चीन-पाक आर्थिक गलियारे के जरिए भारत को घेरने का दांव पाक को पड़ेगा भारी
सीपीइसी के जरिए भारत को घेरने में चीन और पाकिस्तान दोनों जुटे हुए हैं। लेकिन जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान को खास फायदा नहीं होने वाला है।
नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क] । चीन की चाल और पाकिस्तान की नफरत का सामना भारत आजादी मिलने के बाद से ही करता आ रहा है। भारत पर दबाव बनाने के लिए चीन ने न सिर्फ पंचशील के सिद्धांतों को दरकिनार किया बल्कि हिंदी चीनी भाई भाई का नारा बुलंद कर पीठ में खंजर भोंक दिया। इसके अलावा 1965 और 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के साथ चीन खड़ा रहा। चीन और पाकिस्तान के इन ऐतिहासिक कुटिल संबंधों के बाद दोनों देश एक बार फिर सक्रिय रूप से आर्थिर गलियारे के जरिए भारत को घेरने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन 2015 में चीन दौरे के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने साफ कर दिया कि भारत सरकार चीन -पाक आर्थिक गलियारे का पुरजोर विरोध करती है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में गिलगिट-बाल्टिस्तान में चल रही परियोजना का भी विरोध किया था। इन सबके बावजूद चीन-पाकिस्तान अपनी योजनाएं आगे बढ़ाते गए। अब चीन काशगर-ग्वादर को वन बेल्ट-वन रोड की योजना को साकार करने का मार्ग मान रहा है, जिसमें श्रीलंका, बांग्लादेश और अफगानिस्तान भी जुड़े हुए हैं। भारत इस समुद्री सिल्क मार्ग से जुड़ने का इच्छुक नहीं है जो भारत के लिए हानिकारक हो सकता है। लेकिन जानकारों का कहना है कि आर्थिक गलियारे से पाकिस्तान को कोई विशेष फायदा नहीं मिलने वाला है।
क्या है आर्थिक गलियारा ?
दुनिया की अधिकतर आबादी उत्तरी गोलार्ध में निवास करती है, इसलिए नए बाजारों की खोज में शुरू से ही समुद्रों का सहारा लिया गया। भारत भी उसी खोज का परिणाम रहा। कुछ एक अपवाद जैसे ब्रिटेन के महाशक्ति रहने के दौरान व्यापार दक्षिण से उत्तर की ओर हुआ, लेकिन ये सामान्य रूप से उत्तर से दक्षिण की ओर ही होता आया है। इसी तरह का एक व्यापार मार्ग मध्य एशिया से पाकिस्तान, उत्तरी भारत में होता हुआ प्रायद्वीपीय भारत तक पहुंचा करता था।
भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण उत्तरी भारत, अफगानिस्तान जैसे बाजारों से कट गया। पाकिस्तान को भी नुकसान हुआ। 1991 में भारत में उदारीकरण के साथ ही नए आर्थिक द्वार खुले और तब से पाकिस्तान को भारत के साथ आर्थिक और व्यावसायिक द्वार खोलने पड़े। चीन-पाकिस्तान के इस आर्थिक गलियारे ने पारंपरिक उत्तर-दक्षिण व्यापार पथ को पलटकर रख दिया है। पाकिस्तान ने ऐसे आर्थिक और भौगोलिक मार्ग को चुन लिया है, जिसका नक्शा अब चीन तय करता रहेगा।
बर्बादी का चीन-पाक आर्थिक गलियारा
1. सीपीईसी के बुनियादी ढांचे और ऊर्जा परियोजनाओं के जरिए 46 अरब डॉलर के निवेश की उम्मीद है।
2. इस प्रोजेक्ट की शुरूआत 2015 में हुई थी। अगर ये पूरा होता है तो इसके जरिए तीन हजार किलोमीटर के सड़क नेटवर्क तैयार के साथ-साथ रेलवे और पाइपलाइन लिंक भी पश्चिमी चीन से दक्षिणी पाकिस्तान को जोड़ेगा।
3. सीपीईसी, चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और 21वें मेरीटाइम सिल्क रोड प्रोजेक्ट का हिस्सा है। चीन की योजना इन दोनों विकास योजनाओं को एशिया और यूरोप के देशों के साथ मिलकर आगे बढ़ाने की है।
4. चीन द्वारा बनाया जा रहा ये कॉरिडोर बलूचिस्तान प्रांत से होकर गुजरेगा, जहां दशकों से लगातार अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं। इसके साथ-साथ गिलगिट-बल्टिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का इलाका भी शामिल है।
