नई दिल्ली, संदीप राजवाड़े। बीते हफ्ते उज्बेकिस्तान में खांसी की सिरप पीने से 18 बच्चों की मौत होने का मामला सामने आया। वहां के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि नोएडा स्थित एक भारतीय कंपनी की सिरप पीने के बाद बच्चों की स्थिति बिगड़ी और मौत हुई। दूसरी और उज्बेकिस्तान मीडिया का कहना है कि इस सिरप के अधिक डोज और बिना डॉक्टरी सलाह के उपयोग करने से बच्चों की जान गई। इसे लेकर केंद्र सरकार जांच व कार्रवाई कर रही है। इस मामले में देश के कई बड़े विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि यह दावा सही है कि बिना डॉक्टरी जांच-सलाह के मनमाने तरीके और अधिक डोज लेने से जान जा सकती है। भारत में भी ऐसे साइड इफेक्ट के केस सामने आ रहे हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि भूलकर भी बच्चों को सर्दी-खांसी की दवा बिना डॉक्टरी सलाह-प्रिस्क्रिप्शन के न दें। सही जानकारी-डोज पता नहीं होने से सांस की नली तक बंद हो सकती है। यह सावधानी सिर्फ बच्चों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हर उम्र के लोगों को दवा अपनी मर्जी व दुकानदार की सलाह पर लेने से बचना चाहिए। पुरानी बीमारियों से परेशान कुछ मरीजों को पैरासिटामोल- पेन किलर दवाओं से की मात्रा अधिक लेने से किडनी फेल तक की घटना हो सकती है। इसके साथ ही अन्य बीमारियां व दिक्कतें होती है। इसके साथ ही कुछ मेडिकल स्टडी में पाया गया है कि ज्यादा एंटीबायोटिक के सेवन से बैक्टीरियल संक्रमण में दवाइयां असर नहीं कर रही हैं, यहां तक कि याददाश्त भी कमजोर हो रही है।

उज्बेकिस्तान में खांसी की सिरप से 18 बच्चों की मौत और इससे पहले बीते साल जुलाई में अफ्रीकी देश गाम्बिया में भी सिरप पीने के बाद बच्चों का तबीयत बिगड़ने और 70 बच्चों की मौत हुई थी। इन घटनाओं के बाद लोगों के मन में दवा व खासकर सिरप को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या वे सुरक्षित हैं। कौन-सी दवा बच्चों को दें या न दें। बड़े-बुजुर्गों के मामलों में भी कैसे दवा का डोज तय करें या उनके साइड इफेक्ट से बचें। दोनों घटनाओं के साथ दवा के डोज व मनमाने तरीके से बिना डॉक्टरी सलाह के सेवन करने के मामले में देश के अलग-अलग विशेषज्ञों से बात की गई।

हृदय रोग विशेषज्ञ, डायबिटीज- ब्लड प्रेशर विशेषज्ञ, बच्चों की बीमारी के विशेषज्ञ, महिला रोग विशेषज्ञ, एम्स के एक पूर्व व वर्तमान डायरेक्टर, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारियों से इसे जाना। सभी ने चेताया कि भूलकर भी मेडिकल दुकानवाले से या अपनी मर्जी से दवा लेकर उसका सेवन न करें। यह दूसरी कई बीमारियों की तकलीफ लाने के साथ जानलेवा हो सकता है। बच्चों के मामलों में तो भूलकर भी ऐसी गलती या लापरवाही नहीं करनी चाहिए। एक्सपर्ट का कहना है कि अधिकतर लोग मनमाने दवा व डोज का साइड इफेक्ट नहीं जानते हैं। उसका प्रभाव लंबे समय बाद भी शरीर में दिखाई देता है।

