Delhi Election Result 2025: अपने ही जाल में फंसे केजरीवाल, लोगों ने मोदी की गारंटी पर किया भरोसा
Delhi Election Result 2025 दिल्ली विधानसभा का चुनाव परिणाम 8 फरवरी को आ गया। बीजेपी ने प्रचंड जीत हासिल की। वहीं (Arvind Kejriwal) अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के हाथ निराशा लगी। केजरीवाल ने लोगों की सहानुभूति पाने की कोशिश की लेकिन अपने ही जाल में फंस गए। वहीं दिल्ली की जनता ने मोदी की गारंटी पर ज्यादा भरोसा दिखाया।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। अभी कुछ दिनों पहले किसी एक नेता ने कहा था- दिल्ली में कीचड़ इतना फैल गया है कि कमल ही खिलेगा, हुआ भी वैसा ही। पर सवाल है कि कीचड़ किसने फैलाया। जाहिर तौर पर अरविवद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने। जनता को यह रास नहीं आया। यह कीचड़ विचारों का था, नैरेटिव का था।
एक नैरेटिव था-हमें काम नहीं करने दिया जाता है, हम महिलाओं की सुरक्षा नहीं कर सकते क्योंकि पुलिस केंद्र के पास है, हमें फंड नहीं दिया जाता। जनता तक इसका संदेश यह गया कि अगले पांच साल तक भी यही पैंतरे चले जाएंगे। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नैरेटिव था- मैं दिल्ली को खुद देखूंगा, यह सुनिश्चित करूंगा कि दिल्ली के हालात बदलें।
नतीजों के लिए केजरीवाल खुद जिम्मेदार
संदेश स्पष्ट तौर पर गया कि दिल्ली बदलनी है, ईज आफ लिविंग लानी है, यमुना साफ सुथरी बनानी है तो फिर मोदी के नाम से वोट डालो। सीधे सीधे शब्दों में कहा जाए तो दिल्ली के नतीजों के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन खुद केजरीवाल भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने जो जाल तैयार किया था भाजपा को फंसाने के लिए, उसमें खुद ही फंस गए।
नहीं काम आई सहानुभूति बटोरने की कोशिश
सहानुभूति के लिए जो आधार तैयार किया था उस पर खुद ही फिसल गए। खुद को लाचार बताकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश को जनता ने खारिज कर दिया। जबकि भाजपा के लिए जीत इसलिए बड़ी है क्योंकि असम, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में बड़ी जीत के बावजूद दिल्ली दूर थी। अब दिल्ली भी उन राज्यों में शुमार हो गई जहां भाजपा लगभग 50 फीसद वोट तक पहुंच गई है।
दिल्ली के नतीजे का संदेश राष्ट्रव्यापी
दिल्ली देश की राजधानी है इसलिए इस नतीजे का संदेश भी राष्ट्रव्यापी है। यह दुखद है कि चुनावी राजनीति के केंद्र में रेवड़ी आ गई है लेकिन जनता ने यह संदेश दे दिया है कि विश्वसनीयता उसके उपर है। रेवड़ी के उपर विकास की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती है। और विकास के लिए एक प्रशासक के तौर पर छवि जरूरी है। केजरीवाल प्रशासक की छवि खो चुके थे।
अमित शाह की रणनीति और जेपी नड्डा ने लगा दी पूरी टीम
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी के ही चेहरे को आगे रखते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रणनीति तैयार की और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की पूरी टीम लगाई गई। पहली रणनीति थी कि लोगों को यह भरोसा दिला दिया जाए कि जो सहूलियतें मिल रही हैं वह खत्म नहीं होगी, दूसरी रणनीति थी आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को उनके ही बयानों में घेरने की और तीसरी रणनीति थी विकास का विजन देने की।
उपर से मोदी की गारंटी की छौंक। फार्मूला काम कर गया। इसी रणनीति के तहत केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद की योग्यता को भी मुद्दा बनाया गया था। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे को एक ट्रंप कार्ड की तरह खेला था ताकि वह बता पाएं कि वह ईमानदार हैं। लेकिन जैसे जैसे बहस बढ़ी, खुद केजरीवाल और आप इसमें घिरती गई।
यमुना में जहर का मुद्दा केजरीवाल पर ही भारी पड़ा
यमुना में जहर मिलाने के मुद्दे पर भी यही हुआ। यानी जो जाल बनाया था फंसाने के लिए उसमें खुद फंस गए। दिल्ली की जनता ने आगे बढ़ने की ललक दिखाई है। उन्हें यह अखरता है कि देश की राजधानी एनसीआर के नोएडा और गुरुग्राम से पीछे क्यों है। यही विकास की ललक है जो अयोध्या के मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव के नतीजों में दिखी।
कांग्रेस में थोड़ी खुशी थोड़ा गम
यह अच्छी बात है कि अब तक ईवीएम पर कोई आरोप लगाए बगैर आम आदमी पार्टी ने हार स्वीकार कर ली है। कांग्रेस में थोड़ी खुशी थोड़ा गम है। खुशी इसलिए कि बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल से आप को समर्थन देने वाले दलों और नेताओं को दिल्ली की जनता से बता दिया वह अपने क्षेत्र तक ही सीमित रहें। इसका फायदा जरूर कांग्रेस आगे उठाने की कोशिश करेगी। यानी इंडी गठबंधन के लिए संदेश है।
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