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नैतिकता बनाम समलैंगिकता: इस तरह समझें पूरी कहानी, क्या है इसका इतिहास

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बनाए गए संबंध को आपराधिक कृत्य से बाहर कर दिया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 07 Sep 2018 09:39 AM (IST)Updated: Fri, 07 Sep 2018 12:25 PM (IST)
नैतिकता बनाम समलैंगिकता: इस तरह समझें पूरी कहानी, क्या है इसका इतिहास
नैतिकता बनाम समलैंगिकता: इस तरह समझें पूरी कहानी, क्या है इसका इतिहास

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बनाए गए संबंध को आपराधिक कृत्य से बाहर कर दिया है। जुलाई, 2009 में स्थापित सामाजिक मान्यताओं से हटकर अपने महत्वपूर्ण फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति से बनाए जाने वाले समलैंगिक संबंधों को वैध घोषित कर दिया था। समलैंगिक समुदाय में शीर्ष अदालत के ताजा फैसले को लेकर खळ्शी की लहर है। इस फैसले ने समाज में बरसों से चली आ रही नैतिकता बनाम समलैंगिकता की बहस को एक तरह से खत्म कर दिया है।

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समलैंगिकता का इतिहास
समलैंगिकता का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। वात्सायन द्वारा लिखे गए कामसूत्र में बाकायदा इस पर एक अध्याय लिखा गया है।
कानून: समलैंगिकता के खिलाफ अंग्रेजों ने धारा 377 को 1860 में लागू किया था। 158 साल पुराने इस कानून के द्वारा समलैंगिकता को गैरकानूनी बताया गया है।
पहला मामला: अविभाजित भारत में वर्ष 1925 में खानू बनाम सम्राट का समलैंगिकता से जुड़ा पहला मामला था। उस मामले में यह फैसला दिया गया कि यौन संबंधों का मूल मकसद संतानोत्पत्ति है लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंध में यह संभव नहीं है।
मुखर होता आंदोलन: 2005 में गुजरात के राजपिपला के राजकुमार मानवेंद्र सिंह ने पहला शाही ‘गे’ होने की घोषणा की।

- समय समय पर मायानगरी में ‘माई ब्रदर निखिल’ ‘हनीमूंस ट्रेवल प्रा लिमिटेड’ दोस्ताना’ जैसी फिल्में इसी विषय पर बनीं।
- 2008 में जोल्टन पराग ने मिस्टर गे इंटरनेशनल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया।
- 16 अप्रैल 2009 को गे पत्रिका ‘बांबे दोस्त’ को दोबारा शुरू किया गया। 

क्या है समलैंगिकता
समान लिंग के प्रति आकर्षण रखने वाले महिला या पुरुष को समलैंगिक माना जाता है क्या है धारा 377 स्वेच्छा से 18 साल से अधिक उम्र का कोई पुरुष, महिला या पशु से अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करे तो भारतीय दंड संहिता की इस धारा के तहत उसे आजीवन कारावास या दस साल तक कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।1935 में पहली बार इसमें संशोधन करके इसका दायरा बढ़ाया गया।

संघर्ष दर संघर्ष
2001 समलैंगिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले नाज फाउंडेशन ने जनहित याचिका दायर कर इसे वैध किए जाने की मांग की
2004 02 सितंबर: दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की। समलैंगिक कार्यकर्ताओं ने समीक्षा याचिका दायर की
3 नवंबर : हाईकोर्ट ने समीक्षा याचिका खारिज की
दिसंबर : हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
2006 03 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को इस मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया
4 अक्टूबर : समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने का विरोध करते हुए वीपी सिंहल ने याचिका दायर की
2008 18 सितंबर: स्वास्थ्य और गृह मंत्रालयों के परस्पर विरोधी हलफनामों पर हाईकोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाई। अतिरिक्त समय देने से मना किया
26 सितंबर : केंद्र ने कहा कि समलैंगिकता अनैतिक है। इसे अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने से समाज का नैतिक पतन होगा
15 अक्टूबर: धार्मिक मान्यताओं के आधार पर समलैंगिक संबंधों परप्रतिबंध लगाने की केंद्र की दलील पर हाईकोर्ट नाराज। वैज्ञानिक दृष्टिकोण पेश करने का निर्देश दिया।

7 नवंबर: समलैंगिक कार्यकर्ताओं द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
2009 2 जुलाई: सहमति के आधार पर वयस्कों में समलैंगिक संबंधों को हाईकोर्ट ने वैध ठहराया।
9 जुलाई: दिल्ली के एक ज्योतिष शास्त्री ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। बाद में भाजपा नेता बीपी सिंहल समेत कई धार्मिक संगठनों ने भी इसके विरोध में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।
2012 15 फरवरी: मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना की अंतिम सुनवाई शुरू की।
27 मार्च: फैसला सुरक्षित रखा।
2013 11 दिसंबर: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को पलट दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 150 साल से अधिक पुराने कानून की धारा 377 पर फैसला करने का सवाल संसद पर छोड़ दिया।
2014 सरकार ने अपने पक्ष में कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इस पर कोई फैसला आने के बाद ही कोई कदम उठाएंगे।
2015 समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रखने के लिए कांग्रेस नेता शशि थरूर ने लोकसभा में निजी बिल पेश किया। हालांकि उनका बिल बुरी तरह गिर गया।
2016 धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती सुप्रीम कोर्ट में पांच याचिकाएं दाखिल की गईं।
2017 अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में लैंगिक झुकाव को निजता के अधिकार से जोड़कर देखा।

