'देश में कई धार्मिक समुदाय, जिम्मेदारी से बोलें नेता, मद्रास हाई कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: लिया संज्ञान
मद्रास हाई कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु के पूर्व वन मंत्री के. पोनमुडी के विरुद्ध स्वत संज्ञान मामले को लंबित रखने का फैसला किया। पोनमुडी ने कथित तौर पर हिंदू संप्रदायों शैव और वैष्णवों को लेकर अभद्र और अपमानजनक टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी से व्यापक आक्रोश फैल गया था और उन्हें द्रमुक के उप-महासचिव पद से हटा दिया गया।
आइएएनएस, चेन्नई। मद्रास हाई कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु के पूर्व वन मंत्री के. पोनमुडी के विरुद्ध स्वत: संज्ञान मामले को लंबित रखने का फैसला किया। पोनमुडी ने कथित तौर पर हिंदू संप्रदायों शैव और वैष्णवों को लेकर अभद्र और अपमानजनक टिप्पणी की थी।
इस देश में कई संप्रदाय और धार्मिक समुदाय हैं
कोर्ट ने कहा, ''आजकल सभी राजनेता और सार्वजनिक भाषण देने वाले सभी व्यक्ति सोचते हैं कि अनुच्छेद 19 उन्हें पूर्ण अधिकार देता है कि आकाश ही सीमा है। लेकिन भाषण पर उचित प्रतिबंध हैं। इस देश में कई संप्रदाय और धार्मिक समुदाय हैं। सार्वजनिक हस्तियों को जिम्मेदारी बरतनी चाहिए। यह एक लोकतांत्रिक देश है, राजशाही नहीं।
बैठक में एक विवादास्पद किस्सा सुनाया था
'थांथई पेरियार द्रविड़ कड़गम (टीपीडीके) द्वारा आयोजित एक बैठक के दौरान पोनमुडी ने आठ अप्रैल को कथित तौर पर एक विवादास्पद किस्सा सुनाया था। इसमें एक वेश्या ने एक व्यक्ति से पूछा कि वह शैव है या वैष्णव, जिसके बाद उसने अपनी दरें बताई थीं।
इस टिप्पणी से व्यापक आक्रोश फैल गया था और उन्हें द्रमुक के उप-महासचिव पद से हटा दिया गया। तमिलनाडु पुलिस द्वारा मामले में दर्ज 120 से अधिक शिकायतों को बंद करने के बावजूद हाई कोर्ट की जस्टिस पी. वेलमुरुगन की पीठ ने इस मुद्दे से निपटने के प्रदेश के तरीके पर चिंता व्यक्त की।
अदालत मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकतीं
पीठ ने कहा कि अदालत ऐसी घटनाओं पर मूकदर्शक नहीं रह सकता और इस बात पर जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण अधिकार नहीं है।
राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए महाधिवक्ता पीएस रमन ने अदालत को सूचित किया कि पुलिस ने प्रारंभिक जांच करने के बाद एफआइआर दर्ज नहीं करने का फैसला किया था क्योंकि इसका यह निष्कर्ष निकाला कि पोनमुडी ने केवल एक पुराना किस्सा दोहराया था। लेकिन जज ने प्रारंभिक जांच के चरण में इस तरह के निष्कर्ष के आधार पर सवाल उठाया।
पुलिस की कार्रवाई पर अदालत ने उठाए सवाल
उन्होंने पूछा, ''पुलिस प्रारंभिक जांच के दौरान कोई निर्णय नहीं लिख सकती। वे यह नहीं कह सकते कि उस स्तर पर यह नफरती भाषण नहीं है। क्या वे कह सकते हैं कि केवल मूल वक्ता को ही दंडित किया जा सकता है, जो इसे दोहराता है उसे नहीं?''
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सभी शिकायतकर्ताओं को उनके मामलों के बंद होने के बारे में उचित रूप से सूचित किया जाना चाहिए। यदि कोई शिकायतकर्ता बाद में आरोप लगाता है कि उन्हें सूचित नहीं किया गया, तो वह राज्य के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करेगी।
अदालत घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखेगी
जस्टिस वेलमुरुगन ने यह भी कहा कि अदालत घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखेगी, खासकर यदि शिकायतकर्ता मामले को उच्च पुलिस अधिकारियों तक ले जाते हैं।
उन्होंने कहा, ''उन्हें अपील करने दें। इस बीच हम मामले को लंबित रखेंगे और देखेंगे कि क्या होता है। अदालत सतर्कता से देखना चाहती है।'' मामले को आगे की सुनवाई के लिए एक अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
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