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Exclusive: कोरोना की दूसरी लहर, वायरस के म्यूटेशन और वैक्सीनेशन पर IGBI के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल से बातचीत

कोरोना वायरस के नए संस्करण कैसे काम कर रहे हैं? क्या वैक्सीनेशन से कोरोना की लहर थमेगी या वैक्सीन की तीसरी डोज भी देनी होगी? ऐसे तमाम जरूरी सवालों को लेकर इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल से बातचीत।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 01 Jun 2021 10:18 PM (IST)Updated: Wed, 02 Jun 2021 07:11 AM (IST)
Exclusive: कोरोना की दूसरी लहर, वायरस के म्यूटेशन और वैक्सीनेशन पर IGBI के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल से बातचीत
IGIB के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, जेएनएन। SARS-CoV-2 या कोरोना की दूसरी लहर के वायरस में क्या म्यूटेशन हो रहे हैं? वायरस के नए संस्करण कैसे काम कर रहे हैं? क्या वैक्सीनेशन से कोरोना की लहर थमेगी या वैक्सीन की तीसरी डोज भी देनी होगी? ऐसे तमाम जरूरी सवालों को लेकर इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल से जागरण न्यू मीडिया के सीनियर एडिटर Pratyush Ranjan ने की बात। डॉ अग्रवाल, द लैंसेट एंड फाइनेंशियल टाइम्स कमीशन ऑन गवर्निंग हेल्थ फ्यूचर्स में सह-अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 

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विदेशी पोर्टल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के कारण हमें इस पर बहुत सारे प्रश्न मिल गए हैं। पहला सवाल इसी से जुड़ा है- एंटीबॉडी डिपेंडेंट एन्हांसमेंट (एडीई) क्या है? कृपया हमें हमारे पाठकों को इसके बारे में बताएं।

जवाब- जी, देखिए एडीई या एंटीबॉडी डिपेंडेंट एन्हांसमेंट में दो की-वर्डस हैं, एंटीबॉडी और एन्हांसमेंट। एंटीबॉडी, हमारे शरीर में तब डेवलप होती है, जब हमारे शरीर में किसी वायरस या बैक्टीरिया का हमला होता है। ये एंटीबॉडी वायरस से बाइंड कर उसे न्यूट्रलाइज़ या विफल करते हैं। कई बार ऐसा होता है, जब हमारी एंटीबॉडी वायरस को न्यूट्रलाइज़ नहीं कर पा रही होती है। ऐसा अक्सर तब होता है, जब वायरस तेजी से म्यूटेट कर रहा हो। डेंगू के केस में ऐसा देखने को मिलता है। लेकिन मेरी राय में कोरोना के केस में अभी एडीई की अवस्था नहीं देखने को मिली है। 

क्या एडीई मानव शरीर में बीमारी के कारण होता है?

जवाब- इसे हम डेंगू के उदाहरण से समझते हैं, जब हमारे शरीर में पहली बार संक्रमण होता है तो हमारा शरीर नेचुरल एंटीबॉडी बनाता है। लेकिन जब हम डेंगू के दूसरे वायरस से संक्रमित हो जाते हैं और हमारी पिछली बार बनी हुई एंटीबॉडी इस वायरस पर कारगर न हो तो ये एडीई है। हालांकि कोरोना के केस में अभी ऐसा देखने को नहीं मिला है। शायद अभी कोरोना वायरस का उतना म्यूटेशन नहीं हुआ है। 

एंटीबॉडी डेवलप होने का क्या प्रॉसेस है, और क्या कोरोना इन्फेक्शन और वैक्सीन दोनों एक तरह की ही एंटीबॉडी बनाते हैं?

जवाब- देखिए, एंटीबॉडी हमारे शरीर के इम्यून सेल से ही बनती है। नेचुरल इंफेक्शन में शरीर पर पूरे वायरस का असर होता है, उसके बाद जो एंटीबॉडी बनती है, वो पूरे वायरस से बनती है। वहीं वैक्सीन वायरस के अलग–अलग हिस्से को लेकर बनाई जाती है, पर ये भी एक तरह से शरीर पर वायरस का आर्टिफिशियल इंफेक्शन करवाने जैसा है। इससे भी उतनी ही असरदार एंटीबॉडी बनती है। 

वैक्सीन के दोनों डोज के बीच में जो अंतराल है, उसका कितना प्रभाव वैक्सीन के असर पर पड़ेगा?

