आज ही के दिन प्रधानमंत्री बने थे मनमोहन सिंह, पार्टी के खिलाफ जाकर सोनिया गांधी ने लिया था फैसला
लंबे इंतजार के बाद 22 मई 2004 को कांग्रेस नेता ने पीएम पद की शपथ ली थी। पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव के बाद डॉ मनमोहन सिंह को पीएम बनाने का फैसला किया था। आज ही के दिन डॉ मनमोहन सिंह ने 13वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।

नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। 22 मई 2004, का दिन कांग्रेस के लिए काफी अहम दिनों में से एक था। इसी दिन कई उठापटक के बाद पार्टी के नेता डॉ मनमोहन सिंह ने देश के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। दरअसल, मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के फैसले पर सबकी सहमति लेना उस समय सोनिया गांधी के लिए आसान न था। कई उतार-चढ़ाव और चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
इस खबर में हम आपको बताएंगे कि आखिर साल 2004 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए कितना अहम था और क्या कारण था कि सोनिया गांधी ने खुद का नाम पीएम पद से वापस ले लिया था। चुनाव जीतने के बाद भी ऐसा क्या हुआ था कि सोनिया गांधी को हार का डर सताने लगा था।
भाजपा ने समय से पहले कर दी चुनाव की घोषणा
मई 2004 में चुनाव की घोषणा प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही कर दी गई थी। कारण यह था कि भाजपा ने उस साल चार राज्यों में काफी अच्छे अंतर से अपनी सरकार बना ली थी। भाजपा को लगने लगा था कि इस समय देश में उनकी आंधी है, तो वो लोकसभा चुनाव में अच्छी जीत हासिल कर लेंगे। पूरे देश में भाजपा ने 'इंडिया शाइनिंग' और 'फील गुड' के नारे लगाने शुरू कर दिए थे।
बेहद खराब थी कांग्रेस की हालत
हालांकि, उस समय कांग्रेस की हालत बहुत खराब थी। पिछले आठ सालों से कांग्रेस सत्ता में अपने वापसी की कोशिश में लगी हुई थी, लेकिन चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी। इस बार के चुनाव में भी पार्टी को हार का डर सता रहा था, लेकिन सोनिया गांधी ने निश्चय कर लिया था कि इस बार वे सत्ता में कांग्रेस को लेकर आएंगी।
कांग्रेस का अध्यक्ष होने के नाते ये सोनिया गांधी की जिम्मेदारी थी कि वे कैसे सत्ता में वापसी करेंगी और सबको एकजुट कर के रखेंगी। इसके लिए सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के फैसलों के विपरीत जाकर गठबंधन करने का फैसला किया। दरअसल, 1998 में कांग्रेस की सालाना मीटिंग में तय किया गया था कि पार्टी अब कभी गठबंधन नहीं करेगी।
पार्टी के फैसले को सोनिया ने किया दरकिनार
पार्टी को सत्ता में लाने के लिए सोनिया गांधी न इस बात को दरकिनार करते हुए देश के कई विपक्षी पार्टियों के साथ गठबंधन करना तय कर लिया। सबसे पहले वह रामविलास पासवान से मिली, इसके बाद उन्होंने DMK अध्यक्ष से भी मुलाकात की, जबकि राजीव गांधी की हत्या मामले में पार्टी के नेता का नाम सामने आया था, फिर भी उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया।
इसके बाद उन्होंने बिहार के लालू यादव यानी राजद के साथ गठबंधन के लिए मुलाकात की, राजद की ओर से कहा गया था कि कांग्रेस को 40 में से केवल चार सीटें मिलेंगी, तभी वे गठबंधन करेंगे। सोनिया इस बात पर भी राजी हो गईं थीं।
यहां से उन्होंने एनसीपी नेता शरद पवार और जम्मू में PDP को भी अपने साथ कर लिया। इस गठबंधन को UPA यानी यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस कहा जाने लगा, जिसकी अध्यक्षता सोनिया गांधी खुद कर रही थी।
भाजपा ने बनाई थी NDA सरकार
वहीं, दूसरी ओर भाजपा पहले ही कई अलग पार्टियों के साथ गठबंधन कर के चल रही थी। उनके फ्रंट का नाम था नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) था। उस दौरान चुनाव से पहले किए गए सर्वे में साफ तौर पर नजर आ रहा था कि एनडीए ही केन्द्र में सरकार बनाएगी। जिसके बाद कांग्रेस के लिए चुनाव जीतना और जरूरी हो गया।
भाजपा पर भारी पड़ रहा था कांग्रेस का नारा
कांग्रेस ने चुनाव के दौरान कैंपेन में 'कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ' नारा देना शुरू कर दिया, जो भाजपा के नारे के मुकाबले ज्यादा मजबूत लग रहा था। इसका कारण था कि भाजपा का नारा अंग्रेजी में था, जो केवल शहरी क्षेत्रों के लोगों तक सीमित रह गया था। वहीं, कांग्रेस का नारा गांव-गांव चल रहा था।
कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए ने हासिल किया बहुमत
चुनाव आयोग ने घोषणा किया कि 20 अप्रैल, 2004 से चार चरण में चुनाव आयोजित किया जाएगा। इस बार भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले NDA को 544 में से केवल 181 सीटें ही मिल सकीं, जबकि UPA को कुल 218 सीटें मिलीं। इस परिणाम ने भाजपा को हिलाकर रख दिया था।
