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माइक्रोग्रिड बना कर गांव वालों ने पूरी की अपनी बिजली की जरूरत, जानिए क्या है माडल

आज जरूरत ऐसे छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण की रक्षा करने से है जिनका लंबे समय बाद बड़ा प्रभाव नजर आए। ऐसा ही एक छोटा-सा प्रयास पश्चिम बंगाल के सुंदरबन का एक गांव लाहिरीपुर में हुआ है। ये गांव अब खुद अपनी बिजली की आवश्‍यकता को पूरा कर रहा है।

By TilakrajEdited By: Published: Tue, 22 Mar 2022 02:47 PM (IST)Updated: Tue, 22 Mar 2022 02:47 PM (IST)
सोलर ग्रिड से करीब तीन हजार पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को फायदा हो रहा

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। जहां धूप ढलते ही अंधेरा छा जाता था, वहां अब लोग देर शाम तक दुकान खुले रख रहे हैं। बच्चे सूर्यास्त के बाद पढ़ाई कर रहे हैं। यह बदलाव सामुदायिक पहल की बदौलत संभव हुआ है। चारों तरफ घने जंगलों व समुद्र से घिरे पश्चिम बंगाल के दुर्गम व सदाबहार सुंदरवन के कई गांव आज सौर ऊर्जा से जगमगा रहे हैं। सुंदरवन के सतजेलिया और कुमरिमारी द्वीप लोगों और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के सामूहिक प्रयासों की मिसाल है।

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पश्चिम बंगाल के सुंदरबन का एक गांव लाहिरीपुर जिसने अपनी बिजली की जरूरत को पूरा करने को लेकर अनोखा प्रयोग किया है। इस गांव के लोगों ने डब्लूडब्लूएफ इंडिया की मदद से छोटे छोटे सोलर ग्रिड बनाए हैं जिनके जरिए गांव में बिजली की जरूरत का एक बड़ा हिस्सा पूरा कर लिया जाता है। वहीं, गांव में बिजली रहने से जंगली जानवरों से भी बचाव होता है।

सुंदरबन के इस गांव की पंचायत प्रधान प्रकृति घारामी हैं। प्रकृति बताती हैं कि उनके गांव में बिजली 2016 में आई। लेकिन गांव के लोगों ने अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए सोलर एनर्जी का इस्तेमाल काफी पहले शुरू कर दिया था। लोग अपनी छोटी मोटी बिजली की जरूरत जैसे टीवी चलाने, मोबाइल चार्ज करने, घर में रोशनी करने सहित कई अन्य जरूरतों के लिए सोलर पैनलों का इस्तेमाल कर रहे थे। गांव के लोगों ने डब्लूडब्लूएफ की मदद से गांव में 6 माइक्रो सोलर पावर ग्रिड बनाए हैं।

बदल गई जिदंगी

प्रकृति मानती है कि इन गांव में बिजली पहुंचने से लोगों के जीवनस्तर में काफी सुधार आया है। वह कहती है कि साइक्लोन के समय जब खंबे और तार उखड़ जाते हैं कि उनकी मरम्मत में काफी समय लगता था लेकिन अब गांव की ऊर्जा समिति के सदस्य सोलर माइक्रोग्रिड को एक या दो दिन में रिपेयर कर लेते हैं। वहीं कैरोसीन पर हमारी निर्भरता भी पूरी तरह समाप्त हो गई है। इन सोलर ग्रिड से करीब तीन हजार पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को फायदा हो रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि जिन घरों तक रोशनी पहुंची है उनमें से साठ फीसद गरीबी रेखा से नीचे के हैं। इसके अलावा यह सस्ती कीमत पर बिजली मुहैया करा रहे हैं। प्रकृति कहती है कि एक तरफ जहां जंगली जानवरों का डर कम हुआ तो दूसरी तरफ बच्चे अपने घरों में पढ़ने लगे। साथ ही लोगों की स्किल भी बढ़ी। वह स्वच्छ ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर का बेहतर तरीके से इस्तेमाल और ऑपरेट करने लगे। इसने घरेलू इंटरप्रिन्योरशिप, घरेलू बिजनेस और संपत्ति अर्जित करने में मदद की।

ऐसे काम करता है ये माडल

ये मॉडल दो तरह से काम काम करता है पंचायत में भी बैटरियों में कुछ बिजली स्टोर की जाती है और दूसरे माडल के तहत लोगों ने अपने घरों में बैटरी के जरिए बिजली स्टोर करना शुरू कर दिया। जिससे लोगों की बिजली की जरूरत पूरी हो जाती है। इस माइक्रो एनर्जी ग्रिडों के चलते रात में गांव में रौशनी करने में काफी मदद मिलती है। जिससे सुदरबन में मौजूद जंगली जानवर गांव से दूर रहते हैं।

आज जरूरत ऐसे छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण की रक्षा करने से है, जिनका लंबे समय बाद बड़ा प्रभाव नजर आए। ऐसा ही एक छोटा-सा प्रयास पश्चिम बंगाल के सुंदरबन का एक गांव लाहिरीपुर में हुआ है। ये गांव अब खुद अपनी बिजली की आवश्‍यकता को पूरा कर रहा है।


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