एम्स राजकोट व जोधपुर के डायरेक्टर डॉ. सीडीएस कोटच का कहना है कि दवा लेने की मात्रा और किस बीमारी के लिए कौन-सी दवा अपनी मर्जी या दुकानवाले के कहने पर ले रहे हैं, इसका बहुत बुरा गंभीर प्रभाव शरीर पर पड़ता है। बच्चों व गर्भवती महिलाओं पर तो खासकर यह बहुत ही नुकसानदायक है। वहीं, गुरुग्राम के सनार इंटरनेशनल के हृदय रोग विभाग के एचओडी और सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. डीके झाम्ब ने बताया कि यह अनेदखी जान ले सकती हैं या एक सामान्य बीमारी वाले मरीज को गंभीर बीमार बना सकती है। बच्चों के मामले में इसे लेकर ज्यादा गंभीरता व सावधानी बरतनी चाहिए। रायपुर बाल गोपाल चिल्ड्रन हॉस्पिटल के डायरेक्टर और सीनियर पीडियाट्रिक्स डॉ. प्रशांत केडिया ने बताया कि अधिकतर लोग बच्चे को वही दवा देते रहते हैं, जो उसे 4-5 साल पहले देते थे। जबकि उम्र, वजन और बीमारी के लक्षण के अनुसार दवा और डोज दोनों चेंज हो जाती है। इसके अलावा मेडिकल दुकानों से बिना किसी डॉक्टरी पर्ची व सलाह के दवा दे देते हैं, फिर उसके साइड इफेक्ट होने पर डॉक्टर के पास लेकर आते हैं। कुछ मामले ऐसे भी सामने आते हैं, जिसमें सर्दी-खांसी होने पर किसी के कहने पर कोई सिरप पिला देते हैं और उससे बच्चों के एलर्जी के साथ सांस लेने में दिक्कत देखने में आती है। इससे बचें।

बीपी- डायबिटीज मरीज एंटीबायोटिक में रखें सावधानी

रायपुर के रामकृष्ण केयर अस्पताल के सीनियर एमडी (मेडिसिन) डॉ. अब्बास नकवी ने बताया कि कई मरीज जो सामान्य बीमारी, बुखार, दर्द अन्य तकलीफ होने पर अपने मर्जी से दवा दुकानवाले के बताए या किसी और के कहने पर ले लेते हैं। इससे उन्हें उस दौरान तो उस तकलीफ से निजात मिल जाती है, लेकिन बाद में इस मनमानी दवा का प्रभाव दिखाई देता है। डॉ. अब्बास ने बताया कि ब्लड प्रेशर (बीपी) और डायबिटीज के मरीजों को अन्य बीमारी होने पर दवाई को लेकर अलर्ट रहना चाहिए। उन्हें बिना डॉक्टरी सलाह या जांच के एंटीबायोटिक, एंटी डिप्रेसेंट, कॉर्टियोस्टेरॉयड और पेन किलर दवाएं नहीं खाना चाहिए। हाई डोज की एंटीबायोटिक दवा लेने से सांस की नली में सूजन के साथ किडनी-लीवर इफेक्ट सामने आते हैं। इसके साथ ही एंटी डिप्रेसेंट और कॉर्टियोस्टेरॉयड की दवा यूं ही लेने से मोतियाबिंद के साथ हड्डियां कमजोर हो सकती है। बीपी-शुगर के मरीज अन्य दवा लेने पर डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

हृदय रोग से जुड़े लक्षण होने पर भी अपने से खून पतला की दवा न लें

गुरुग्राम के सनार इंटरनेशनल अस्पताल के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. डीके झाम्ब ने बताया कि हृदय रोग को लेकर अधिकतर और उससे जुड़े लक्षण को लेकर लोगों को जागरूकता नहीं है। कई ऐसे केस आते हैं, जिसमें लोग सीने में दर्द होने पर अपने से नाइट्रेट कंपोजिशन की दवा लेना शुरू कर देते हैं। यह इतना खतरनाक है, इस दवा के लेने से शरीर के अंदर ब्लीडिंग, चक्कर आना और बीपी गिर सकता है। यह दवा बंद ब्लॉकेज को कुछ समय के लिए खोलने का काम करती है। इसके साथ ही कई लोग हार्ट से जुड़ी बीमारी के शुरुआती लक्षण में ही अपनी मर्जी या दवा दुकानवालों के कहे अनुसार, ब्लड थिनर (खून पतला) के साथ एस्प्रिन कंपोजिशन की टेबलेट लेना शुरू कर देते हैं। बिना डॉक्टरी जांच के यह दवा लेने के साइड इफेक्ट भी हैं। इससे उल्टी, पेट में तकलीफ के साथ खून ज्यादा पतला होने पर अंदरुनी ब्लीडिंग भी हो जाती है। गैस्ट्रिक और अल्सर के मरीजों को इन दवाओं को लेकर और ज्यादा परहेज करना चाहिए। डॉ. झाम्ब ने कहा कि बीपी- कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए भी कुछ दवाइयां लोग अपने से शुरू कर देते हैं। इससे भी शरीर पर प्रभाव पड़ता है, पेट में मरोड़ के साथ मसल्स में खिंचाव होने लगता है। हार्ट के मरीजों को एंटीबायोटिक व पेनकिलर की दवाइयों के डोज को लेकर भी सावधान रहना चाहिए। इन दवाइयों का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

