Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दस्तावेजीकरण: अब दुनिया के लोग जान सकेंगे बस्तर की आदिवासी महिलाओं की जीवन शैली

    बस्तर के आदिवासियों का रहन-सहन संस्कृति परंपराएं खान-पान शादी-ब्याह श्रृंगार आदि दुनिया के लिए हमेशा से कौतूहल का विषय रहा है। गोदना यहां की महिलाओं के श्रृंगार का प्रमुख हिस्सा है जिसका इनके जीवन में बड़ा महत्व है।

    By Bhupendra SinghEdited By: Updated: Sun, 07 Mar 2021 10:22 PM (IST)
    Hero Image
    दुनियाभर में छाएगी बस्तर की आदिवासी महिलाओं की अनोखी दुनिया।

    संदीप तिवारी, रायपुर। बस्तर के आदिवासियों का रहन-सहन, संस्कृति, परंपराएं, खान-पान, शादी-ब्याह, श्रृंगार आदि दुनिया के लिए हमेशा से कौतूहल का विषय रहा है। गोदना यहां की महिलाओं के श्रृंगार का प्रमुख हिस्सा है, जिसका इनके जीवन में बड़ा महत्व है। पुरुष महिला के बालों में कंघी लगा दे तो इसे प्यार का इजहार माना जाता है। इसी तरह की और भी कई रोचक बातें अब दुनिया के लोग जान सकेंगे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पहली बार बस्तर की महिलाओं का हुआ दस्तावेजीकरण

    पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से संबद्ध शासकीय दूधाधारी बजरंग महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रायपुर ने पहली बार बस्तर की महिलाओं की दुनिया का दस्तावेजीकरण किया है। इसका नाम 'पर्णाच्छादित बस्तर की लोक संस्कृति में नारी' है।

    यूजीसी की मदद से आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन का पहली बार हुआ दस्तावेजीकरण

    विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने इसमें मदद की है। यूजीसी ने एक जनवरी, 2016 को शासकीय दूधाधारी बजरंग महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय को महिला अध्ययन केंद्र का दर्जा दिया था। इस उपलब्धि वाला यह राज्य का पहला महाविद्यालय है। कालेज की मनोविज्ञान विभाग की प्राध्यापिका डा. ऊषा किरण अग्रवाल ने बताया कि बस्तर की आदिवासी महिलाओं की जिंदगी का पहली बार वृहद स्तर पर दस्तावेजीकरण किया गया है। इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बुक नंबर (आइएसबीएन) लेकर इसे देशभर के ग्रंथालयों में भेजा जाएगा। इन दस्तावेजों में बताया गया है कि आदिवासी महिलाएं शुरू से बेहतर प्रबंधन करती रही हैं।

    ध्वनि संकेतों से चलती है जिंदगी

    बस्तर की महिलाओं के जीवन में ध्वनि संकेतों का अति महत्वपूर्ण स्थान है। ध्वनि संकेत माध्यम से ही वे बीहड़ जंगल में अपना जीवन अस्तित्व बनाएं रखने में सफल हैं। बंदर से हूप-हूप, चूजा से पियोह-पियोह, कौआ से काबरा आदि जीवों से ध्वनि संकेतों से महिलाएं बात करती हैं। कहां जीवन है और कहां मौत, इसका इशारा समझती हैं। प्रकृति की ध्वनियों को समझने में वे पारंगत हैं।

    कंघी श्रृंगार का प्रमुख हिस्सा

    आदिवासी युवतियों को कंघी से बहुत प्रेम है। वे दो-तीन कंघी बालों में जरूर लगाए रखती हैं। अगर आदिवासी युवक किसी युवती के बालों में कंघी लगा देता है तो इसे प्रेम का इजहार माना जाता है।

    दोना-पत्तलों से जीवन प्रबंधन

    बस्तर में लड़कियां बचपन से ही घर चलाने के लिए व्यावसायिक रूप से ढलने लगती हैं। स्ति्रयां सियारी के पत्तों से पत्तल और दोना का निर्माण करती हैं। ये बांस के छोटे-छोटे आकार की टोकनियां, झाडू, चटाई आदि बनाती हैं।

    पांच सुरों वाली बांसुरी

    बस्तर में महिलाओं द्वारा बनाई जाने वाली बांसुरी को सुलुड कहते हैं। यह पांच सुरों वाली होती है। अन्य वाद्य यंत्र बनाने में भी महिलाएं निपुण हैं। अकुम भैंस की सींग से बनाया जाता है। इसे देवस्थलों में लटकाया जाता था ताकि श्रद्धालुओं को देवताओं के आगमन की सूचना दी जा सके।

    नृत्य में झलकती है एकता

    यहां की महिलाओं की जिंदगी सहकारिता पर आधारित है। नृत्य और संगीत इसके प्रमुख माध्यम हैं। मांदर की थाप और बांसुरी की धुन पर एक-दूसरे की कमर में हाथ डालकर युवक-युवतियां विश्वास का पाठ पढ़ते हैं।