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48 साल की कानूनी लड़ाई के बाद छत्तीसगढ़ में गंगरेल जलाशय के विस्थापित आदिवासियों को मिला न्याय

छत्तीसगढ़ में धमतरी के गंगरेल बांध के प्रभावित 8590 परिवारों को 48 वर्ष की कानूनी लड़ाई के बाद न्याय की उम्मीद जगी है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राज्य शासन को प्रभावित ग्रामीणों को उचित मुआवजा व व्यवस्थापन करने का आदेश जारी किया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 27 Dec 2020 09:56 PM (IST)Updated: Sun, 27 Dec 2020 09:56 PM (IST)
48 साल की कानूनी लड़ाई के बाद छत्तीसगढ़ में गंगरेल जलाशय के विस्थापित आदिवासियों को मिला न्याय
हाई कोर्ट ने तीन महीने के भीतर विस्थापितों को पुनर्वासित करने और मुआवजा देने का दिया आदेश।

राधाकिशन शर्मा/बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में धमतरी के गंगरेल बांध के प्रभावित 8,590 परिवारों को 48 वर्ष की कानूनी लड़ाई के बाद न्याय की उम्मीद जगी है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राज्य शासन को प्रभावित ग्रामीणों को उचित मुआवजा व व्यवस्थापन करने का आदेश जारी किया है। इसके लिए तीन महीने का समय दिया गया है। उल्लेखनीय है कि सिंचाई सुविधा के लिए राज्य सरकार ने धमतरी में 1972 में गंगरेल बांध बनाने का निर्णय लिया था। बांध के डुबान में 55 गांव आए।

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मुआवजे को लेकर प्रभावित ग्रामीणों ने 48 वर्ष तक लड़ी कानूनी लड़ाई

मुआवजे की शर्त पर प्रभावित ग्रामीणों ने गांव खाली कर दिया, लेकिन अफसरों ने मुआवजा देने में आनाकानी शुरू कर दी। तब आठ हजार 590 प्रभावित परिवारों ने गंगरेल बांध प्रभावित समिति बनाई और जबलपुर हाई कोर्ट में मुआवजा व व्यवस्थापन की मांग को लेकर गुहार लगाई। उन्होंने 48 वर्ष तक कानूनी लड़ाई लड़ी। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में 20 साल मामला चला।

गंगरेल बांध के डुबान में आए 55 गांवों की 98 फीसदी आबादी आदिवासियों की थी

गंगरेल बांध (रविशंकर जलाशय) के डुबान में आए 55 गांवों की 98 फीसदी आबादी आदिवासियों की थी। वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी गांव में रह रहे थे। तीसरी पीढ़ी को अब जाकर न्याय मिला है। समिति ने वकील संदीप दुबे के माध्यम से हाई कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया कि जमीन अधिग्रहण के पूर्व जिला प्रशासन और सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने पुनर्वास नीति के तहत व्यवस्थापन करने आश्वासन दिया था। अधिग्रहण के बाद इस ओर ध्यान ही नहीं दिया।

मुआवजा देने में मनमर्जी की गई

मुआवजा देने में भी मनमर्जी की गई। एक पेड़ के लिए 25 पैसे का भुगतान किया है। जबकि दस्तावेज पर गौर करें तो प्रभावितों को 10 रुपये से लेकर 20 रुपये और अधिकतम 250 रुपये मुआवजा दिया गया है। मामले में जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बैंच में 24 दिसंबर को फैसला सुनाया।

पूर्ववर्ती सरकार कर रही थी दो तरह की बातें

याचिकाकर्ता के वकील दुबे ने मामले में निश्शुल्क पैरवी की। उन्होंने कोर्ट को बताया कि पूर्ववर्ती सरकार अपने विधि अधिकारियों के माध्यम से हाई कोर्ट के समक्ष अलग जवाब देती थी और मौके पर अपने अधिकारियों के जरिए प्रभावितों से अलग बात करती थी। प्रभावितों को आंदोलन न करने की समझाइश देते हुए याचिका के अनुसार उनकी बातों को स्वीकार करने का आश्वासन देते थे।


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