने तो पाकिस्तान के लिए वीजा नियमों को शिथिल कर दिया है, यानी वहां से एंट्री आसान होगी। इसे किस तरह से देखना चाहिए?

    जवाब – स्थिति की गंभीरता के संकेत मिलने लगे हैं। पाकिस्तान के लिए वीजा नियमों को शिथिल कर दिया है। वहां से आने वाले सामानों की जांच भी शिथिल कर दी गई है। कराची में ढाका के उप उच्चायुक्त एसएम महबूबुल आलम ने हाल ही में यह जानकारी सार्वजनिक की है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सीधी उड़ानें जल्द ही फिर से शुरू होने वाली हैं। चौथी और सबसे गंभीर बात यह है कि दोनों देशों की सेनाओं के बीच समन्वय बिठाने की कोशिश हो रही है।

    हालांकि यह बात अभी चर्चाओं में है, लेकिन इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। सिर्फ यही नहीं, एक प्रेशर ग्रुप भी अलग से काम कर रहा है, जो दबाव बना रहा है। एक तरफ तो बांग्लादेश की वर्तमान सरकार इस तरह की भारत विरोधी कदम उठा रही है, दूसरी तरफ बांग्लादेश सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस मीठे बोल बोलकर वैश्विक मंच पर एक अलग तस्वीर बनाने की कोशिश में जुटे हैं। वह कह रहे हैं बांग्लादेश में बड़ा बदलाव हुआ है। भारत को यह समझना चाहिए। परेशानी यह है कि इस प्रेशर ग्रुप में भारत के कई बुद्धिजीवी नोबल पुरस्कार विजेता अमृत्य सेन, कौशिक बसु जैसे लोग भी शामिल हैं, जो यूनुस के हक में बोलते रहे हैं।

    सवाल- विश्व के बाकी हिस्सों में एक अस्थिरता का माहौल है। अब बांग्लादेश को माध्यम बनाकर दक्षिण एशिया में भी वही स्थिति पैदा करने की कोशिश तो नहीं है?

    जवाब – बांग्लादेश में तख्ता पलट के पीछे सामाजिक, आर्थिक कारणों के साथ-साथ हसीना सरकार की ढेरों गलतियां शामिल हैं, लेकिन षड़यंत्र की थ्योरी को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। सेंट मार्टिन द्वीप को लेकर अमेरिका के हस्तक्षेप की बात तो सामने आई ही थी। एक और बात इन दिनों कूटनीतिक गलियारों की चर्चा का विषय बनी हुई है। इस थ्योरी के तहत बांग्लादेश, भारत के पूर्वोत्तर हिस्से का एक भाग और म्यांमार का एक हिस्सा मिलाकर एक ईसाई रियासत बनाने की बात है।

    इस षड़यंत्र के कोई दस्तावेजी प्रमाण भले ही नहीं हों, लेकिन अमेरिकी दूतावास में पदस्थ रहे कई सेवानिवृत्त राजनयिकों को बांग्लादेश में अलग-अलग प्रोजेक्ट्स या कंपनियों के ठेके दिए जा रहे हैं। इसके साथ ही मिजोरम के मुख्यमंत्री पीयू लालदुहोमा द्वारा अमेरिका में दिए गए उस भाषण को जोड़कर भी देखा जा रहा है, जिसमें उन्होंने ईसाई राज्य की मांग उठाई थी। यह सब कड़ियां इस ओर इशारा करती हैं कि इस षड़यंत्र के जरिये अलगाववादी ताकतों को बल दिया जा सकता है और एशिया को अस्थिर किया जा सकता है।

    सवाल- भारत को क्या करना चाहिए?

    जवाब – यदि यह भारत के लिए चुनौती है तो यही समय तैयारी का बेहतरीन मौका भी है। हमें बॉर्डर मैनेजमेंट को बहुत मजबूत करना होगा। बॉर्डर मैनेजमेंट सिर्फ फेंसिंग पर ही नहीं रुकती है। घुसपैठ हुई तो लोगों को पहचान कैसे करेंगे। पड़ोसी देश को भी बॉर्डर मैनेजमेंट के लिए तैयार करना होगा। पैसे देकर घुसपैठ करने की अनुमति देने वाले अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो। इसके बहाने बांग्लादेश ही नहीं बल्कि नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका जैसे देशों को एक साफ संदेश देने की जरूरत है।

    हमने हाल ही के दिनों में देखा कि इन देशों की यह अपेक्षा रहती है कि भारत बड़े भाई की भूमिका में हर वक्त मदद करते रहे, लेकिन जब बात भारत की अपेक्षाओं की आती है तो उसको लेकर विरोध दर्ज करवाने लगते हैं। चीन के साथ यह स्थिति नहीं है। यह सभी देश कूटनीतिक तौर पर कोई भी कदम उठाने से पहले यह ध्यान रखते हैं कि चीन को यह अच्छा लगेगा या नहीं। अब समय आ गया हमें भी यह अहसास करना चाहिए कि बगैर बोले दुनिया जानें कि भारत की किस देश से क्या अपेक्षाएं हैं। अब चाहे वह कूटनीतिक रूप से हो या फिर किसी और तरीके से।

    सवाल- कहा जा रहा है कि बांग्लादेश में तालिबान जैसी सरकार आ जाएगी?