अस्थमा-सांस के मरीज बीटा ब्लाकर, एस्प्रिन जैसी दवाओं के सेवन से बचें

गुरुग्राम के सनार इंटरनेशनल हॉस्पिटल की श्वसन-फेफड़ा रोग विभाग की एचओडी और सीनियर विशेषज्ञ डॉ. बंदना मिश्रा का कहना है कि अस्थमा व सांस से जुड़ी बीमारियों के मरीजों को अन्य बीमारियों की दवा के सेवन से पहले जरूर अपने डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए। जैसे देखने में आया है कि कुछ मरीज सांस फूलने पर बीटा ब्लाकर कंपोजिशन की दवा लेने लगते हैं। इससे हार्ट रेट कम होने के साथ बीपी पर भी असर पड़ता है। कुछ मामलों में तो सांस की नली तक जाम हो जाती है। इसके अलावा एस्प्रिन फॉर्मूले वाले दवाइयां किसी भी तरह के दर्द या बुखार होने पर न लें। इसके भी अस्थमा-सांस मरीजों में साइड इफेक्ट आते हैं। स्मोक, एलर्जी के साथ गर्भवती मरीज भी ऐसी दवा लेने से पहले उसकी मात्रा-डोज की जानकारी डॉक्टर से लें। इसी तरह इन मरीजों को एंटीबायोटिक की हाई डोज से बचना चाहिए। आज कुछ केस ऐसे आते हैं, जिसमें मरीज ने परेशानी होने पर अपनी मर्जी या मेडिकल दुकानवाले के कहे अनुसार, हाई डोज की एंटीबायोटिक दवा ले ली, इससे उनकी परेशानी बढ़ गई।

बच्चों को कोई भी दवा-सिरप देने को लेकर रहें सावधान

रायपुर के बाल गोपाल चिल्ड्रन हॉस्पिटल के डायरेक्टर व सीनियर पीडियाट्रिक्स डॉ. प्रशांत केडिया ने बताया कि मर्जी से, दवा दुकानवाले के कहने अनुसार या कुछ साल पहले जो दवा दी जा रही थी, उसी दवा-सिरप को बच्चों के बीमार होने पर अधिकतर पेरेंट्स दे देते हैं। इससे उन्हें बचना चाहिए। यह बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास प्रभावित करने और दूसरी अन्य बीमारियों की दिक्कत बढ़ाने के साथ जानलेवा भी हो सकता है। उन्होंने बताया कि सर्दी-खांसी होने पर मेडिकल स्टोर्स से बिना किसी डॉक्टरी सलाह के डेक्स्ट्रोमेथोर्फन कंपोजिशन वाली सीरप ले लेते हैं, जबकि यह सिरप दो साल तक के बच्चों को देने की मनाही है। इसकी डोज की सही जानकारी न होने पर बच्चे को रिएक्शन हो सकता है। उसे झटके आते हैं, चक्कर, सांस लेने में परेशानी के साथ अन्य दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं। इसी तरह बच्चों को एस्प्रिन कंपोजिशन वाली दवा से बचना चाहिए, इसके सेवन करने के पहले डॉक्टर से सलाह लें। इससे लिवर में प्रभाव पड़ता है। इसी तरह निमुसुलाइड जैसी दवाओं का उपयोग दर्द-बुखार में किया जाता है, इसकी डोज ज्यादा देने पर किडनी फेल की आशंका रहती है। उल्टी, सुस्ती, दस्त, स्किन रैश जैसे साइड इफेक्ट दिखाई देते हैं।

