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    'सिर्फ मौसम की मेहरबानी से दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रित', स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

    By ARVIND SHARMAEdited By: Swaraj Srivastava
    Updated: Sat, 25 Oct 2025 08:14 PM (IST)

    एक नए शोध में पाया गया है कि दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण केवल मौसम पर निर्भर है। पिछले पांच वर्षों में प्रदूषण के स्तर में कोई खास कमी नहीं आई है। सर्दियों में पीएम-2.5 का स्तर 140 से 145 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के बीच रहा। प्रदूषण नियंत्रण के लिए वास्तविक कारणों पर ध्यान देना आवश्यक है।

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    दिल्ली में प्रदूषण को लेकर स्टडी में बड़ा खुलासा। (फाइल फोटो)

    अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। दावा किया जाता है कि दिल्ली में प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण किया जा रहा है, मगर एक ताजा शोध में पाया गया है कि सब केवल मौसम का कमाल है। हवा की गति और बारिश से अलग हटकर देखा जाए तो पिछले पांच वर्षों के दौरान प्रदूषण के स्तर में कोई कमी नहीं आई है।

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    यूरोपियन जियोसाइंस यूनियन के जर्नल ईजीयू-स्फीयर की स्टडी बताती है कि दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण मौसम की कृपा पर टिका है, न कि सरकार की नीतिगत सफलता पर। यानी तेज हवा चली या बारिश हुई तो प्रदूषण का स्तर अपने आप कम हो जाता है, लेकिन मौसम सामान्य होते ही दिल्ली फिर उसी पुरानी धुंध में डूब जाती है। जाहिर है, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण के आंकड़े मौसम के हिसाब से ऊपर-नीचे होते रहते हैं, न कि उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयासों के हिसाब से।

    स्टडी में पांच साल के दिए गए आंकड़े

    अध्ययन में वैज्ञानिकों ने वर्ष 2019 से 2024 तक दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक और मौसम से संबंधित आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण किया है। उन्होंने तापमान, नमी, वर्षा और हवा की गति जैसे मौसमी प्रभावों को आंकड़ों से अलग करके यह जानने का प्रयास किया कि वास्तव में प्रदूषण का स्तर घटा या नहीं।

    नतीजों में क्या आया सामने?

    परिणाम बताते हैं कि जब मौसम के असर को हटाया गया तो पिछले पांच वर्षों में प्रदूषण के स्तर में कोई खास गिरावट नहीं पाई गई। सर्दियों में दिल्ली की हवा में मौजूद बेहद सूक्ष्म धूलकणों (पीएम-2.5) की मात्रा 140 से 145 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के बीच रही, जो पांच साल पहले भी लगभग इतनी ही थी।

    जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी सुरक्षित सीमा केवल 15 माइक्रोग्राम तय की है। बड़े कणों (पीएम-10) का स्तर सर्दियों में 270 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के आसपास बना रहा। यानी हवा में धूल और जहरीले कणों की मात्रा में कोई वास्तविक कमी नहीं आई।

    दिल्ली में क्यों दिखती है साफ हवा?

    अध्ययन यह भी बताता है कि मानसून के दौरान बारिश और तेज हवाओं के कारण प्रदूषण के तत्व नीचे बैठ जाते हैं, जिससे हवा कुछ दिनों के लिए साफ दिखने लगती है। इस दौरान सूक्ष्म कणों की मात्रा घटकर 60 से 70 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक आ जाती है। मगर यह सुधार अस्थायी होता है। जैसे ही हवा की रफ्तार घटती है या मौसम सूखा होता है, फिर से वही धूल और धुआं वातावरण में फैल जाता है। स्पष्ट है कि प्रदूषण नियंत्रण की मौजूदा नीति और नतीजा हवा और बारिश पर निर्भर है। उत्सर्जन के स्त्रोत यानी वाहन, कारखाने और निर्माण स्थलों की धूल वैसे ही बने हुए हैं।

    सरकार के उठाए कदमों को आईना दिखाती स्टडी

    पिछले वर्षों में दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के स्तर पर कई कदम उठाए गए हैं। जैसे ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान लागू करना, निर्माण पर रोक लगाना, सड़कों पर पानी का छिड़काव और पुराने वाहनों पर प्रतिबंध लगाना, लेकिन अध्ययन कहता है कि इनसे प्रदूषण के मूल स्तर में खास बदलाव नहीं आया है। वाहनों से निकलने वाला धुआं, डीजल जेनरेटरों और निर्माण स्थलों से उड़ती धूल हवा में महीनों तक तैरती रहती है। जब की गति कम होती है और मौसम सूखा होता है तो यह प्रदूषण नीचे जम कर धुंध बन जाता है।

    साल 2020 में कोरोना लॉकडाउन के दौरान जब यातायात और औद्योगिक गतिविधियां बंद हो गई थीं, तब हवा कुछ समय के लिए साफ हुई थी। मगर अगले ही वर्ष यह फिर पुराने स्तर पर लौट आया, जो यह बताता है कि असली सुधार तभी आएगा, जब नीतियां मौसम नहीं, बल्कि प्रदूषण के असली कारणों के आधार पर बनाई जाएंगी।

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