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    Jagran Trending | Safe Motherhood Day: भारत में हर साल हजारों महिलाएं नहीं सुन पाती है अपने शिशुओं की किलकारी, जानें क्‍यों मातम में बदल जाता हैं खुशियों का मंजर

    By Ramesh MishraEdited By:
    Updated: Mon, 18 Apr 2022 01:23 PM (IST)

    National Safe Motherhood हर साल हजारों मह‍िलाएं अपने नवजात की किलकारी नहीं सुन पाती हैं। घरों में नौनिहाल के आगमन की खुशी जल्‍द ही दूख के मंजर में तब्‍दील हो जाती है। इसे रोकने के लिए सरकारी प्रयास जारी है। इस लक्ष्‍य को हासिल करने में वक्‍त लगेगा।

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    भारत में हर साल हजारों महिलाएं नहीं सुन पाती है अपने शिशुओं की किलकारी। फाइल फोटो।

    नई दिल्‍ली, रमेश मिश्र। National Safe Motherhood : जागरूकता और शिक्षा की कमी के चलते भारत में हर साल हजारों महिलाओं की गर्भावस्‍था के दौरान उचित देखभाल न होने के कारण जान चली जाती है। भारत में हर साल हजारों महिलाएं अपने शिशुओं की किलकारी नहीं सुन पाती हैं। घर में नौनिहाल के आगमन की खुशी दुख के मंजर में तब्‍दील हो जाती है। किसी भी परिवार के लिए यह तस्‍वीर दिल को झकझोर देने वाली होती है। आखिर इसकी बड़ी वजह क्‍या है? तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद आखिर इस पर अभी तक नियंत्रण क्‍यों नहीं पाया जा सका? इसके लिए असल गुनहगार कौन है? इन सब विषयों पर जानते हैं एक्‍सपर्ट की राय।

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    क्‍यों मनाया जाता है 'राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस'

    1- सुरक्षित मातृत्व के लिए भारत सरकार ने 2003 में 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाने की घोषणा की थी। तब से देश में हर साल 11 अप्रैल को राष्‍ट्रीय स्‍तर पर राष्‍ट्रीय सुरक्षित मातृत्‍व दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस इसलिए मनाए जाने का फैसला किया गया, ताकि गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव बाद महिलाओं को अधिकतम स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित की जाए ताकि प्रसव के दौरान या बच्चे को जन्म देने के कारण किसी भी महिला की मौत न हो। बच्चे के जन्म के कारण माताओं की मौत के मामले में भारत की स्थिति बहुत खराब है।

    2- भारत में हर साल जन्म देते समय करीब 45,000 महिलाएं प्रसव के दौरान अपनी जान गंवा देती हैं। यह संख्या दुनिया भर में होने वाली मौतों का करीब 12 फीसद है। देश में जन्म देते समय प्रति 100,000 महिलाओं में से 167 महिलाएं मौंत के मुंह में चली जाती हैं। हालांकि, स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के मुताबिक भारत में मातृ मृत्‍यु दर में तेजी से कमी आ रही है। देश ने 1990 से 2011-13 की अवधि में 47 प्रतिशत की वैश्विक उपलब्धि की तुलना में मातृ मृत्‍यु दर को 65 फीसद से ज्‍यादा घटाने में सफलता हासिल की है। इस अभियान की शुरुआत 'व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया' द्वारा की गई थी। भारत सरकार ने व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया के प्रस्ताव पर कार्रवाई की और 11 अप्रैल को 'नेशनल सेफ मदरहुड डे' के रूप में मान्यता दी। इस मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने 2003 में 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में घोषित किया।

    जानें क्‍या है एक्‍सपर्ट की राय

    1- डा उपासना सिंह (सामाजिक कार्यकर्ता, अखिल भारतीय महिला परिषद की ग्रेटर नोएडा की अध्‍यक्ष) का कहना है कि भारत की आबादी का बड़ा हिस्‍सा गांव में रहता है। गांव में खासकर गरीब और आदिवासी इलाकों में एक बड़े तबके में महिला शिक्षा के प्रति उतनी जागरूकता नहीं है। यह आबादी महिलाओं के हक के प्रति भी उदासीन है। उन्‍होंने कहा कि शिक्षा और जागरूकता की कमी के चलते वह सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रही है। उन्‍होंने कहा गर्भावस्‍था महिलाओं के लिए पर्याप्‍त देखभाल और कौशल के लिए केंद्र सरकार की आधे दर्जन से अधिक योजनाएं अमल में है, लेकिन इन योजनाओं की पहुंच सुदूर गांव तक नहीं है। उन्‍होंने जोरदेकर कहा कि अगर इन सरकारी योजनाओं का सही तरीके से उपयोग किया जाए तो गर्भावस्‍था के दौरान मरने वाली माताओं की संख्‍या पर काबू पाया जा सकता है।

    2- डा उपासना सिंह का कहना है कि भारत में इसे एक दिवस के रूप में मनाने का मकसद गर्भावास्‍था के समय और उसके बाद महिलाओं के लिए आवश्‍यक देखभाल और कौशल के बारे में जागरूक करना है। शिक्षा और जागरूकता के कारण अभी भी देश की आबादी का एक बड़ा हिस्‍सा गर्भावस्‍था के दौरान महिलाओं को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं और जागरूकता के स्‍तर पर अनजान है। गांव के दूर दराज इलाकों में अभी भी इस बात की समझ नहीं है कि गर्भवती महिलाओं को क्‍या चाहिए और प्रसवोत्‍तर देखभाल मां और बच्‍चों के लिए कितनी महत्‍वपूर्ण है।

    3- डा उपासना का कहना है कि भारत सरकार की योजना होम बेस्‍ड यंग चाइल्‍ड प्रोगाम के तहत आशा वर्कर हर तीन, छह, नौ, 12 और 15 महीन पर बच्‍चों के घर जाएगी। वह बच्‍चों के सही पोषण उसकी सेहत और विकास का ख्‍याल रखने में मदद करेंगी। उन्‍होंने कहा कि सामुदायिक और सरकारी कोशिशों को और प्रभावशाली बनाकर शिशु मृत्‍यु दर पर नियंत्रण पाया जा सकता है। उन्‍होंने सामुदायिक स्‍तर की इकाई के महत्‍व की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस स्‍तर पर जागरूकता को और प्रभावशाली बना सकते हैं।

    4- उन्‍होंने कहा कि मोदी सरकार में मातृत्‍व सुरक्षा अभियान पर विशेष फोकस किया। इस लिहाज से वर्ष 2016 बेहद उपयोगी है। इस वर्ष प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्‍व अभियान (पीएमएसएमए) की शुरुआत की गई, इसके तहत हर महीने की नौ तारीख को गर्भवती महिलाओं को निश्चित दिन, नि:शुल्‍क और गुणवत्‍तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल सुनिश्चित करता है। उन्‍होंने कहा कि वर्ष 2017 से लागू की गई प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना एक प्रत्‍यक्ष लाभ हस्‍तांतरण योजना है। इसके तहत गर्भवती महिलाओं को सीधे उनके बैंक खाते में नकद लाभ प्रदान किया जाता है। इसका मकसद पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा किया जाना है और उनकी मजदूरी की हानि आंशिक रूप से क्षतिपूर्ति की जा सके।