उपराष्ट्रपति उम्मीदवार पर बी सुदर्शन रेड्डी पूर्व न्यायाधीशों में मतभेद, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से बचने की अपील
विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को लेकर पूर्व न्यायाधीश दो भागों में बंट गए हैं। 56 पूर्व न्यायाधीशों ने बयान जारी कर कहा कि न्यायाधीशों को राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में नहीं पड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीतिक घटनाक्रम पर पूर्व न्यायाधीशों द्वारा प्रतिक्रिया देने की निंदा की जानी चाहिए। उनका मानना है कि आलोचना से न्यायिक स्वतंत्रता को खतरा नहीं है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विपक्ष के उप राष्ट्रपति उम्मीदवार जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी पर पूर्व न्यायाधीश दो फाड़ हो गए हैं। कुछ दिन पहले कुछ पूर्व न्यायाधीशों और वरिष्ठ वकीलों ने बयान जारी कर जस्टिस रेड्डी के सलवा जुडूम के फैसले पर गृह मंत्री अमित शाह द्वारा टिप्पणी किए जाने पर सवाल उठाया था और अब 56 अन्य पूर्व न्यायाधीशों ने जवाबी बयान जारी कर उस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है तथा पूर्व न्यायाधीशों से राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में न पड़ने की अपील की है।
पूर्व सीजेआइ रंजन गोगोई और पी. सथाशिवम सहित 56 पूर्व न्यायाधीशों ने एक बयान जारी कर हर राजनीतिक घटनाक्रम पर पूर्व न्यायाधीशों के एक समूह द्वारा प्रतिक्रिया देने की निंदा की है। उन्होंने कहा है कि न्यायाधीशों को राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप में नहीं पड़ना चाहिए। न्यायपालिका को इन सब चीजों से अलग रखा जाना चाहिए।
56 पूर्व न्यायाधीशों ने जारी किया बयान
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के सेवानिवृत 56 पूर्व न्यायाधीशों के इस दूसरे समूह ने जारी बयान में कहा है कि वे इस देश के पूर्व न्यायाधीशों के रूप में सेवानिवृत न्यायाधीशों और कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा हाल में जारी किए गए बयान पर अपनी कड़ी असहमति दर्ज कराने के लिए बाध्य हैं। नए समूह द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि ये एक पैटर्न बन गया है कि जब भी कोई बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम होता है तो एक ही वर्ग से बयान आते हैं। ये बयान न्यायिक स्वतंत्रता की भाषा की आड़ में राजनीतिक तरफदारी होती है।
न्यायिक स्वतंत्रता की आड़ का दुरुपयोग
56 पूर्व न्यायाधीशों के समूह ने जारी बयान में कहा है कि ये प्रचलन उस संस्था के लिए बड़ा नुकसानदेह है जिसमें कभी उन्होंने सेवा की थी। जारी बयान में कहा गया है कि एक सेवानिवृत न्यायाधीश ने अपनी इच्छा से भारत के उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने का फैसला किया है। उन्होंने विपक्ष द्वारा समर्थित उम्मीदवार के रूप में राजनीतिक क्षेत्र में कदम रखा है। ऐसा करने के बाद उन्हें राजनीतिक बहस के क्षेत्र में किसी भी अन्य प्रतिभागी की तरह अपनी उम्मीदवारी का बचाव करना होगा। इससे इतर सुझाव देना लोकतांत्रिक संवाद को दबाना और राजनीतिक सुविधा के लिए न्यायिक स्वतंत्रता की आड़ का दुरुपयोग करना है।
आलोचना से न्यायिक स्वतंत्रता को कोई खतरा नहीं
जारी बयान में कहा गया है कि किसी राजनीतिक उम्मीदवार की आलोचना से न्यायिक स्वतंत्रता को कोई खतरा नहीं है। न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को वास्तव में तब नुकसान पहुंचता है, जब पूर्व न्यायाधीश बार-बार पक्षपातपूर्ण बयान देते हैं, जिससे यह आभास होता है कि संस्था स्वयं राजनीतिक लड़ाई से जुड़ी हुई है। इन चीजों और कुछ लोगों की गलतियों के कारण न्यायाधीशों का बड़ा समूह पक्षपातपूर्ण गुट के रूप में चित्रित हो जाता है। यह न तो उचित है और न ही भारत की न्यायपालिका या लोकतंत्र के लिए अच्छा है। इसलिए, हम अपने बंधु न्यायाधीशों से पुरजोर अपील करते हैं कि राजनीति से प्रेरित बयानों में अपना नाम न डालें।
जिन लोगों ने राजनीति का रास्ता चुना है, उन्हें उस क्षेत्र में अपना बचाव करने दें। न्यायपालिका को इन चीजों से दूर रखा जाना चाहिए। बयान जारी करने वाले 56 न्यायाधीशों में जस्टिस रंजन गोगोई और सथाशिवम के अलावा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके सीकरी, एमआर शाह, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुरेश कैथ, जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अली मोहम्मद माग्रे आदि शामिल हैं।
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