लाल किले की शान में आंच, गिरने के कगार पर पहुंचा दीवान ए खास
लालकिले के रखरखाव के मामले में एक बड़ी लापरवाही उजागर हुई है कि इस किला का महत्वपूर्ण महल दीवान ए खास गिरने के कगार पर पहुंच गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की नींद तब टूटी जब यह खतरनाक स्थिति में आ गया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए एएसआइ ने दीवान ए खास में पर्यटकों के प्रवेश पर
नई दिल्ली (राज्य ब्यूरो)। लालकिले के रखरखाव के मामले में एक बड़ी लापरवाही उजागर हुई है कि इस किला का महत्वपूर्ण महल दीवान ए खास गिरने के कगार पर पहुंच गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की नींद तब टूटी जब यह खतरनाक स्थिति में आ गया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए एएसआइ ने दीवान ए खास में पर्यटकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है और इसके संरक्षण के आदेश दिए हैं।
बादशाह शाहजहां ने लालकिला बनवाते समय रंग महल के पास ही दीवान ए खास बनवाया था। मगर इसके रखरखाव पर कभी भी कोई खास ध्यान नहीं दिया गया है। दो साल पहले एक सर्वे में पाया गया कि इस महल की छत के एक भाग में पानी का रिसाव हो रहा है। उस समय छत पर जमा बरसाती पानी को निकाल दिया गया। मगर कोई खास कार्रवाई नहीं की गई। लगभग एक साल पहले इस महल के रिंग रोड की तरफ 5 फुट तक छज्जा गिर गया। जिस पर विभाग हरकत में आया और इसका महल के कराए गए अध्ययन में बात सामने आई कि इसकी छत कमजोर हो गई है। छत के लिए डाले गए 30 फुट लंबाई वाले सवा सौ के करीब लकड़ी के बीम के दोनों के हिस्सों को दीमक खा गई है। इस बात के सामने आने पर अब इस महल के अंदर पर्यटकों के जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है तथा यहां एक गार्ड की तैनाती कर दी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इसका शीघ्र ही संरक्षण का काम शुरू कराने जा रहा है। मगर सवाल यही है कि इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हुई कि लंबे समय तक इसके संरक्षण पर किसी ने ध्यान क्यों नहीें दिया।
एएसआइ के अतिरिक्त महानिदेशक डा. बी आर मणि ने बताया कि दीवान ए खास पर किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि उसकी छत कमजोर हो गई है। छत को उखाड़ कर फिर से ठीक करने के आदेश दिए गए हैं। मगर छत के नीचे का भाग वैसा ही रहेगा। अगले कुछ समय में इस पर काम शुरू किए जाने की संभावना है। संरक्षण के दौरान यह भी प्रयास रहेगा कि इसकी छत के मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं होगा।
इतिहास :
लहरदार मेहराबों वाले प्रवेश वाला दीवान ए खास यानी निजी श्रोताओं का हाल था। इसके मध्य एक आयताकार कक्ष है। जो खंभों से उठने वाली मेहराबों से घिरा हुआ है। खंभों के निचले हिस्सों में फूल पत्तियों की सजावट इस तरह है जैसे उसे पत्थर पर जड़ा गया है। जबकि खंभों के ऊपर के भागों पर मुलम्मा चढ़ा हुआ है। इस हाल की लकड़ी की अंदरूनी छत को सन् 1911 में रंगा गया था। इसकी छत के चारों कोने स्तंभ युक्त छतरियों से आच्छादित हैं। दीवान ए खास के बीचों बीच संगमरमर का तख्त रखा है। इसी तख्त पर कभी प्रसिद्ध मयूर सिंहासन रखा था। जिसे सन् 1739 में उठाकर नादिरशाह ले गया। इस हाल के मध्य से नहरे बहिश्त बहती थी। इसके उत्तरी और दक्षिणी दीवारों के कोने की मेहराबों के ऊपर अमीर खुशरो की यह मशहूर नज्म लिखी है। अगर कहीं पृथ्वी पर स्वर्ग है तो यहीं है यहीं है यहीं है यहीं है लिखा है। इस कक्ष का प्रयोग बादशाह चुनिन्दा राजदरबारियों और खास लोगों से निजी चर्चा के लिए करते थे। प्रारम्भ में दीवान ए खास के पश्चिम में दो अहाते थे। एक उमराव के लिए था और दूसरा उनके लिए था जो बहुत ऊंचे पदों पर नहीं होते थे। ये अहाते 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों ने तोड़ दिए थे। विद्रोह के समय बहादुरशाह ने यहां दरबार भी लगाया था।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।