डॉ. केडिया ने बताया कि यह भी देखने में आया है कि बच्चे को भूख नहीं लगने पर कई लोग बिना डॉक्टर के दिखाए बाजार से एपेटाइट स्टिम्युलेंट की दवा लेकर बच्चों लगातार देते रहते हैं। इस दवा की अधिक डोज देने से बच्चे में कुछ समय के लिए भूख तो बढ़ जाती है, लेकिन बिना गाइड देने से नुकसान ज्यादा है। इससे बच्चों की हार्ट बीट बढ़ने, डिप्रेशन और कार्डियक प्रॉब्लम हो सकती है। कोई भी दवा देने के पहले डॉक्टरी जांच- सलाह जरूर लें। हर बच्चे या मरीज की दवा और उसकी डोज उम्र, वजन, पुरानी बीमारी व वर्तमान लक्षण के अनुसार तय होती है।

गर्भवती दर्द व एंटीबायोटिक दवाओं से बचें, नवजात पर बुरा असर

भोपाल की सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. सारिका गुप्ता का कहना है कि गर्भवती महिलाओं को किसी भी तरह की दवाइयों के सेवन से बचने को कहा जाता है। बहुत जरूरत होने से डॉक्टरी सलाह पर ही कुछ दवाई दी जा सकती हैं। सबसे पहले तो उन्हें अपने से या बाजार से बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी एंटीबायोटिक दवा नहीं लेनी चाहिए। इसके अलावा फीडिंग कराने वाली महिलाओं को भी इसके सेवन से बचने को कहा जाता है। उन्हें उस दौरान आयरन, कैल्शियम और कुछ जरूरत होने पर ही हल्के असर वाली एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। इसके अलावा टेट्रा साइक्लिन कैप्सूल शरीर में बैक्टीरियल इन्फेक्शन को रोकने के लिए दी जाती है, लेकिन इसे गर्भवती महिलाओं को नहीं लेना चाहिए। इसके अलावा इन दवाओं को किडनी और लीवर की बीमारी पीड़ित मरीजों को भी नहीं लेना चाहिए। डॉक्टरी सलाह पर ही इससे जुड़ी दवाइयां लें। गर्भवती महिलाओं के इस दवा को लेने पर साइड इफेक्ट बच्चे पर पड़ता है। इसी तरह किसी भी तरह के पेन किलर का सेवन न करें। इससे हार्ट बीट प्रभावित होने के साथ अन्य परेशानी बढ़ सकती है। गर्भवती महिलाएं गैस्ट्रिक, चक्कर, जी मचलाना और दर्द होने पर अपने से कोई भी दवा का सेवन न करें। इसके कई साइड इफेक्ट होते हैं। गर्भ में पल रहे बच्चे का शारीरिक विकास प्रभावित होता है।

उम्र, वजन और पुरानी-वर्तमान बीमारी के लक्षण से तय होती है डोज

एम्स राजकोट और जोधपुर के डायरेक्टर डॉ. सीडीएस कटोच का कहना है कि हर व्यक्ति को यह जानना जरूरी है कि किसी भी बीमारी के होने पर कोई भी दवा अपने से या मेडिकल दुकान से बिना डॉक्टरी सलाह के न लें। हर दवा की डोज मरीज के उम्र, वजन, पुरानी बीमारी और वर्तमान बीमारी के लक्षण से तय होती है। यह एक ही बीमारी के कई मरीजों के लिए अलग-अलग तय होती है।

