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    चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जताई लाचारी, कहा- भड़काऊ भाषणों से निपटने के लिए देश में कोई विशिष्ट कानून नहीं

    निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से स्‍पष्‍ट कहा है कि यदि कोई पार्टी या उसके सदस्य हेट स्‍पीच में लिप्त होते हैं तो पोल पैनल के पास किसी भी राजनीतिक दल की मान्यता वापस लेने या उसके सदस्यों को अयोग्य ठहराने का कानूनी अधिकार नहीं है।

    By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Wed, 14 Sep 2022 08:24 PM (IST)
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    निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हेट स्‍पीच के मामलों में कार्रवाई का अधिकार नहीं होने की बात कही है।

    नई दिल्ली, एएनआइ। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि देश के किसी भी वर्तमान कानून में भड़काऊ भाषण को परिभाषित नहीं किया गया है और विशिष्ट कानून के अभाव में वह चुनावों के दौरान भड़काऊ भाषणों व अफवाहों से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रविधानों का इस्तेमाल करता है। आयोग ने यह भी कहा है कि भड़काऊ भाषण मामले में उसके पास किसी राजनीतिक दल की मान्यता रद करने या उसके सदस्य को अयोग्य ठहराने का भी कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

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    विधि आयोग को संदर्भित किया था मामला

    चुनाव आयोग के निदेशक (विधि) द्वारा शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि भड़काऊ भाषण के मुद्दे पर शीर्ष अदालत ने एक मामला विधि आयोग को संदर्भित किया था ताकि भड़काऊ भाषण को परिभाषित किया जा सके और चुनाव आयोग को इस खतरे से निपटने में मजबूत बनाने के लिए संसद को सिफारिशें की जा सकें।

    सदस्यों को अयोग्य ठहराने का अधिकार दिया जाना चाहिए

    चुनाव आयोग ने कहा कि विधि आयोग ने अपनी 267वीं रिपोर्ट में न तो अदालत के इस सवाल का जवाब दिया कि अगर कोई राजनीतिक पार्टी या उसके सदस्य भड़काऊ भाषण देते हैं तो क्या चुनाव आयोग को राजनीतिक दल की मान्यता रद करने और दल या उसके सदस्यों को अयोग्य ठहराने का अधिकार दिया जाना चाहिए और न ही विधि आयोग ने इस खतरे से निपटने में चुनाव आयोग को मजबूत करने के लिए संसद को कोई स्पष्ट सिफारिश की है। हालांकि, विधि आयोग ने आइपीसी और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में कुछ संशोधनों की सिफारिशें की हैं।

    अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर दाखिल किया जवाब

    चुनाव आयोग ने यह जवाब वकील अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर दाखिल किया है। निर्वाचन आयोग ने आगे कहा है कि चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण और अफवाहों से निपटने के लिए किसी विशिष्ट कानून के अभाव में वह आइपीसी और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की विभिन्न धाराओं का उपयोग करता है ताकि राजनीतिक दलों के सदस्य और अन्य लोग ऐसे बयान न दें जिनसे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच विद्वेष फैलता हो।

    'क्या करें और क्या न करें' की सूची बनाई

    चुनाव आयोग ने हलफनामे में यह भी कहा है कि 'क्या करें और क्या न करें' की एक सूची बनाई गई है जिसे व्यापक रूप से प्रचारित करने का निर्देश दिया गया है ताकि सभी प्रत्याशियों को उनकी जानकारी हो और सभी प्रत्याशी व राजनीतिक दल उनका अनुपालन कर सकें। आदर्श आचार संहिता में कुछ आचरणों को भ्रष्ट आचरण के रूप में और आइपीसी व जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में चुनावी अपराध सूचीबद्ध किए गए हैं।

    एडवाइजरी जारी करता है आयोग

    अगर चुनाव आयोग के संज्ञान में यह बात लाई जाती है कि किसी प्रत्याशी या उसके एजेंट ने भड़काऊ भाषण दिया है तो आयोग संबंधित प्रत्याशी या व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी करता है और उसके जवाब के आधार पर वह उसे आगाह करते हुए एडवाइजरी जारी करता है या निश्चित अवधि के लिए प्रचार करने से रोक देता है या (बार-बार उल्लंघन पर) आपराधिक शिकायत दर्ज कराता है।

    केंद्र को निर्देश देने की मांग

    मालूम हो कि इस जनहित याचिका में चुनावों के दौरान भड़काऊ भाषण और अफवाहों से निपटने के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कानूनों का अध्ययन करने और प्रभावी व सख्त कदम उठाने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है।