जागरण विशेष: सरकारी हस्तक्षेप से नहीं, विमानन कंपनियों के अनुशासन से ही सुधरेगा माहौल- जितेंद्र भार्गव
इंडिगो घटनाक्रम ने नागरिक उड्डयन सेक्टर की छवि बिगाड़ दी। उड़ानों के रद्द होने से लाखों यात्री प्रभावित हुए। विशेषज्ञ जितेंद्र भार्गव के अनुसार, संकट ...और पढ़ें

सरकारी हस्तक्षेप से नहीं विमानन कंपनियों के अनुशासन से ही सुधरेगा माहौल (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पिछले दो हफ्तों के दौरान इंडिगो घटनाक्रम ने एक झटके में भारत के नागरिक उड्डयन सेक्टर की न केवल सांसें उखाड़ दीं बल्कि छवि भी बिगाड़ दी। बिरले ही दुनिया के किसी प्रमुख देश में किसी एक एयरलाइन की वजह से आपात जैसी स्थिति बनी हो, जहां बिना किसी पर्याप्त नोटिस के सैकड़ों उड़ानें रद हुई हों, लाखों यात्री बेबस पड़े हों और हर सेक्टर पर प्रतिकूल असर पड़ा हो।
उड़ानों के रद होने का सिलसिला अभी भी जारी है हालांकि स्थिति काफी हद तक सामान्य हो चुकी है। सरकार की तरफ से सख्ती भी दिखाई जा रही है। पूरे प्रकरण ने एविएशन सेक्टर की नियामक एजेंसी नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं।
इस पूरे हालात पर दैनिक जागरण के सहायक संपादक जयप्रकाश रंजन ने एविएशन विशेषज्ञ एवं एअर इंडिया के पूर्व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर जितेंद्र भार्गव से लंबी बातचीत की। पेश हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश:-
क्या यह पूरा संकट फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन यानी एफडीटीएल की वजह से पैदा हुआ है? गलती कहां हो गई?
संकट अचानक पैदा नहीं हुआ है। इसके लिए एफडीटीएल को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा। सबसे पहले तो एफडीटीएल की मांग काफी पुरानी है और यह मांग हवाई जहाजों के पायलटों की तरफ से हो रही थी। इंडिगो एयरलाइन इसके लिए तैयार नहीं थी। मामला हाई कोर्ट गया। कोर्ट के आर्डर से इस नियम को लागू किया गया। इसे पूरी दुनिया में विशेषज्ञ व नियामक एजेंसियां चालकों, क्रू व यात्रियों के लिए सुरक्षित मानती हैं। इसके बाद डीजीसीए को निर्देश गया और उसने एफडीटीएल को दो चरणों में लागू करने का नियम लागू किया। इसके तहत पायलटों और क्रू को ज्यादा आराम देने की व्यवस्था है। नियम लागू होने के साथ ही यह साफ था कि एयरलाइनों को ज्यादा पायलटों की जरूरत होगी। अंतोगत्वा हमें दिसंबर के पहले हफ्ते में जाकर पता चला कि इंडिगो ने नए नियम के मुताबिक पायलटों की भर्ती नहीं की। मेरा मानना है कि जब सरकार की एजेंसी ने नियम लागू कर दिए तो इंडिगो या अन्य कोई भी एयरलाइन यह बहाना नहीं बना सकती कि वह नए पायलटों की भर्ती नहीं कर सकी, इसलिए अचानक ही इतन बड़ा दबाव नहीं सहन कर सकी।
तो फिर इंडिगो ऐसा क्यों नहीं कर सकी? कंपनी के प्रबंधन की आमतौर पर तो काफी तारीफ होती रही है?
इसमें तो कोई शक ही नहीं कि इंडिगो से जुड़े लोग ही ज्यादा जिम्मेदार हैं। इस कंपनी के पास एविएशन सेक्टर की 65 प्रतिशत की बाजार हिस्सेदारी है। देश की अन्य एयरलाइनों के स्तर पर गलती हुई होती तो उसका भार इंडिगो संभाल सकती है, ऐसा पूर्व में उसने किया भी है, लेकिन इंडिगो के स्तर पर हुई खामी का खामियाजा पूरे सेक्टर को उठाना पड़ेगा। मेरा ख्याल है कि इंडिगो के शीर्ष बोर्ड से लेकर उसके प्रबंधन तक की इसमें गलती है। यह एक बड़ी कंपनी है जिसने बहुत ही सफलता से भारत जैसे विकासशील देश में एविएशन सेक्टर को आगे बढ़ाया है। जब दुनिया की कई एयरलाइनें डूब गईं और भारत में जेट एयरवेज, किंगफिशर, सहारा एयरलाइंस, गो इंडिया जैसी दिग्गज एयरलाइनें बंद हो गई तब भी इंडिगो न सिर्फ बनी रही बल्कि समय पर सेवा देकर लगातार मुनाफा भी कमाया है। मगर यहां लगता है कि इंडिगो प्रबंधन शुरू से ही इस मुगालते में रहा कि जब समय आएगा तो वह डीजीसीए को नियमों को आगे बढ़ाने के लिए तैयार कर लेगा और वह काफी सुस्त रहा। जब बोझ बढ़ने लगा तो उसने ज्यादा से ज्यादा फ्लाइटों को रद करना शुरू कर दिया और जो फ्लाइटें चलाई जानी थीं, उनमें भी काफी विलंब होने लगा। इससे अफरा-तफर
यहां पूरी गलती इंडिगो प्रबंधन की ही नहीं, उनके बोर्ड की भी है जिस पर कंपनी के सारे कामकाज पर नजर रखने की जिम्मेदारी है। उसके बोर्ड ने न तो डीजीसीए को विश्वास में लिया और न ही दूसरी एयरलाइनों के साथ मिलकर कोई प्रबंध किया। एयरलाइन को नियमों का पालन करते हुए ग्राहकों को समय से पहले सूचना देनी चाहिए थी, यह नहीं किया गया। एविएशन क्षेत्र के नियमों का न्यूनतम पालन भी किया जाता तो समस्या इतनी गंभीर नहीं होती। जो भी हो, सालों की मेहनत पर पानी फिर गया और इंडिगो की विश्वसनीयता पूरी तरह से चकनाचूर हो गई है।
क्या डीजीसीए को एक नियामक के तौर पर और मुस्तैदी दिखानी चाहिए थी?