तकनीक का साथ
इंटरनेट पर गे डेटिंग वेबसाइटों की भरमार। गे कम्युनिटी और इन पर ब्लॉग्स से अटी पड़ी है साइटें एलजीबीटी अधिकार: संयुक्त राष्ट्र के 94 सदस्य देश इनके समान अधिकारों का समर्थन करते हैं। 54 विरोध में, 46 का रुख तटस्थ है मुस्लिम देश जहां वैध है लेबनान, कजाखिस्तान, माली, तुर्की, इंडोनेशिया, बहरीन, अल्बेनिया, अजरबैजान, नाइजर इन देशों में है मृत्युदंड सुडान, यमन, सऊदी अरब, ईरान, सोमालिया, नाइजीरिया, कतर, अफगानिस्तान, यूएई, मॉरीतानिया दुनिया के इन देशों ने इस साल किया वैध अर्जेंटीना (2010), ग्रीनलैंड(2015), दक्षिण अफ्रीका (2006), ऑस्ट्रेलिया (2017),आइसलैंड (2010), स्पेन (2005), बेल्जियम (2003), आयरलैंड (2015), अमेरिका (2015), ब्राजील (2013), स्वीडन (2009), कनाडा (2005),जर्मनी (2017), फ्रांस (2013), इंग्लैंड (2013)।

25 लाख देश में कुल समलैंगिक आबादी
एलजीबीटी: लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर का यह संक्षिप्त रूप है। बीसवीं सदी के आखिरी दशक की शुरुआत में यह संक्षिप्त नाम इस समुदाय की पहचान बनता चला गया।

मौजूदा समय में जब दुनिया में शादी को भी सन्तानोत्पत्ति से नहीं जोड़ा जा सकता है, तो दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक या विपरीत सेक्स के संबंधों पर अप्राकृतिक यौनाचार का ठप्पा लगाने पर सवाल उठता है। सामाजिक नैतिकता की आड़ में किसी के अधिकारों की कटौती की अनुमति नहीं दी जा सकती।
-जस्टिस दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर

भारत सरकार इस फैसले के व्यापक प्रचार के लिए जरूरी कदम उठाए। इसका रेडियो, प्रिंट और ऑनलाइन मीडिया पर नियमित अंतराल से प्रचार किया जाए। एलजीबीटी समुदाय के साथ जुड़े कलंक और भेदभाव को खत्म करने के लिए कार्यक्रम बनाए जाएं। इसके अलावा सभी सरकारी अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों को जागरूक और संवेदनशील बनाने का प्रशिक्षण दिया जाए।
-जस्टिस आरएफ नरीमन

इतिहास एलजीबीटी समुदाय और उनके परिवारों के लोगों के दशकों तक अपमान और बहिष्कार सहते रहने और उन्हें न्याय देने में देरी के लिए क्षमा प्रार्थी है। इस समुदाय के लोग भय और अभियोजन के माहौल में जीने को मजबूर हुए। ऐसा सिर्फ बहुसंख्यक समुदाय इस बात से अनभिज्ञ रहने के कारण हुआ कि समलैंगिकता प्राकृतिक प्रवृत्ति है।
-इंदू मल्होत्रा

158 साल पुराने अंग्रेजों के जमाने के कानून में सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंध को अपराध माना गया था। कानून ने उनके सामान्य मानवीय अधिकारों को नकार दिया था। प्रेम के मानवीय स्वभाव को पिंजरे में कैद कर दिया गया। भारत के आजाद होने के सात दशक बाद भी धारा 377 में यह अपराध के तौर पर शामिल रहा।
-जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

इन्होंने दी थी धारा 377 को चुनौती

नवतेज सिंह जौहर
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जीतने वाले नवतेज सिंह जौहर क्लासिकल डांसर हैं। 59 वर्षीय नवतेज अशोका यूनिवर्सिटी में गेस्ट फैकल्टी हैं। 2010 में मिशिगन विश्वविद्यालय में पढ़ा चुके हैं।

रितु डालमिया
सेलेब्रिटी शेफ हैं रितु डालमिया। कोलकाता के मारवाड़ी परिवार में जन्मी 45 वर्षीया रितु कई फूड शो होस्ट करने के अलावा कुकिंग पर कई किताबें भी लिख चुकी हैं। छोटी उम्र से ही वह पारिवारिक बिजनेस में भागीदार हैं।

सुनील मेहरा
सुनील मेहरा पत्रकार, लेखक, अभिनेता, निर्माता और निर्देशक हैं। दो दशक से वह नवतेज सिंह जौहर के साथी हैं। वह मैक्सिम मैग्जीन के भारतीय संस्करण के एडिटर रह चुके हैं।

अमन नाथ
नीमराना होटल्स के मालिक अमन नाथ ने इतिहास और कला पर कई किताबें लिखी हैं। 61 वर्षीय नाथ कवि भी हैं और उनकी कई किताबें चर्चित हुई हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास में एमए की डिग्री ली है।

केशव सूरी
33 वर्षीय केशव सूरी ललित सूरी हॉस्पिटेलिटी ग्रुप के कार्यकारी निदेशक हैं। वे दिवंगत ललित सूरी के बेटे हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में उन्होंने कहा था कि लगभग एक दशक से एक व्यक्ति से उनका रिश्ता है। 


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