जवाब- ये अलग– अलग वैक्सीन के फंक्शन पर डिपेंड करता है। कोवैक्सीन मृत वायरस से बनी है। इसका पहला डोज 40 फीसदी ही एंटीबॉडी बनाता है, इसलिये इसके दोनों डोज करीब 28 दिन के अंतर पर देने चाहिए। लेकिन कोविशील्ड में वायरस एक एडिनो वायरस के थ्रू शरीर में प्रवेश करता है और फिर स्पाइक प्रोटीन बनाता है। ये पहले डोज में लगभग 80 फीसदी एंटीबॉडी बना देता है, पर इसमें समय लगता है। इसलिये इसकी दूसरी डोज अधिक अंतराल पर देना सही रहता है। 

क्या इस बात को भी मापा जा सकता है कि वैक्सीन लेने के बाद हमारे शरीर में कितनी एंटीबॉडी बनी है?

जवाब- जी हाँ, इसे क्वान्टीटेटिव स्पॉइक प्रोटीन टेस्ट से नापा जा सकता है। लेकिन सवाल ये है कि ये जानना कितना जरूरी है। हालांकि इससे ज्यादा जरूरी है सीएमआई को नापना, जो अभी नहीं हो रहा है। सामान्यतः वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद शरीर में 90 फीसदी के आस-पास एंटीबॉडी बन जाती है।

वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी कोरोना होने की कितनी संभावना है?

जवाब- वायरस म्यूटेट होकर एंटीबॉडी को विफल करते आता है, चाहे वो कॉमन फ्लू हो या और कोई वायरस, जो आपको बार-बार होता रहता है। हां, वैक्सीन लेने के बाद इनके गंभीर होने के चांस कम हैं।

 कोविड-19 की पहली लहर में बच्चों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। लेकिन दूसरी लहर में हमने ऐसे कई मामले देखे, जहां भारत में नवजात शिशु भी नए संस्करण से संक्रमित हो गए। उसका क्या कारण था?

जवाब- ऐसा नहीं है कि पिछली लहर में बच्चे संक्रमित नहीं हुए। संक्रमित हुए थे, लेकिन गंभीर केस उतने नहीं बने। इसका एक कारण पिछली बार का सख्त लॉकडाउन भी था। अभी भी गंभीर केस वाले बच्चों की संख्या काफी कम है। 

भारत में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए टीका कब उपलब्ध होगा?

जवाब- आईसीएमआर पूरी तरह से प्रयासरत है, कोविशील्ड को ट्रॉयल की अनुमति मिल गई है। इसके अलावा अमेरिका में फाइज़र भी बच्चों को वैक्सीन लगा रहा है। 

क्या आपको तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए आने वाले दिनों में तीसरी खुराक की आवश्यकता होने की कोई संभावना दिखती है?

जवाब- कोरोना इंफेक्शन के पीक के ग्राफ को वेव या लहर कहते हैं। जब तक अधिकांश आबादी में इम्यूनिटी डेवलप नहीं हो जाती, ये वेव आती रहेगी। जब कई छोटी वेव देश में कई जगह एक साथ आती हैं तो यही लहर बन जाती है। दिल्ली में हम चौथी वेव का असर देख रहे हैं।

काले फंगस का क्या कारण है और एक ऐसे व्यक्ति के लिए क्या सावधानियां आवश्यक हैं, जो कोविड पॉजिटिव है या अभी-अभी ठीक हुआ है?

जवाब- काला फंगस या ब्लैक फंगस म्यूकरमाइकेसिस है, म्यूकोर एक फंगस का नाम है। ये अधिकतर तो डायबिटिक पेशेंट में होता है। लेकिन कई बार स्टीरॉयड के ओवर डोज के कारण भी यह बनती है, शायद कोरोना केस में ऐसा ही हो रहा है। ऐसा कई बार एचआईवी के केस में भी देखा गया है। कोशिश करनी चाहिए कि सही मात्रा में ही स्टीरॉयड की डोज दें। 

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और परिवार समूहों पर इतनी असत्यापित या फर्जी खबरें साझा की जा रही हैं। इन पर दर्शकों के लिए आपका क्या संदेश है?

जवाब- जी, इसके लिए मेरा एक ही संदेश है कि ऐसे मैसेजेज़ को डिलीट कर देना चाहिए और आगे फॉरवर्ड न करें। जो सत्यापित स्त्रोत हैं, ऐसी जानकारी केवल उन्हीं की लें। डब्लूएचओ, आईसीएमआर या भारत सरकार की ओर से जारी सूचनाओं पर ही ध्यान दें।

डॉ. अनुराग अग्रवाल से पूरी बातचीत यहां देखें


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