12 साल बाद भी सार्वजनिक नहीं हुआ झीरम कांड का सच, भाजपा-कांग्रेस में रार; हुई थी 32 लोगों की हत्या
झीरम घाटी कांड में माओवादियों द्वारा कांग्रेस के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं समेत 32 की हत्या के मामले में राजनीतिक हलचल फिर से तेज हो गई है।भाजपा क ...और पढ़ें

12 साल बाद भी सार्वजनिक नहीं हुआ झीरम कांड का सच, भाजपा-कांग्रेस में रार (फोटो- जेपी नड्डा - एक्स)
जेएनएन, रायपुर। झीरम घाटी कांड में माओवादियों द्वारा कांग्रेस के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं समेत 32 की हत्या के मामले में राजनीतिक हलचल फिर से तेज हो गई है।
25 मई 2013 को हुए इस हमले के 12 वर्ष बीत जाने के बावजूद झीरम कांड की सच्चाई अब तक सामने नहीं आई है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोमवार 22 दिसंबर को कहा कि कांग्रेसियों ने ही माओवादियों से अपने नेताओं को मरवाया, जिससे कांग्रेस की बेचैनी बढ़ गई है।
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने भाजपा पर माओवादियों से सांठगांठ का आरोप लगाया। उन्होंने सवाल उठाया कि एनआइए को सही तरीके से जांच करने क्यों नहीं दिया गया।
बघेल ने कहा कि नड्डा को बताना चाहिए कि माओवादी भाजपा के लोगों से हफ्ता वसूली करते थे। कांग्रेस ने नड्डा के बयान को बलिदानियों का अपमान बताते हुए सार्वजनिक माफी की भी मांग की है। उन्होंने इसे सुनियोजित सुपारी किलिंग करार दिया। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और तत्कालीन इंटेलिजेंस चीफ मुकेश गुप्ता के नार्को टेस्ट की भी मांग की।
वहीं, भजपा ने नड्डा के बयान का समर्थन करते हुए इसे सत्य पर आधारित बताया। भाजपा प्रवक्ता डॉ. विजयशंकर मिश्रा ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को विधानसभा में क्यों नहीं रखा गया।
यह है झीरम कांड
बस्तर की झीरम घाटी में 25 मई 2013 को माओवादियों ने कांग्रेस के काफिले पर हमला किया, जिसमें 32 लोग मारे गए। इस हमले में छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और अन्य प्रमुख नेता शामिल थे। कांग्रेस का काफिला परिवर्तन यात्रा के तहत सुकमा में रैली कर जगदलपुर वापस लौट रहा था।
मामले की जांच मुख्य रूप से तीन स्तरों पर हुई
एनआइए जांच: एनआइए ने अपनी चार्जशीट में माड़वी हिडमा और विनोद समेत 39 माओवादियों को आरोपी बनाया। हालांकि, शुरुआती एफआइआर से शीर्ष माओवादी नेताओं (गणपति और रामन्ना) के नाम हटाने पर राजनीतिक विवाद खड़ा हुआ।
न्यायिक आयोग: न्यायमूर्ति प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में एक न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया, जिसने नवंबर 2021 में अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी। कांग्रेस ने इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई।
एसआइटी गठन: 2018-2019 में छत्तीसगढ़ पुलिस ने एक विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन किया, जिसका उद्देश्य बड़ी राजनीतिक साजिश की जांच करना था। भाजपा ने कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया कि वह साक्ष्यों को छिपाने का प्रयास कर रही है।

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