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    बलिदान दिवस विशेष: अटल जाओ दुनिया को बताओ, श्यामा प्रसाद ने तोड़ दिया परमिट सिस्टम

    By Arun Kumar SinghEdited By:
    Updated: Tue, 23 Jun 2020 02:21 PM (IST)

    अब भाजपा ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पद चिह्नों पर चलते हुए जम्मू कश्मीर की सभी समस्याओं की जोड़ अनुच्छेद 370 को ही तोड़ दिया। ...और पढ़ें

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    बलिदान दिवस विशेष: अटल जाओ दुनिया को बताओ, श्यामा प्रसाद ने तोड़ दिया परमिट सिस्टम

    जम्मू, राज्य ब्यूरो। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पर लगा अनुच्छेद-370 का दंश हमेशा के लिए मिट गया और एक विधान, एक निशान और एक प्रधान की व्यवस्था लागू हो गई। मगर जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने करीब सात दशक पहले ही इस सपने को जिया था और उसके लिए ही कुर्बान भी हो गए थे। उनकी 23 जून 1953 को श्रीनगर की जेल में रहस्यमय हालात में मौत हो गई थी। जम्मू-कश्मीर में परमिट सिस्टम को तोड़ कर लखनपुर में प्रवेश करने के दौरान ही मुखर्जी ने अपने साथ आए युवा अटल बिहारी वाजपेयी से कहा था कि जाओ अटल दुनिया को बताओ कि श्यामा ने परमिट सिस्टम को तोड़ दिया है।

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    नमक के ट्रक में छिपकर लौटे थे अटल बिहारी वाजपेयी

    मुखर्जी को लखनपुर में प्रवेश करते ही शेख अब्दुल्ला सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था। उनका संदेश देश तक पहुंचाने के लिए अटल नमक से भरे ट्रक में छिप कर जम्मू से भद्रवाह पहुंचे थे। वहां से हिमाचल के रास्ते होते हुए लौटे थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान से जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रवादी ताकतों की मुहिम को बल मिला था। कुछ समय बाद शेख अब्दुल्ला को भी गिरफ्तार कर लिया गया। श्यामा के बलिदान के कुछ समय बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर में परमिट सिस्टम को खत्म कर दिया। अब भाजपा ने श्यामा के पद चिह्नों पर चलते हुए जम्मू कश्मीर की सभी समस्याओं की जड़ अनुच्छेद 370 को ही तोड़ दिया।

    परमिट सिस्टम को तोड़ने आए थे जम्मू-कश्मीर

    महाराजा हरि सिंह के जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बावजूद नेहरू और शेख अब्दुल्ला के समझौते के तहत अनुच्छेद-370 पूर्ण विलय में बाधा बन गया था। यहां तक कि राज्य में प्रवेश के लिए भी परमिट लेना पड़ता था। प्रजा परिषद ने देश में जम्मू-कश्मीर के संपूर्ण विलय कि मांग को लेकर पंडित प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में आंदोलन चलाया था। प्रजा परिषद की तिरंगा यात्राओं में शामिल कई लोग पुलिस की गोली से शहीद हो गए। वर्ष 1953 के आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम तोड़ने के लिए आए थे। पुलिस ने जम्मू-कश्मीर के प्रवेश द्वार लखनपुर में ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें कश्मीर में 44 दिन जेल में रखा गया, जहां 23 जून, 1953 को रहस्यमय हालात में उनकी मौत हो गई।

    राष्ट्रवादी लोगों की जीत हुई

    जम्मू-कश्मीर में 67 साल पहले हुए आंदोलन के गवाह बने पूर्व केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री प्रो. चमन लाल गुप्ता का कहना है कि इस प्रदेश को लेकर श्यामा प्रसाद द्वारा देखा गया सपना पूरी तरह से साकार हो गया। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रवादी लोगों की जीत हुई है। पाकिस्तान की शह पर हालात बिगाड़ने वाले देश विरोधी तत्वों व उसकी भाषा बोलने वालों को अब हिसाब देना पड़ रहा है

    उसी दिन पड़ गई अनुच्छेद-370 के खात्मे की नींव

    जम्मू-कश्मीर के अंतिम प्रधानमंत्री और पहले मुख्यमंत्री जीएम सादिक के पौत्र इफ्तिखार सादिक कहते हैं कि अनुच्छेद 370 के खात्मे की नींव उसी दिन पड़ गई थी जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लखनपुर में गिरफ्तार किया गया था। जब उन्हें गिरफ्तार कर लाया गया था तो उन्हें एक दिन के लिए हमारे ही घर में रखा गया था। मैं उस समय बहुत छोटा था, लेकिन मुझे आज भी याद है। मेरे दादा उस समय स्वास्थ्य मंत्री थे। हमारे मकान के बाहरी कक्ष जो लॉन के साथ सटा हुआ है, उसमें ही उन्हें रखा गया था। वह मेरे दादा से खुलकर बातचीत कर रहे थे। उसके बाद उन्हें श्रीनगर के निशात इलाके में एक कोठी में रखा गया था। उनके ही निधन के बाद 1959 में यहा परमिट सिस्टम खत्म हुआ था।