    जवाब – तालिबान सरकार की तुलना में बांग्लादेशी कट्टरपंथी सरकार ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। बेशक तालिबान सरकार की सोच से भारत कभी इत्तेफाक नहीं रखता, लेकिन बीते पांच साल में वहां कभी भी भारत विरोधी गतिविधियां नहीं चलीं। भारत के लिए खतरा पैदा करने वाले आतंकी संगठनों को अपनी धरती में पनाह नहीं दी, बल्कि पाकिस्तान पर नकेल कसी। वह भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं। भारत सरकार भी धीरे-धीरे गंभीरता के साथ आगे बढ़ रही है। बांग्लादेश के साथ भारत की सबसे लंबी 4000 किलोमीटर से ज्यादा की स्थलीय सीमा जुड़ी है। सिर्फ फेंसिंग से काम नहीं होगा। दोनों ओर एक जैसे लोग हैं। पहचानना मुश्किल है। तालिबान की आबादी चार करोड़ और बांग्लादेश की २० करोड़ हैं। तालीबान की अर्थव्यवस्था 15 बिलियन और बांग्लादेश की 300-350 बिलियन है। ... इसलिए बांग्लादेश को लेकर चिंता तालिबान से ज्यादा बड़ी है।

    सवाल - किसी और तरीके से क्या मतलब है?

    जवाब – बिना शोरगुल के बांग्लादेश के अंदर अपना प्रभाव बढ़ाना होगा। वहां ऐसे सिस्टम, लोग या संस्थाएं होना चाहिए, जो वहां की राजनीति व समाज के खिलाफ खड़े हो सके। यह करने की सख्त जरूरत है। अभी तक भारत ने इसे हस्तक्षेप मानते हुए इन तरीकों को नहीं अपनाया है, लेकिन अब करना जरूरी है। इसका मतलब यह नहीं है कि कोई फौजी कार्रवाई करें, लेकिन यदि वहां की धरती से कोई बड़ा आतंकी गुट आपरेट करने लगे तो उसके खिलाफ सिर्फ बातचीत से काम नहीं चलेगा। अंग्रेजी में एक मुहावरा है....पाजिबल डिनायबिलिटी (Plausible deniability), यानी ऐसी कार्रवाई, जिसका कोई रिकार्ड नहीं होगा।

    सवाल- बांग्लादेशी नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में संचार के समुद्री चैनल व व्यापार को समुद्री डाकुओं और अन्य खतरों से मुक्त रखने में अहम भूमिका निभाती है। क्या वह अब भारत के लिए चुनौती पैदा कर सकती है?

    जवाब - सब मेरिन केबल को नुकसान पहुंचाना आसान नहीं है। इससे सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश की भी केबलें हैं। अन्य देशों के भी संचार जुड़े हुए हैं। ऐसी स्थितियां बनने पर बांग्लादेश को अन्य देशों व कंपनियों का भी विरोध सहना पड़ेगा, जिसके लिए वह तैयार नहीं है।

    सवाल- त्रिपुरा में बने डंबूर बांध जैसे प्रोजेक्ट्स भी क्या परेशानी का कारण बन सकते हैं?

    जवाब - नहीं, आरोप में कोई दम नहीं है। बाढ़ किसी भी स्तर पर मानव निर्मित नहीं थी। इस बार जब बाढ़ की स्थिति बनी थी तो बांग्लादेश के रहवासियों ने ही कहा कि पानी नहीं छोड़ा जाता तो बांध टूट जाता।

    सवाल- क्या ट्रंप के पद ग्रहण के बाद स्थितियां बदलगी?

    जवाब – अमेरिका के लिए बांग्लादेश तब तक अहम नहीं है, जब तक उस धरती पर आतंकवादी संगठन बड़े पैमाने पर पनाहगाह न बन जाए या फिर चीन अपना दखल बढ़ा रहा हो। यदि दोनों में से कोई स्थितियां बनती हैं तो ही अमेरिका हस्तक्षेप करेगा, वरना उसके लिए बांग्लादेश कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।