डॉ. कटोच ने बताया कि ओवर द काउंटर कुछ ही दवाइयां है, जिसे आप मेडिकल स्टोर्स से बिना किसी डॉक्टरी प्रिस्क्रिप्शन के ले सकते हैं। इसके अलावा किसी भी तरह की दवा, सिरप, टेबलेट या इंजेक्शन लेने के लिए डॉक्टर की पर्ची होना जरूरी है। बाजार में दवा दुकान वाले भी लोगों के बीमारी-लक्षण बताने पर बिना किसी रोकटोक या पुरानी बीमारी की जानकारी के अपनी मर्जी से दवा दे देते हैं। ऐसे कई केस आते हैं, जिसमें लोगों को साइड इफेक्ट होते हैं। कुछ मामलों में अन्य कई गंभीर बीमारियां बढ़ जाती हैं। बच्चों, महिलाओं, बुजुर्ग के साथ सभी के लिए ऐसी कई दवा है, जिसे डॉक्टरी सलाह से ही सही मात्रा, डोज और एक समयावधि में लेने से फायदा होता है। शासन की तरफ से नियम तो हैं, लेकिन उसका कार्रवाई व निगरानी पूरी तरह से नहीं हो पाती है।

सख्ती और निगरानी दोनों नहीं है, कई ऐसे गंभीर केस आते हैं

भोपाल एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉ. सरमन सिंह ने बताया कि बाजार में एक अलग ही ट्रेंड चल रहा है। दवा दुकान वाले अपनी मर्जी से हर बीमारी की दवा और इलाज कर रहे हैं। ओवर द काउंटर तो छोड़िए, वे थर्ड, फोर्थ और फिफ्थ शेड्यूल तक की दवा बिना किसी डॉक्टरी प्रिस्क्रिप्शन के देते हैं। इसे लेकर नियम तो हैं, लेकिन कोई गंभीरता, सख्ती या निगरानी नहीं है। कई ऐसे मरीज आते हैं, जिन्होने मर्जी या मेडिकल स्टोर्स से बिना किसी डॉक्टरी पर्ची की दवा लेकर सेवन किया। उन्हें न तो डोज और न ही उसकी मात्रा की जानकारी थी। जब साइड इफेक्ट होने स्थिति बिगड़ी तो मामले खुले। कई ऐसी दवाएं हैं, जिनमें हाई कंपोजिशन वाली एंटीबायोटिक, पेन किलर व सिरप हैं, जिसका मनमाने तरीके से उपयोग लिवर-किडनी को बीमार कर रहा है। कुछ मामलों में तो मौत तक हुई है। किसी को साइड इफेक्ट कुछ दिनों में तो कुछ को लंबे समय बाद दिखाई देता है। इसे लेकर हर राज्य प्रशासन को गंभीर होना होगा।

बिना प्रिस्क्रिप्शन और 6 माह पुरानी पर्ची से न दें दवा

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट व पूर्व जनरल सेक्रेटरी डॉ. जयेश एम लेले का कहना है कि मेडिकल स्टोर्स वाले बिना डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन की दवा किसी भी मरीज को न दें। इसके अलावा 6 माह पुरानी डॉक्टरी की पर्ची से भी दवा नहीं देनी चाहिए। आईएमए की तरफ से लंबे समय से इसे लेकर पहल की जा रही है। देखने में आता है कि कई ऐसी दवाइयां हैं, जो बाजार में यूं ही नहीं बेची जा सकती है, लेकिन आसानी से कमाई व कमीशन के चक्कर में बेच रहे हैं। हमारी तरफ से केमिस्ट एसोसिएशन से इसे लेकर सख्ती से पालन करने की बात कही गई है।

प्रशासन की तरफ से भी विभाग को निगरानी बढ़ानी होगी, उनकी अनदेखी से ही यह चल रहा है। मनमाने तरीके से दवा लेने से कई साइड इफेक्ट सामने आएं हैं। लोग और बीमार हो रहे हैं और मौत तक हो जाती हैं। सही डोज व दवा की जानकारी डॉक्टर बीमारी व लक्षण के आधार पर तय करता है, जबकि मेडिकल दुकान वाले को न तो आपकी बीमारी की पुरानी हिस्ट्री पता है न ही आपकी एलर्जी या अन्य दिक्कतें। इसलिए इसे लेकर जागरूक होना होगा और प्रशासन को सख्त।

