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    Armed Forces : 'अनुशासन सशस्त्र बलों की अमिट पहचान', SC ने कहा- सेना की सेवा शर्तों से कोई समझौता नहीं

    By AgencyEdited By: Ashisha Singh Rajput
    Updated: Sun, 30 Jul 2023 08:45 PM (IST)

    अपीलकर्ता ने इस मामले में अपनी तरफ से पूरी अनुशासनहीनता बरती। इसका किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है। वह अतिरिक्त अवकाश लेने के लिए क्षमा प् ...और पढ़ें

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    सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह सैन्य अधिकारी आदतन कानून तोड़ने वाला है।

    नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने दी गई छुट्टी से अधिक समय तक रुकने के लिए बर्खास्तगी के खिलाफ एक सैन्यकर्मी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अनुशासन सशस्त्र बलों की अमिट पहचान है और इसमें सेवा की शर्तों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। अपीलकर्ता ने चार जनवरी, 1983 को मैकेनिकल ट्रांसपोर्ट ड्राइवर के रूप में सेना सेवा कोर में दाखिला लिया।

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    क्या कहा अदालत ने ?

    जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा कि सैन्य अधिकारी ने अपनी पत्नी के इलाज के मेडिकल सर्टीफिकेट का कोई दस्तावेजी सुबूत नहीं दिया। ताकि यह पता चल सके कि उनकी पत्नी वाकई बेहद गंभीर रूप से बीमार थीं और उनके निरंतर इलाज के लिए उनकी उपस्थिति जरूरी थी।

    अपीलकर्ता ने इस मामले में अपनी तरफ से पूरी अनुशासनहीनता बरती। इसका किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है। वह अतिरिक्त अवकाश लेने के लिए क्षमा प्रार्थी बनकर और 108 दिनों तक ड्यूटी से नदारद रहे। देखने वाली बात यह है कि अगर उनकी क्षमा की गुहार को स्वीकार किया जाता तो यह सैन्य बल में अन्य लोगों के लिए गलत संकेत होता।

    यह सैन्य अधिकारी आदतन कानून तोड़ने वाला है : सर्वोच्च अदालत

    सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह सैन्य अधिकारी आदतन कानून तोड़ने वाला है। उसके लिए ढिलाई नहीं बरती जा सकती है। हरेक को इस सच्चाई से वाकिफ होना चाहिए अनुशासन सशस्त्र सेनाओं की अमिट पहचान है और इसकी सेवा शर्तों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। 1998 में उन्हें शुरू में आठ नवंबर से 16 दिसंबर तक 39 दिनों के लिए छुट्टी दी गई थी।

    क्या है पूरा मामला ?

    अनुकंपा के आधार पर छुट्टी के विस्तार के उनके अनुरोध को उत्तरदाताओं ने स्वीकार कर लिया था और उन्हें वर्ष 1999 के लिए दिसंबर से 30 दिन की अग्रिम वार्षिक छुट्टी (17 दिसंबर,1998 से 15 जनवरी, 1999 तक) दी गई थी। इसके बावजूद वह दोबारा ड्यूटी पर शामिल नहीं हुए। यह दावा करते हुए कि उसकी पत्नी बीमार पड़ गई है और वह उसके इलाज की व्यवस्था कर रहा है और उसकी देखभाल कर रहा है, उस व्यक्ति ने उसे दी गई छुट्टी से अधिक समय तक छुट्टी दी।

    इन परिस्थितियों की जांच करने के लिए सेना अधिनियम की धारा 106 के तहत 15 फरवरी 1999 को एक कोर्ट आफ इंक्वायरी आयोजित की गई थी। इसके तहत अपीलकर्ता अपनी छुट्टी से अधिक समय तक रुका था। अदालत ने राय दी कि उसे 16 जनवरी, 1999 से भगोड़ा घोषित कर दिया जाए। समरी कोर्ट मार्शल ने उसे दोषी पाया और सेवा से बर्खास्त कर दिया।