खत्म हो जाएंगी नौकरियां तो फिर पढ़े-लिखे युवा क्या करेंगे? मार्केट एक्सपर्ट ने बताया- कैसा होगा भविष्य
मार्सेलस इंवेस्टमेंट मैनेजर्स के फाउंडर और चीफ इंवेस्टमेंट ऑफिसर सौरभ मुखर्जी का मानना है कि AI और ऑटोमेशन से पारंपरिक नौकरियां खत्म हो जाएंगी। मध्यम वर्ग को नौकरी की सुरक्षा के भ्रम से निकल जाना चाहिए। अब सवाल है कि नौकरी नहीं तो फिर क्या करेंगे पढ़े-लिखे लोग कौन-कौन से क्षेत्रों में मंडरा रहा है खतरा?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश में पारंपरिक नौकरियां बीतने जमाने की बात होती जा रही हैं। मिडिल क्लास को जॉब सिक्योरिटी और सैलरी इनकम के भरोसे अच्छी जिंदगी गुजारने के भ्रम से बाहर निकलना चाहिए और उद्यमिता को आय का जरिया बनाना चाहिए। यह कहना है मार्सेलस इंवेस्टमेंट मैनेजर्स के फाउंडर और चीफ इंवेस्टमेंट ऑफिसर सौरभ मुखर्जी का। उन्होंने कहना है कि इंडस्ट्री में मेहनती मध्यम वर्ग के लोग की जगह स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) लेगी।
सौरभ मुखर्जी ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा कि भारत इस दशक एक नए आर्थिक दौर में प्रवेश कर रहा है। ऐसे में आशंका है कि मोटी तनख्वाह वाली पारंपरिक नौकरियों के मौक सीमित होंगे और पढ़े-लिखे लोगों के लिए नौकरियां भरोसेमंद आधार नहीं रह जाएंगी। इस दशक चौतरफा छंटनी होगी।
क्या खत्म हो जाएंगी नौकरियां?
सौरभ मुखर्जी ने कहा, ''मुझे लगता है कि इस दशक सैलरीमैन और सैलरीवुमन के लिए चिंता की खबर है, क्योंकि वेतनभोगी नौकरियां खत्म होंगी। पढ़ें-लिखे, मेहतनी और दृढ़ निश्चयी लोगों के लिए पारंपरिक नौकरियों के अवसर धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे।''
उन्होंने कहा कि अब वो पुराना मॉडल, जिसमें हमारे माता-पिता 30-30 सालों तक काम करते थे और रिटायर होते थे, यह सिस्टम अब अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है। जिन नौकरियों ने भारत में मध्यम वर्ग तबका खड़ा किया, जिस रोजगार ढांचे के भरोसे मध्यम वर्ग लोन ले रहा है, वह अब टिकाऊ नहीं रह गया है।
इसकी दो वजह हैं-
- पहली सभी कंपनियां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ऑटोमेशन (AI based automation) पर काम कर रही हैं।
- दूसरी सभी उद्योगों में मिडिल मैनेजमेंट का दायरा दिन-ब-दिन सिकुड़ता जा रहा है।
मार्सेलस इंवेस्टमेंट मैनेजर्स के फाउंडर और चीफ इंवेस्टमेंट ऑफिसर सौरभ मुखर्जी का कहना है कि जो काम पहले सफेदपोश कर्मचारी करते आ रहे थे, वह काम अब एआई द्वारा कराया जा रहा है।
उनके मुताबिक, गूगल का कहना है कि उसके यहां कोडिंग का एक तिहाई काम एआई कर रहा है। भारतीय आईटी सेक्टर, बैंकिंग, मीडिया और फाइनेंस सेक्टर में भी यही होने जा रहा है।
...तो फ्यूचर में क्या?
सौरभ मुखर्जी कहते हैं, जनधन, आधार और मोबाइल (JAM trinity) की तिकड़ी ने निराशा के बीच भी उम्मीद की नई किरण दी है। यह तिकड़ी आगामी उद्यमियों के लिए मंच बन सकती है। इन तीनों संसाधन पर अच्छा खासा खर्च किया गया है ताकि गरीब और वंचित तबके के लोगों के लिए पहचान, बैंकिंग और सूचना उत्पादों तक आसान पहुंच प्रदान की जा सके।
उन्होंने कहा कि अगर हम जैसे कॉरपोरेट सेक्टर में नौकरियां करते हैं, वैसे ही उद्यमिता में दिमाग लगाकर और मेहतन करके समृद्धि का नया इंजन बन सकते हैं।
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विशेषज्ञों ने दी यह सलाह
सौरभ मुखर्जी ने कहा कि भारत में लोग नौकरी में टिके रहने और वेतन व प्रमोशन की दौड़ के पीछे पागल रहते हैं। हर परिवार की ख्वाहिश होती है कि उसके परिवार के ज्यादा से ज्यादा सदस्यों के पास नौकरी हो ताकि हर महीने वेतन के पैसे आते रहें।
यानी कि हम लोग पैसे के पीछे भागने वाले लोग हैं। हम सफलता को पैसे के पैमाने पर तौलते हैं। यह सोच सदियों पुरानी है जो अभी भी नहीं बदली है। अब समय आ गया है हम सबको अपनी सोच बदलनी चाहिए।
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उन्होंने सलाह दी कि हम लोगों को खुशी और समाज पर अच्छा प्रभाव डालने के लिए काम करना चाहिए, न कि सिर्फ हर महीने आने वाली सैलरी के लिए। आपके और हमारे परिवारों को भी बच्चों को नौकरी लायक बनाने की तैयारी बंद कर देनी चाहिए, क्योंकि अब नौकरियां होंगी ही नहीं। इसलिए उनको बिजनेस के लिए तैयार कीजिए।
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