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    दुश्मन के बम और गोलियों से बचाते हैं पेड़

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Tue, 19 Dec 2017 10:00 AM (IST)

    हजारों वृक्ष पाकिस्तान की ओर से होने वाली अंधाधुंध फायरिंग तथा दागे जाने वाले मोर्टार के गोलों को बेअसर कर देते हैं। ...और पढ़ें

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    दुश्मन के बम और गोलियों से बचाते हैं पेड़

    जम्मू (विवेक सिंह)। पाकिस्तान से सटी सीमा पर दुश्मन के सामने सीना ताने खड़े हरे-भरे ये पेड़ मानो शिवालय के प्रहरी हैं। इनके होते दुश्मन की नापाक गोलाबारी इस गांव को छू भी नहीं सकती है। पाकिस्तान की ओर से बरसाए जाने वाले गोले, गोलियां और मोर्टार इनकी विशाल शाखाओं से टकरा कर ढेर हो जाते हैं। इन हजारों पेड़ों ने शिवालय गांव को चारों ओर से इस तरह से घेर रखा है कि दुश्मन की बुरी नजर को भी इस तक नहीं पहुंचने देते। भारत-पाकिस्तान विभाजन के साक्षी ये पेड़ जब दादा परदादाओं ने लगाए थे, तो उन्हें अंदाजा नहीं रहा होगा कि ये पेड़ वक्त आने पर हरियाली, छांव, फलों के साथ-साथ पीढ़ियों को दुश्मन के गोले-गोलियों से बचाने का काम भी करेंगे। 

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    तुमने हमें बचाया-हम तुम्हें बचाएंगे

    सीमा से महज एक किलोमीटर की दूरी पर कानाचक्क के शिवालय गांव में लगे ये पुराने वृक्ष दुश्मन को खलते हैं। कारण है कि इन वृक्षों के कारण पाकिस्तान इस गांव को निशाना नहीं बना सकता है। दुश्मन को पेड़ों की कतार तो दिखती है, लेकिन उनकी ओट में बसा गांव नहीं दिखता है। जब भी सीमा पर अधिक तनाव होता है तो दुश्मन बिना निशाने के गोले बरसाता है, जो ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाते। तब पेड़ ढाल बन जाते हैं। यही कारण है कि अखनूर क्षेत्र के इस गांव के सैकड़ों निवासी वर्ष 1971 के युद्ध के बाद एक बार भी नहीं उजड़े हैं। 

    गांव में पाकिस्तानी गोलाबारी से आज तक कोई हताहत नहीं हुआ है। दुश्मन की गोलियां, मोर्टार घने पेड़ों की शाखाओं में उलझ कर रह जाते हैं। गांव वाले इन पेड़ों को अहमियत देते हैं। ऐसे में पेड़ों का यह संदेश स्पष्ट है कि तुमने हमें बचाया, हम तुम्हें बचाएंगे। कानाचक्क के सामानांतर एक किलोमीटर की दूरी पर एक तरफ स्थित ललयाल तो दूसरी ओर पंजोड़ा के गांवों के हालात ठीक विपरीत हैं। यहां रक्षक पेड़ न होने के कारण पाकिस्तान के गोले खून-खराबा करते हैं। इन गांवों में कई मौतें हो चुकी हैं।

    क्या कहते हैं ग्रामवासी 

    क्षेत्रवासी व सेवानिवृत सीमा प्रहरी अजय सिंह ने बताया कि पुराने पेड़ हमारे गांव की पहचान हैं। सीमा पर इनके महत्व को देखते हुए हमने इनके आगे सफेदे के पेड़ भी लगवाए थे। वे भी अब दुश्मन की गोलियां, मोर्टार झेलने में सक्षम हो गए हैं। सीमा पार पाकिस्तान की लूनी पत्तन पोस्ट है, जिसे बिलकुल पता नहीं चलता है कि इस तरफ गांव में कहां क्या हो रहा है। पुराने पीपल, आम, जामुन के पेड़ों से क्षेत्र के निवासियों की बचपन की यादें भी जुड़ी हैं। गांव की बेटी अस्सी वर्षीय उमा देवी का कहना है कि हम पिता के साथ विभाजन के बाद कानाचक्क में बस गए थे। मुझे याद है कि बचपन में हम इन पेड़ों से गिरे जामुन खाने जाते थे। तब भी ये पेड़ इसी तरह से बुलंद थे।

    दो सदियों के मूक प्रहरी  

    कानाचक्क में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे पेड़ खुद में इतिहास समेटे हैं। ये मूक प्रहरी 200 साल पुराने हैं व महाराजा रंजीत सिंह के शासन के भी साक्षी हैं। महाराजा रंजीत सिंह के मंत्री व कानाचक्क केराजा केसरी सिंह के सहयोगी पृथ्वी सिंह ने कानाचक्क के शिवालय में पीपल का पेड़ लगाया था। बाकी पेड़ भी उसी समय लगाए गए थे। सेवानिवृत्त डीएसपी प्रीतम सिंह ने बताया कि पीपल का पेड़ लगाने से पहले इसे चार धाम की यात्रा करवाई गई थी। 

    सीमांत क्षेत्र में पेड़ लगा रहे सीमा प्रहरी

    सीमा पर पेड़ बहुत महत्व रखते हैं। हम अपनी पोस्ट व ट्रैक के पास पेड़ जरूर लगाते हैं, इससे गर्मियों में ठंडक मिलती है व दुश्मन आसानी से देख नहीं सकता है। यह कहना है सीमा सुरक्षा बल जम्मू फ्रंटियर के आइजी राम अवतार का। पिछले कुछ सालों में सीमा पर लाखों पेड़ लगाए हैं, जैसे ही बरसात आती है, सेना और वन विभाग जितने पेड़ संभव हो, उन्हें लगाते हैं। इस साल में बीस हजार से अधिक पौधे लगाए गए हैं। नई बटालियनें भी आने के बाद सीमा पर पेड़ लगाती हैं। हम सीमा के निवासियों को इसके बारे में जागरूक कर रहे हैं। 

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