H1 शेड्यूल की दवाइयां बिना प्रिस्क्रिप्शन नहीं बेच सकते

भारत में शेड्यूल एच की दवाएं कोई भी मरीज बिना डॉक्टरी पर्ची के भी खरीद सकता है। सीमित दिनों के लिए इसका सेवन करने से सामान्य मरीजों में साइड इफेक्ट नहीं होता है, लेकिन लंबे समय तक अधिक डोज लेने पर इसके दुष्परिणाम भी होते हैं। शेड्यूल एच दवाओं के लेबल में Rx लिखा होता है। इसके साथ लाल रंग के अक्षरों में चेतावनी भी लिखी होती है। शेड्यूल एच1 की दवा में थर्ड और फोर्थ जनरेशन की दवाएं भी आती है, जिसे बिना पर्ची नहीं बेचा जा सकता है। शेड्यूल एच1 की दवा बिक्री का रिकॉर्ड रखना होता है। उसमें डॉक्टर का नाम, मरीज का नाम, पता के साथ दवा की मात्रा की जानकारी होती है। इस रिकॉर्ड को 3 साल तक रखना होता है। शेड्यूल एच की तरह कुछ नशा मुक्ति व मानसिक रोग की दवाएं शेड्यूल X की होती हैं। इन दवाओं को बिना डॉक्टरी प्रिस्क्रिप्शन के कोई भी मेडिकल स्टोर्स ऑफलाइन या ऑनलाइन नहीं बेच सकता है। इनकी बिक्री के लिए दुकानदार को ग्राहक से मिले डॉक्टर की पर्ची की कॉपी दो साल अपने रिकॉर्ड में रखनी होती है। इन दवाओं के लेबल पर XRx लिखा होता है। ओवर द काउंटर (ओटीसी) दवाएं मेडिकल से आसानी से मिल जाती है। इनमें टेबलेट, क्रीम व सिरप होती हैं। शेड्यूल एच में टेबलेट, सिरप व इंजेक्शन के हाई कंपोजिशन वाली दवाइयां शामिल होती हैं।

एंटीबायोटिक के अतिप्रयोग से गंभीर संक्रमण में प्रभाव हो गया कम- स्टडी

मेडिकल जर्नल द लैसेंट की पिछले साल आई एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में दुनियाभर में 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत ऐसे बैक्टीरिया के संक्रमण से हुई, जिस पर दवाओं का असर नहीं हुआ। जर्नल ने रिपोर्ट में कहा कि पिछले कुछ सालों से हल्के संक्रमण के लिए लोगों में एंटीबायोटिक के अतिप्रयोग के चलन से गंभीर संक्रमण में यह दवाएं कम प्रभावी हो रही हैं। सामान्य बीमारी व संक्रमण में लोगों को मौत हो रही है, जिनका पहले आसानी से इलाज हो जाता था। एंटीबायोटिक के ज्यादा सेवन से शरीर के अंदर जिन बैक्टीरिया से संक्रमण हो रहा था, वह अब प्रतिरोधी बन गए हैं। अब उन पर इस एंटीबायोटिक का असर नहीं हो रहा है। पिछले साल ब्रिटेन के स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेताया था कि कोविड 19 के दौरान लोग अस्पतालों में भर्ती होने लगे और बड़ी मात्रा में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करने लगे, इसके कारण एएमआर का खतरा भी बढ़ गया।

पिछले साल PLOS ONE की तरफ से डिपेंशिया बीमारी को लेकर एक स्टडी की गई। इस बीमारी में उम्र बढ़ने के साथ मरीज की मानसिक स्थिति खराब होती जाती है। यह बीमारी 65 साल के ऊपर आयु वालों में ही देखी जाती है, लेकिन इसकी शुरुआत मिडिल एज से हो जाती है। लाइफस्टाइल, सोने के पैटर्न, खानपान और डिप्रेशन इसके लिए जिम्मेदार माना जाता है। स्टडी के मुताबिक, मिडिल एज में एंटीबायोटिक के ज्यादा सेवन से याददाश्त धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है। महिलाओं में यह समस्या ज्यादा होती है। स्टडी में बताया गया कि बैक्टीरियल संक्रमण से बचने के लिए एंटीबायोटिक का ज्यादा सेवन याददाश्त को कमजोर बनाता है। यह स्टडी अमेरिका की 14542 नर्स पर किया गया था।