भारत की संप्रभु कूटनीति को मनमोहन सिंह ने दी नई सशक्त दिशा, ताकतवर देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को किया प्रगाढ़
डॉ. मनमोहन सिंह अगर बतौर वित्त मंत्री भारत में आर्थिक सुधारों के जनक थे तो प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने भारत की विदेश नीति को जो नेतृत्व दिया उसने वैश्विक कूटनीतिक मंच पर भारत की छवि को हर लिहाज से मजबूत ही किया। जर्मनी ब्रिटेन रूस जैसे पारंपरिक मित्र देशों के साथ भी कूटनीतिक रिश्तों को विशेष तौर पर आगे बढ़ाया गया।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। डॉ. मनमोहन सिंह अगर बतौर वित्त मंत्री भारत में आर्थिक सुधारों के जनक थे तो प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने भारत की विदेश नीति को जो नेतृत्व दिया उसने वैश्विक कूटनीतिक मंच पर भारत की छवि को हर लिहाज से मजबूत ही किया। आजादी के बाद से ही तटस्थ रहने और अपने दीर्घकालिक हितों के मुताबिक रिश्ते बनाने की जो नीति भारत की रही है, उसे डॉ. मनमोहन सिंह ने एक नई दिशा दी और उसे ज्यादा प्रासंगिक भी बनाया।
कूटनीतिक रिश्तों को विशेष तौर पर आगे बढ़ाया
आज जब भारत एक तरफ ब्रिक्स में रूस व चीन के साथ बैठता है और दूसरी तरफ क्वाड जैसे संगठन का अहम हिस्सा बनता है तो इसे कई वैश्विक कूटनीतिकार एक बड़ी सफलता बताते हैं। लेकिन इन दोनों संगठनों की शुरुआत को लेकर वार्ता की शुरुआत डॉ. सिह के कार्यकाल में हुई थी। जर्मनी, ब्रिटेन, रूस जैसे पारंपरिक मित्र देशों के साथ भी कूटनीतिक रिश्तों को विशेष तौर पर आगे बढ़ाया गया।
आज हिंद-प्रशांत महासागर में अमन-शांति व कानून सम्मत व्यवस्था बनाने और चीन के आक्रामक रवैये पर लगाम लगाने के उद्देश्य से स्थापित अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान और भारत का संगठन क्वाड एक महत्वपूर्ण मंच है। इसको लेकर इन देशों के बीच पहली उच्चस्तरीय वार्ता डॉ. सिंह के कार्यकाल में 26 दिसंबर, 2004 की सुनामी के बाद हुई थी।
सुनामी के बाद तब यह बातचीत प्रभावित देशों को राहत पहुंचाने के लिए एक साझा ऑपरेशन से शुरू हुई थी। इस सहयोग को आगे बढ़ाने को लेकर फिर जापान की तरफ से वर्ष 2007 में प्रस्ताव आया। कुछ वर्षों तक यह संगठन निष्क्रिय रहा, जिसकी नए सिरे से शुरुआत वर्ष 2017 में की गई। सुनामी के बाद भारत ने आस-पास के देशों में बड़े पैमाने पर नौ सेना व वायु सेना की मदद से राहत पहुंचाने की जो शुरुआत की, वह भारत की परंपरा पर चलने की कूटनीति के लिहाज से एक बड़ा फैसला था।
क्वाड को लेकर शुरुआती वार्ता के कुछ ही महीनों बाद अमेरिका में बैंकिंग संकट की दस्तक
आज भारत आस-पास के सारे समुद्री क्षेत्र में आपदा राहत प्रबंधन को लेकर एक बड़ी शक्ति के तौर पर स्थापित हो चुका है। क्वाड दुनिया का एक मात्र मंच है जिसकी सोच आपदा राहत प्रबंधन से निकली और आज यह सैन्य, स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में अहम सहयोग पर काम करने लगा है।
क्वाड को लेकर शुरुआती वार्ता के कुछ ही महीनों बाद अमेरिका में बैंकिंग संकट ने दस्तक दी थी, जिसके जद में तकरीबन पूरी दुनिया आ गई थी। पहली बार यह अहसास हुआ कि वैश्विक उदारवाद के दौर में पूरी दुनिया एक दूसरे से इतना जुड़ चुकी है कि एक देश का वित्तीय संकट दूसरे देश की आर्थिकी को धवस्त कर सकता है। वैश्विक गवर्नेंस पर जी-20 को जिम्मेदारी सौंपी गई कि वह इसके लिए दिशानिर्देश तय करे। डॉ. सिंह ने जी-20 की वा¨शगटन में नवंबर, 2008 में हुई बैठक में जो भाषण दिया था, उसे पूरी दुनिया ने ध्यान से सुना।
विकासशील देशों की दिक्कतों को सामने लाने का प्रयास किया
आज ग्लोबल साउथ की कूटनीति भारत जिस जिम्मेदारी से करता है उसकी नींव उस भाषण में डॉ. सिंह ने ही रखी थी। तब उन्होंने वैश्विक देशों को तत्कालीन संकट से उबरने का नुस्खा भी बताया और यह भी ताकीद दी कि जो भी समाधान निकाला जाए उसमें विकासशील देशों की दिक्कतों का भी ख्याल रखा जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सितंबर, 2023 में जी-20 की नई दिल्ली की बैठक में भारत के इस रुख को और ज्यादा विस्तार से रखा।
इसी दौरान भारत ने चीन, रूस और ब्राजील के साथ मिलकर एक नए वैश्विक संगठन को स्थापित करने की चर्चा शुरू कर दी थी। इन देशों के विदेश मत्रियों की एक बैठक वर्ष 2006 में हुई और फिर जून, 2009 में इन चारों देशों की पहली शिखर बैठक हुई। इसमें डॉ. सिंह ने अपने भाषण में दुनिया की नई चुनौतियों से निपटने में मौजूदा वैश्विक ढांचे व बहुराष्ट्रीय संगठनों को नाकाम करार दिया और ब्रिक्स को एक नई शक्ति के तौर पर चिन्हित किया था।
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अमेरिका-भारत रिश्तों को भी वह दिशा दी
आज ब्रिक्स सदस्यों की संख्या 10 हो गई है और तीन दर्जन देश इसमें सदस्य बनना चाहते हैं। ब्रिक्स में रूस व चीन के साथ नए समीकरण स्थापित करने से पहले डॉ. सिंह ने अमेरिका-भारत रिश्तों को भी वह दिशा दी जिसके बारे में बाद में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, भारत व अमेरिका के बीच करीबी रणनीतिक रिश्ता 21वीं सदी का सबसे बड़ा घटनाक्रम है। आज भारत अमेरिका का सबसे अहम रणनीतिक साझेदार है।
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