त्रिभाषा फॉर्मूला की सिफारिश वैश्विक जरूरत, धर्मेंद्र प्रधान बोले- भाषा थोपी नहीं, मातृभाषा में ही शिक्षा देने की बात कही
धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चद्रबाबू नायडू ने तो कहा है कि हम पांच भाषाओं में बच्चों को पढ़ाएंगे। वैसे भी हमारे बच्चे जितनी अधिक भाषाओं को सीखेंगे उतना ही उनका विकास होगा। चर्चा में शिक्षको के क्षमता निर्माण की मुद्दा भी उठा। इस दौरान सुधामूर्ति ने प्रत्येक तीन वर्ष में शिक्षकों के प्रशिक्षण और टेस्ट का सुझाव दिया। जिसे प्रधान ने सराहा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ( एनईपी ) के त्रिभाषा फॉर्मूले और तमिल भाषा के मुद्दे पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को साफ किया कि केंद्र सरकार किसी भी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोप रही है बल्कि वह तो सभी राज्यों को पांचवीं कक्षा तक बच्चों को अनिवार्य रूप से मातृभाषा में ही शिक्षा देने की बात कह रही है।
जो लोग हम पर तमिल भाषा को कमजोर करने का आरोप लगा रहे है शायद उन्हें नहीं पता है कि केंद्र ने पिछले सालों में तमिल भाषा को आगे बढ़ाने के लिए काशी-तमिल व तमिल-सौराष्ट्र संगमम जैसे बड़े आयोजन किए है। प्रधान ने शिक्षा में एक विचारधारा को बढ़ाने के कांग्रेस के आरोपों पर भी जवाब किया और कहा कि यह सच है कि हम शिक्षा में एक विचारधारा को आगे बढ़ा रहे है लेकिन यह विचारधारा भारतीयता है।
नौकरियों में ज्यादा महत्व दिया
केंद्रीय शिक्षा मंत्री प्रधान ने मंगलवार को राज्यसभा में शिक्षा के कामकाज के मुद्दे पर हुई चर्चा के जवाब में यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि त्रिभाषा फॉर्मूले को वैश्विक जरूरत को देखते हुए शामिल किया गया। उन्होंने इस दौरान एक रिपोर्ट का भी हवाला देते हुए कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर उन्हें नौकरियों में ज्यादा महत्व दिया जाता है, जो लोगों बहुभाषी होते है।
स्टालिन सरकार को भी आईना दिखाया
उन्होंने इस दौरान द्रमुक और स्टालिन सरकार को भी आईना दिखाया और कहा कि जो लोग द्विभाषा फॉर्मूले की बात कर रहे है उन्हें शायद पता नहीं कि राज्य में तमिल भाषा में पढ़ाई करने वालों की संख्या में लगातार कम हो रही है। राज्यसभा में करीब छह घंटे चली इस चर्चा में भाजपा, कांग्रेस, द्रमुक , तृणमूल कांग्रेस, सपा, शिवसेना उद्धव गुट, आरजेडी आदि दलों के सदस्य शामिल थे। राज्यसभा में इस चर्चा की शुरुआत कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने की।
शिक्षकों के पदों में भारी कमी का मुद्दा
उन्होंने सरकार पर समग्र शिक्षा के तहत कुछ राज्यों पैसा न देने का आरोप लगाया। साथ ही स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पदों में भारी कमी का मुद्दा उठाया। उन्होंने सरकार पर शिक्षा पर एक विचारधारा को आगे बढ़ाने और उसमें सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। स्कूली की बुनियादी शिक्षा को लेकर शिक्षा और महिला बाल विकास मंत्रालय के बीच तालमेल न होने का मुद्दा भी उठाया।
शिक्षा व महिला बाल विकास मंत्रालय के बीच तालमेल
प्रधान ने अपने जवाब में कहा कि शिक्षा व महिला बाल विकास मंत्रालय के बीच पूरा तालमेल है। एनसीईआरटी की किताबों से गांधी जी के हत्यारे के बारे पढ़ाए जा इस विषय को हटाने पर भी उन्होंने स्पष्ट किया और कहा कि यह सावर्जनिक है। लेकिन जिस तरह उसके जरिए पूरे ब्राम्हण समाज को अपमानित करने की कोशिश थी वह गलत था। हम नहीं चाहते है कि किताबों में ऐसा कुछ भी पढ़ाया जाए जिससे समाज में वैमनस्य बढ़े।
किसी पर कोई भाषा नहीं थोपी गई
प्रधान ने इस दौरान डीएमके सांसद कनिमोझी के आरोपों पर भी जवाब दिया और कहा कि तमिलनाडु के मुख्य सचिव ने 15 मार्च 2024 पत्र लिखकर कहा था कि वह पीएम-श्री स्कूल के लिए केंद्र के साथ एमओयू करना चाहते है। उन्होंने पत्र भी दिखाया। अब तमिलनाडु इससे पीछे हट रहा है। एनईपी के जरिए किसी पर कोई भाषा नहीं थोपी गई है। आप हमें गाली दे सकते है लेकिन तमिलनाडु की नई पीढ़ी सब देख रही है। वह अपने बेहतर भविष्य को जानती है कि क्या पढ़ने में बेहतर है और क्या नहीं।
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