अब भारत को धमकी देने से पहले चीन को सोचना होगा कई बार, वजह है ये
असम को अरुणाचल प्रदेश से जोड़ने वाले ढोला सादिया पुल ने भारत के सामरिक समीकरण को मजबूत बना दिया है।
वीना सुखीजा
भारत को धमकाने से पहले अब चीन को चार बार सोचना पड़ेगा। अब शायद उसकी ऐसी धमकियों से कोई असर भी नहीं पड़ने वाला। इसका श्रेय उस ढोला सादिया पुल को जाता है जिसने भारत के लिए अचानक ही सामरिक समीकरण बदल दिए। असम और अरुणाचल को जोड़ने वाले पुल का श्रेय अपेक्षाकृत कम बोलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी दिया जाना चाहिए जिनका भाजपा ‘मौनी बाबा’ कहकर उपहास उड़ाती आई है। इस पुल परियोजना की शुरुआत उनके कार्यकाल में 2011 में हुई थी।
यह उन गिनी-चुनी परियोजनाओं में शामिल रहा जिसमें मनमोहन सिंह ने निजी स्तर पर दिलचस्पी दिखाई। आज यह नए उभरते भारत के सबसे मजबूत प्रतीक के रूप में बनकर उभरा है। इसलिए ढोला सादिया पुल को लेकर कांग्रेस या यूपीए सरकार के योगदान की जो लोग अनदेखी कर रहे हैं वह असल में सच्चई से मुंह चुरा रहे हैं। ईमानदारी का तकाजा इतना तो कहता है कि जिसने उस परियोजना की कल्पना की है उसे स्वीकार किया जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2017 को असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच ब्रrापुत्र नदी पर तैयार ढोला-सादिया पुल का उद्घाटन किया और इसी के साथ ही महज इन दोनों प्रदेशों के बीच ही नहीं बल्कि देश के आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा की कनेक्टीविटी का एक नया युग शुरू हो गया। हालांकि तय लक्ष्य से इसके निर्माण में कुछ महीने ज्यादा समय लगा लेकिन इसकी शिकायत शायद किसी को नहीं होगी क्योंकि अंतत: शानदार ढंग से यह कार्य संपन्न हुआ। वास्तव में चीन 1962 के बाद से ही लगातार दबाव की राजनीति करता रहा है।
अपनी इसी राजनीति के तहत वह अरुणाचल प्रदेश को अपना ‘दक्षिणी तिब्बत’ कहता रहा है। इस रणनीति की बदौलत वह एक तीर से दो निशाने साधता है। एक तरफ तो अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत कहकर वह भारत पर अपना दबाव बनाए रखने की कोशिश करता है। वहीं दूसरी तरफ अपने इस संबोधन के जरिये वह तिब्बत पर अपने कब्जे को वैधता प्रदान करने की कोशिश करता है। मगर इस पुल के अस्तित्व में आने के बाद जहां व्यवहारिक रूप से अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन का भारत पर बनाया जाने वाला मनोवैज्ञानिक दबाव बेमतलब साबित हुआ है।
वहीं इस पुल के बाद रणनीतिक दृष्टि से चीन के खिलाफ भारत की स्थिति मजबूत हुई है। सेना इससे बहुत खुश है। साथ ही स्थानीय जनता भी इस पुल से अपार खुशी महसूस कर रही है। इस पुल की बदौलत अरुणाचल के लोग ज्यादा से आसानी से असम आ सकेंगे। इससे आंतरिक जन-लगाव मजबूत होगा। 9.15 किलोमीटर लंबा और 12.9 मीटर चौड़ा यह पुल ब्रrापुत्र नदी से निकलने वाली लोहित नदी पर बना है, जो असम के ढोला और अरुणाचल प्रदेश के सादिया को आपस में जोड़ता है। इसके दोनों ओर बने संपर्क सड़कों को जोड़कर देखें तो इसकी कुल लंबाई 28.5 किलोमीटर बनती है।
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत बने इस पुल का निर्माण 2011 में शुरू हुआ था और साल 2015 में यह पूरा हो जाना था, लेकिन मुआवजा संबंधी कुछ दिक्कतों के चलते यह 2017 के मध्य में जाकर पूरा हुआ। इसकी लागत 2,056 करोड़ रुपये आई है। इस पुल के बाद पूवरेत्तर में कनेक्टिविटी की एक बड़ी समस्या हल हो गयी है। 1अभी तक दोनों प्रदेशों के बीच आवागमन के लिए नावों का सहारा लेना पड़ता था। ये नावें चूंकि केवल दिन में चलती थीं, इसलिए रात के समय यह इलाका एक तरह से दो अलग-अलग देशों में बदल जाता था। बाढ़ के समय तो दिन हो या रात आवागमन पूरी तरह से बंद हो जाता था।