5. पाकिस्तान को उम्मीद है कि दो हिस्सों में बनने वाले इस प्रोजक्ट के जरिए उन्हें वित्तीय विकास और ऊर्जा उत्पादन में सहायता मिलेगी। वास्तव में इस कॉरिडोर के जरिए पाकिस्तान में 35 बिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट होगा, इनमें कोयला और एलएनजी आधारित थर्मल ऊर्जा प्रोजक्ट शामिल हैं।
6. चीन को उम्मीद है कि इस कॉरिडोर के जरिए वह अपनी ऊर्जा को तेजी से फारस की खाड़ी तक पहुंचा सकता है। कॉरिडोर के जरिए पश्चिमी चीन में वित्तीय विस्तार करने में मदद मिल सकती है। इसके साथ-साथ चीन की योजना अपने गिलगिट-बल्टिस्तान में अपने पैर जमाने की है, जहां लगातार अलगाववादी आंदोलन हो रहे हैं।
7. सीपीइसी प्रोजेक्ट के लिए पाकिस्तान में मौजूद चीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए करीब 17 हजार पाकिस्तानी सैनिक तैनात किए गए हैं। ये हाल अप्रैल से पहले का था लेकिन अप्रैल के बाद चार हजार और पाकिस्तानी सैनिकों की चीनी अधिकारियों की सुरक्षा में पाकिस्तान ने लगाए गए हैं। खास तौर पंजाब प्रांत में उनकी सुरक्षा का खास ख्याल रखा गया है।
8- पाकिस्तान और चीन उपग्रह के जरिए सीपीइसी प्रोजेक्ट पर नजर रखेंगे। ये प्रोजेक्ट जून 2018 में लॉन्च किए जाने की उम्मीद है।
9- अगस्त में गिलगिट-बल्टिस्तान और पीओके लोगों ने पाकिस्तान और चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया है। उनका आरोप है कि दोनों देश अपने फायदे के लिए इस इलाके के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। उनका आरोप है कि इस योजना में चीन के कामगारों को लगाया गया है, जबकि स्थानीय युवा बेरोजगार हैं।
10- सीपीइसी परियोजना के तहत चीन पीओके के रास्ते ग्वादर पोर्ट को सड़क, रेलवे और पेट्रोलियम पाइपलाइनों के मिले-जुले नेटवर्क से जोड़ने योजना बना रहा है
भारत और दक्षिण एशिया पर इसका प्रभाव
जानकारों का कहना है कि चीन के साथ ये समझौता पाकिस्तान के लिए भी अनवरत संघर्ष का विषय बना रहेगा। पाकिस्तान को इससे लाभ होने की भी कोई किरण दिखाई नहीं दे रही है। यह एक तरह से चीन ने पाकिस्तान में निवेश किया है। है, जिसे लौटाया जाना है। इसके अलावा चीन का निवेश पाकिस्तानी जनता के किसी काम का नहीं होगा, क्योंकि यह चीनी बैंकों से सीधा पाकिस्तान में उसकी निर्माणाधीन उन परियोजनाओं पर लगाया जाएगा, जिनमें चीनी लोग ही काम करेंगे।
चीन के लिए यह समझौता अवश्य ही बहुत लाभ का है। इससे चीन को हिंद महासागर में प्रवेश मिल गया है। इसके माध्यम से चीन ने भारत और उसके पड़ोसी देशों के अलावा पश्चिम एशिया में अपना राजनैतिक और सैनिक प्रभुत्व बनाने के लिए एक उपनिवेश स्थापित कर लिया है। यही कारण है कि इसे चीनी ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह देखा जा रहा है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन और पाकिस्तान की सेनाओं का मिलन भी भारत के लिए चिंता का दूसरा विषय है।
बहरहाल पाकिस्तान ने इस पूर्व-पश्चिम गलियारे को अपनाकर न केवल उत्तर-दक्षिण व्यापार पथ को ठुकरा दिया है, बल्कि दक्षिण-एशिया की ओर से मुँह भी मोड़ लिया है। दरअसल पाकिस्तान अपने को पश्चिम एशिया का ही भाग समझता है और वह शायद चीन के राजनैतिक-आर्थिक क्षेत्र का हिस्सा बनकर गौरव का अनुभव भी करता है। कुल मिलाकर इसका अर्थ यही है कि आने वाले दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था को चाहे जितना विस्तार मिले, पाकिस्तान इस व्यापार-पथ में रुचि नहीं दिखाएगा।भारत चाहे तो राजनैतिक और कूटनीतिक दांव पेंच लगाकर पाक-चीन गलियारे में अड़चन लगा सकता है, परंतु ऐसा संभव हो सके यह जरूरी नहीं है।
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