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    दिल्ली और मुंबई में बढ़ रहा कार्बन डाईऑक्साइड और मीथेन का स्तर, मानसून की विदाई के बाद AQI में भारी गिरावट

    Updated: Wed, 15 Oct 2025 10:00 PM (IST)

    सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ने लगा है। आईआईटी बांबे के एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली और मुंबई में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें बढ़ रही हैं। दिल्ली का AQI 'खराब' श्रेणी में है, जिसके शुक्रवार तक और खराब होने की आशंका है। सैटेलाइट डेटा से मीथेन हॉटस्पॉट की पहचान की गई है, जिससे नीति निर्माताओं को प्रदूषण नियंत्रण में मदद मिलेगी।

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    दिल्ली और मुंबई में बढ़ रहा कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन का स्तर (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्दियों की दस्तक के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी समेत कई शहरों में वायु प्रदूषण भी अपना असर दिखाने लगता है। यूं तो दिवाली से पहले दिल्ली में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन ने दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) के तहत चरण एक के उपाय लागू किए हैं।

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    मगर, इस बीच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) बांबे की ओर से किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली और मुंबई में ग्रीनहाउस गैसें - कार्बन डाइआक्साइड और मीथेन बढ़ रही हैं। कल शाम तक 346 तक पहुंच सकता है दिल्ली का एक्यूआइ पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन ऐसे समय में किया गया है जब दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) 201 के साथ एक बार फिर 'खराब' वायु गुणवत्ता दर्ज की गई है।

    क्या है AQI का हाल?

    मंगलवार को एक्यूआइ 211 था। शुक्रवार शाम तक दिल्ली का एक्यूआइ 346 तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसे बहुत खराब श्रेणी में रखा गया है। मानसून की विदाई के बाद मुंबई में भी वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी गई। पिछले हफ्ते मुंबई के 30 निरंतर वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों में से 25 की रीडिंग के आधार पर शहर का समग्र एक्यूआइ औसतन 153 रहा।

    हाटस्पाट की पहचान करके सैटलाइट-आधारित निगरानी सें¨सग डाटा (दूरसंवेदी आंकड़ों) का उपयोग करते हुए आइआइटी बांबे के शोधकर्ता प्रो. मनोरंजन साहू और आदर्श अलगड़े ने मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में कार्बन डाइआक्साइड और मीथेन जैसे ग्रीनहाउस गैसों को मापा। उन्होंने दर्शाया कि दोनों शहरों में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ रहा है और उनमें मौसमी और स्थानिक भिन्नताएं दिखाई देती हैं।

    इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने ग्रीनहाउस गैसों के स्तर का पूर्वानुमान लगाने के लिए शहर-विशिष्ट सांख्यिकीय माडल भी विकसित किए। साहू ने कहा, ''प्रवृत्तियों और हाटस्पाट की पहचान करके सेटेलाइट-आधारित निगरानी नीति निर्माताओं को सबसे खराब स्त्रोतों को लक्षित करने और समय के साथ नीतियों के वास्तविक दुनिया पर प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए के लिए साक्ष्य प्रदान करती है। खराब स्त्रोतों के उदाहरण में लैंडफिल गैस कैप्चर को प्राथमिकता देना, उच्च-उत्सर्जन गलियारों में यातायात प्रबंधन और औद्योगिक उत्सर्जन प्रवर्तन शामिल हैं।''

    नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के आंकड़ों की मदद शोधकर्ताओं की टीम ने कार्बन डाइआक्साइड का पता लगाने वाली नासा की आर्बिटिंग कार्बन आब्जर्वेटरी-2, और मीथेन का पता लगाने वाली यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सेंटिनल-5पी के आंकड़ों का उपयोग किया। टीम ने सीजनल आटोरिग्रैसिव इंटीग्रेटेड मूविंग एवरेज माडल का भी इस्तेमाल किया। सेटेलाइट की मदद से प्राप्त निष्कर्षों का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने पिछले कुछ वर्षों में मीथेन और कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा का अवलोकन किया।

    इन आंकड़ों ने शोधकर्ताओं को मीथेन हाटस्पाट के उभरने के प्रति भी सचेत किया जो आमतौर पर अपशिष्ट जल, लैंडफिल या उच्च औद्योगिक गतिविधियों वाले क्षेत्रों के आसपास थे। ऐसे हाटस्पाट की पहचान और अपशिष्ट प्रबंधन एवं तीव्र शहरी विकास से उत्पन्न जोखिम दर्शाते हैं कि कैसे सेटेलाइट डाटा लक्षित नीतिगत रणनीति बनाने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है। कार्बन डाइआक्साइड2 की मात्रा भी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ती देखी गई।