लेकिन इस पुल के बन जाने के बाद असम और अरुणाचल हर समय के लिए एक दूसरे से जुड़ गए हैं। इस पुल से असम के रूपाई में एनएच-37 और अरुणाचल प्रदेश के एनएच-52 के बीच की दूरी 165 किलोमीटर कम हो गई है। इससे यात्र का कुल एक घंटा रह गया है जबकि पहले यह छह घंटे था। इस पुल का एक बड़ा आर्थिक लाभ भी होगा। इससे हर दिन 10 लाख रुपये के पेट्रोल और डीजल की बचत होगी। अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों की रणनीतिक जरूरतों के लिहाज से भी यह पुल अहम है क्योंकि अरुणाचल प्रदेश में कई जलविद्युत परियोजनाएं चल रही हैं।
भूकंप को लेकर संवेदनशील पूवरेत्तर इलाके को देखते हुए हर 50 मीटर पर बने इस पुल के कुल 182 खंभों को भूकंपरोधी बनाया गया है। ढोला-सादिया पुल 60 टन वजन तक के टैंक का भार भी सह सकता है। इस पुल को बनाने में इम्पोर्टेड हाइड्रोलिक का इस्तेमाल किया गया है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू के मुताबिक चीन चूंकि लगातार आक्रामक रुख अपनाए हुए है, इसलिए जरूरी है कि हम अपनी आधारभूत संरचना को इतना मजबूत बनाएं कि अपने भू-भाग की सुरक्षा निश्चित कर सकें।
अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है और यह सच्चाई बदलेगी नहीं, भले ही कोई पसंद करें या न करें। पुल के अलावा भारत एक टू-लेन ट्रांस अरुणाचल हाइवे का भी निर्माण कर रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के समय की तमाम पुरानी सड़कों को भी दुरुस्त कर रहा है। इसके साथ ही सड़क चैड़ी करने को लेकर चार परियोजनाओं पर काम जारी है। यहां भारी वजन ढोने वाले जहाजों की लैंडिंग के लिए भी लैंडिंग ग्राउंड्स तैयार किए जा रहे हैं। भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी राज्य में आधारभूत संरचना विकसित करने पर जोर देने की बात कही है।
इंडो-तिब्बती सीमा सुरक्षा बल के जवानों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘हमें शांति चाहिए लेकिन वह शांति सम्मान के साथ होनी चाहिए। हम उन सभी को सबक सिखाने में सक्षम हैं जो ये सोचते हैं कि हम कमजोर है।’ उनकी यह टिप्पणी चीन की उस आपत्ति के मद्देनजर आई जिसमें चीन ने ‘विवादित क्षेत्र में सैन्य आधारभूत संरचना के निर्माण’ पर आपत्ति दर्ज की थी। भारत ने पहले से ही इस पहाड़ी क्षेत्र में दो सैन्य डिवीजन तैनात कर रखे हैं और अब वो इसे बढ़ाने भी जा रहा है ताकि चीन को लेकर हमारी सुरक्षा पुख्ता हो सके।
दरअसल, फौज की ताकत तब तक बेकार है जब तक कि उसके पास तेजी से मूवमेंट के लिए सड़कें और पुल न हों। लड़ाई के दौरान यह आधारभूत ढांचा बड़ी भूमिका निभाता है। सबसे अहम बात यह है कि स्थानीय लोग इस पुल के निर्माण से बहुत खुश हैं। असम के मुख्यमंत्री ने भी जनता की इस खुशी को देखते हुए कहा है, ‘मैं वादा करता हूं कि यह सिर्फ फौज के मतलब की चीज बनकर नहीं रह जाएगा बल्कि यह पुल असम और अरुणाचल प्रदेश की आर्थिक तरक्की में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।’ निश्चित रूप से इस पुल ने एक झटके में ही पूवरेत्तर की तस्वीर को बदल दिया है।
(लेखिका इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में कार्यकारी संपादक हैं)
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