Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'लोक सेवक की हर चूक को धारा-197 में सुरक्षा नहीं', SC ने कहा- कर्तव्यों के निर्वहन में हुई भूल तक ही दायरा सीमित

    By Agency Edited By: Amit Singh
    Updated: Thu, 18 Jan 2024 06:30 AM (IST)

    पीठ ने धारा-197 की उपधारा (1) का हवाला दिया कि जब कोई जज या मजिस्ट्रेट या लोक सेवक है या था और जिसे सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से ही पद से हटाया जा सकता है अगर उस पर अपने आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन के दौरान किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है तो कोई भी अदालत सक्षम प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।

    Hero Image
    लोक सेवक की हर चूक को धारा-197 में सुरक्षा नहीं

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-197 सेवारत लोक सेवक के प्रत्येक कार्य या चूक को सुरक्षा प्रदान नहीं करती। यह धारा जजों और लोक सेवकों के विरुद्ध अभियोजन से संबंधित है। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि यह सुरक्षा केवल उन कृत्यों या चूक तक ही सीमित है जो लोक सेवकों द्वारा अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में किए जाते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पीठ ने धारा-197 की उपधारा (1) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति जज या मजिस्ट्रेट या लोक सेवक है या था और जिसे सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से ही पद से हटाया जा सकता है, अगर उस पर अपने आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन के दौरान किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है तो कोई भी अदालत सक्षम प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।

    इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश को रद कर दिया, जिसने एक सरकारी अधिकारी के विरुद्ध आपराधिक शिकायत और आरोप पत्र को रद कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि अभियोजन के लिए इस तरह की मंजूरी का उद्देश्य आधिकारिक कर्तव्यों और कार्यों का निर्वहन करने वाले लोक सेवक को आपराधिक कार्यवाही शुरू करके अनुचित उत्पीड़न से बचाना है।

    शीर्ष अदालत ने यह फैसला हाई कोर्ट के नवंबर, 2020 के आदेश को चुनौती देने वाली शिकायतकर्ता की अपील पर फैसला सुनाया। शिकायतकर्ता ने दिसंबर, 2016 में एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि लोक सेवक अन्य लोगों के साथ मिलकर उन लोगों के नाम पर संपत्ति के दस्तावेज बना रहा था जिनकी मृत्यु हो चुकी थी, जबकि वह जानता था कि उन्हें अवैध लाभ के लिए बनाया गया था। बाद में पुलिस ने तीन लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया था।

    शीर्ष अदालत ने कहा कि निश्चित रूप से यह माना जा सकता है कि ऐसे दस्तावेज बनाना लोक सेवक के आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा नहीं हो सकता। आदेश को रद करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने शिकायत के साथ-साथ आरोप पत्र को पूरी तरह से रद करके गलती की है।