अब जबकि घटनाक्रम हो चुका है और हम इसकी समीक्षा कर रहे हैं तो यह कहा जा सकता है। लेकिन आप यह मत भूलिए कि उदारीकरण के दौर में किसी भी सेक्टर में निजी कंपनियों के प्रोफेशनल कामकाज में नियामक एजेंसी की तरफ से हस्तक्षेप करने को काफी खराब माना जाता है। यह बात अब सामने आ रही है कि एक दिसंबर, 2025 तक डीजीसीए और इंडिगो की बैठकें हुई हैं जिनमें कंपनी की तरफ से ऐसा कुछ नहीं बताया गया कि जिससे लगे कि हालात अगले तीन-चार दिनों में ही हाथ से बाहर हो जाएंगे। मैं इस सेक्टर को बहुत करीब से जानता हूं कि और कभी इस बात का सुझाव नहीं दूंगा कि विमानन कंपनियों के कामकाज में डीजीसीए का बहुत ज्यादा हस्तक्षेप हो।
ऐसे में आगे क्या सरकार को ज्यादा सक्रिय भूमिका में होना चाहिए? कई लोग इस तरह की मांग भी कर रहे हैं कि और एयरलाइनों को प्रोमोट करना चाहिए?
सवाल यह है कि एयरलाइनों को प्रोमोट करने का काम क्या सरकार का है? जैसा कि केंद्रीय मंत्री ने भी कहा है कि देश में पांच बड़ी एयरलाइनों की जरूरत है तो क्या सरकार इसके लिए कदम उठाएगी। यह तो देखना होगा। सरकार जब अपने नियंत्रण वाली एयरलाइन एअर इंडिया को बहुत ही मशक्कत से बेचकर बाहर निकली है तो इस तरह के सवाल का क्या मतलब है? दूसरी एयरलाइनों को प्रोमोट करने के लिए इंडिगो की मौजूदा 65 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी को क्या विभाजित किया जा सकता है? इंडिगो ने पिछले 10-12 सालों मे किंगफिशर, जेट एयरवेज जैसी बड़ी एयरलाइनों के यात्रियों को अपने में समाहित किया। आज इसकी 65 प्रतिशत यात्रियों को ढोने की क्षमता किस एयरलाइन में है।
इंडिगो ने 1000 नए विमानों का आर्डर दिया है, उनका क्या होगा?
मैं यह कहना चाहता हूं कि एविएशन में पूरी दुनिया में बाजार ही दिशा तय करता है, सरकार बाजार की दिशा तय नहीं कर सकती। लेकिन निश्चित तौर से इस घटनाक्रम से सरकार, डीजीसीए और एविएशन कंपनियों को बहुत ही बड़ा सबक मिला है और उस सबक से सभी के पास सीखने के लिए बहुत कुछ है। इंडिगो को भी यह बताने की जरूरत है कि इस तरह के कुप्रबंधन की कीमत बहुत बड़ी होती है। तभी इस तरह का विवाद फिर पैदा नहीं होगा।
डीजीसीए के कारण बताओ नोटिस का जवाब इंडिगो ने दिया है, क्या उससे संतुष्ट हुआ जा सकता है?
बिल्कुल नहीं। अभी तक जो कारण सार्वजनिक तौर पर आए हैं, वो बेहद बेतुके हैं। एफडीटीएल को लेकर एक वर्ष पुराने नियम हैं। क्या कंपनी को मालूम नहीं था कि उसे कितने नए पायलटों और क्रू की जरूरत है। यह बहुत ही गंभीर कारपोरेट गवर्नेंस का मामला है। क्या कंपनी के प्रबंधन ने अपने बोर्ड को बताया था कि उन्हें कितने नए पायलटों की जरूरत है और कितनों की भर्ती की जा रही है। क्या इस बारे में समय-समय पर जानकारी दी गई। पायलटों की खरीद आप शापिंग माल में नहीं कर सकते। उनकी भर्ती प्रक्रिया लंबी चलती है, फिर उन्हें प्रशिक्षण भी देना पड़ता है। और यह देखिए कि नए पायलट भर्ती नहीं कर रहे थे लेकिन सर्दियों के सीजन (अक्टूबर, 2025 से मार्च, 2026) के लिए ज्यादा उड़ानों की प्लानिंग भी कर ली। यह भी तब हुआ जब नवंबर, 2025 में एयरलाइन की औसतन 40 उड़ानें रोजाना रद हो रही थीं। यह सामान्य बात नहीं थी। इसलिए मैं कह रहा हूं कि यह हिमालय जैसी बड़ी गलती है इंडिगो की।

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