वहीं, केन्द्र में यूपीए अपनी सत्ता बनाने की तैयारी में लग गई। हालांकि, यह पहले ही तय हो गया था कि पीएम पद पर कांग्रेस उम्मीदवार यानी सोनिया गांधी को ही खड़ा किया जाएगा। जिस पर सभी दलों के नेता राजी हो थे।
होने लगी सोनिया को पीएम बनाने की चर्चा
हर तरह पीएम चेहरे के लिए सोनिया गांधी के नाम पर चर्चा होने लगी, सभी को लगा था कि सोनिया गांधी कभी भी इस बात की घोषणा कर सकती हैं। इसके बाद 13 मई को चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई, जिसमें सोनिया गांधी के लिए तालियों की आवाज से पूरा कमरा गूंज गया, लेकिन यहां पर पीएम चेहरे को लेकर किसी तरह की कोई बात नहीं हुई।
पार्टी के नेता नटवर सिंह ने अपनी किताब 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' में लिखा है कि राहुल गांधी ने सभी के सामने मना कर दिया था कि वो सोनिया गांधी को पीएम नहीं बनाना चाहते हैं। जिसके बाद हर तरफ चुप्पी छा गई। इसके बाद तय हुआ कि 14 मई को वो दोबारा बैठक करेंगी और इसी में पीएम चेहरे की घोषणा करेंगी।
सभी पार्टी के नेताओं से सोनिया ने की मुलाकात
हालांकि, 14 मई को होने वाली बैठक को 15 मई के लिए टाल दिया गया। दरअसल, 14 मई को सोनिया गांधी खुद गठबंधन पार्टी के नेताओं से जाकर मिलना चाहती थीं। हालांकि, इस मुलाकात के दौरान भी उन्होंने नेतृत्व के मुद्दे पर किसी से बात नहीं की थी। इस दौरान उन्होंने शरद पवार, रामविलास पासवान, लालू यादव, फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता देवव्रत विश्वास और सीताराम येचुरी से मुलाकात की।
इसके बाद 15 मई को भी इस मामले में कोई चर्चा नहीं की गई, केवल उस दौरान सभी दलों ने एक साथ डिनर किया और कुछ अन्य मुद्दों पर चर्चा की। इस दौरान समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह बिन बुलाए आए थे और उन्होंने आश्वासन दिया था कि वे सरकार को अपना समर्थन देंगे।
16 मई पार्टी के विश्वस्त नेताओं के साथ की बैठक
16 मई को सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के विश्वस्त नेताओं के साथ बैठक की और इसमें नटवर सिंह भी शामिल थे। नटवर सिंह ने अपनी किताब में इस मीटिंग का जिक्र करते हुए लिखा है कि उस दौरान इस मीटिंग में मनमोहन सिंह, प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह, शिवराज पाटिल, गुलाम नबी आजाद, एम.एल. फोतेदार मौजूद थे।
इन सभी में केवल मनमोहन सिंह को पता था कि आखिर यह मीटिंग किसलिए बुलाई गई है। यहां पर सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को पीएम बनाने का एलान किया।
मनमोहन सिंह को पीएम बनाने का फैसला
इस फैसले पर मनमोहन सिंह ने कहा था कि उनके पास बहुमत नहीं है, वो इस पद को नहीं संभाल पाएंगे। हालांकि, मनमोहन सिंह को राजी कर लिया गया। अब इस बात की घोषणा सबके सामने करने का समय आ गया था। सोनिया गांधी को पता था कि मनमोहन सिंह को पीएम बनाने की घोषणा करते ही अन्य नेता इसका विरोध करेंगे, क्योंकि मनमोहन सिंह को पार्टी में शामिल हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था। वहीं, पार्टी में कई पुराने और वरिष्ठ नेता मौजूद थे।
18 मई रही कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल घड़ी
18 मई, वो तारीख, जो कांग्रेस के लिए बहुत ही अहम और मुश्किल की घड़ी बनने वाली थी। दरअसल, चुनाव के परिणाम के बाद आधिकारिक तौर पर घोषणा करने जा रही थी कि वो पीएम नहीं बनेंगी, जिसके लिए सभी पार्टियों की बैठक बुलाई गई। हालांकि, काफी विरोध के बाद इस बैठक में तय हो गया कि सोनिया गांधी पीएम नहीं बनना चाहती हैं, तो सबके मन में यह सवाल था कि आखिर किसको पीएम बनाया जाएगा।
सोनिया गांधी ने बच्चों की वजह से छोड़ा पीएम पद
मीडिया में चारों तरफ बातें होने लगी कि सोनिया गांधी ने पीएम बनने से मना कर दिया है, क्योंकि उनके बच्चे नहीं चाहते थे कि वो पीएम बनें। दरअसल, राहुल और प्रियंका को डर था कि यदि सोनिया गांधी पीएम बन जाएंगी, तो उनको भी इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की तरह मार दिया जाएगा।
सभी नेताओं को मनाने में सफल हुईं सोनिया गांधी
इस बैठक के बाद सोनिया गांधी ने खुद जाकर करुणानिधि, लालू और सुरजीत से मुलाकात की और मनमोहन सिंह के नाम पर उनकी राय मांगी। सोनिया गांधी ने पीएम पद तो छोड़ दिया था, लेकिन वो फिर भी संगठन और CPP के अध्यक्ष के तौर पर बनी रहीं। नेहरू के बाद ऐसा पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी प्रधानमंत्री से ज्यादा ताकत कांग्रेस अध्यक्ष के पास थी। सांसद में पहली बार ऐसा हुआ था कि प्रधानमंत्री निर्वाचित नहीं, बल्कि मनोनीत नेता थे।
22 मई, 2004 को 13वें पीएम बनें मनमोहन सिंह
पांच दिन के लंबे उठापटक और कई सालों के लंबे इंतजार के बाद वो दिन आ ही गया, जब कांग्रेस नेता ने पीएम पद की शपथ ली। 22 मई को इस अफरा-तफरी पर पूर्ण विराम लगाते हुए मनमोहन सिंह, भारत के 13वें प्रधानमंत्री बनें।
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